काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले 40 वर्षों में हवा की गति पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि हवा की स्पीड 100 मीटर की ऊंचाई पर लगभग हर एक दशक में 0.88 किमी प्रति घंटे की दर से कम हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी मैदान सामान्य से अधिक ठंडा होने और उत्तरी हिंद महासागर के सामान्य से अधिक गर्म होने से हवाओं की गति पर असर पड़ा है। हवा की गति घटने से आने वाले समय में बारिश के पैटर्न में बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ पवन ऊर्जा के जरिए बिजली उत्पादन के लक्ष्य हासिल करना भी मुश्किल होगा।

रिपोर्ट में 1979 से 2019 के बीच प्राप्त आंकड़ों के आधार पर देश में हवाओं की गति का विश्लेषण किया गया है। सीईईडब्लू के इस शोध की लेखिका दिशा अग्रवाल के मुताबिक ये अध्ययन दर्शाता है कि पिछले 40 सालों में हवा की गति में सबसे ज्यादा गिरावट जून (हर दशक में -1.33 किमी प्रति घंटे) और जुलाई (हर दशक में -1.27 किमी प्रति घंटे) के महीने में दर्ज की गई है। गुजरात और तमिलनाडु ही ऐसे राज्य हैं, जहां वार्षिक औसत हवा की गति 15 किमी प्रति घंटे से अधिक बनी हुई है।

मौसम विभाग की ओर से प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 1961 से 2008 के दौरान भारत में सतह के करीब हवा की स्पीड में कमी महसूस की गई। 171 स्टेशनों के मासिक वायु गति डेटा के अध्ययन में पाया गया कि भारत के अधिकांश स्टेशनों ने मासिक और वार्षिक दोनों आधार पर वायु गति में कमजोरी का अनुभव किया है। अखिल भारतीय औसत वार्षिक आधार पर औसत हवा की गति 1961 में 9.7 किमी प्रति घंटे से घटकर 2008 में 5.0 किमी प्रति घंटे हो गई है। इस अध्ययन के लेखक मौसम वैज्ञानिक अशोक जसवाल के मुताबिक वार्षिक आधार पर हवा की स्पीड में कमी की अखिल भारतीय औसत दर -0.88 किमी प्रति घंटा/दशक है। हवा की स्पीड में कमी मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर कर्नाटक, तटीय उड़ीसा और तटीय पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों में हुई है, जहां वार्षिक औसत हवा की स्पीड भी अधिक होती है। 15 किमी प्रति घंटे से अधिक की वार्षिक औसत वायु गति केवल गुजरात और दक्षिण तमिलनाडु में देखी गई है। राजस्थान, पश्चिम मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर कर्नाटक और उससे सटे आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों और पश्चिमी और पूर्वी तट के कुछ हिस्सों में 10-15 किमी प्रति घंटे की गति से वायु गति का अनुभव होता है। उत्तर भारत में 10 किमी प्रति घंटे से अधिक वार्षिक औसत हवा की स्पीड बेहद कम स्टेशनों पर दर्ज हुई है। अध्ययन में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में हवाओं के जलवायु विज्ञान और इसके दीर्घकालिक रुझान का आकलन किया गया है जहां पवन ऊर्जा का लाभप्रद रूप से उपयोग किया जा सकता है।

कई अन्य अध्ययनों में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान और हवा के दबाव में कई तरह के बदलाव देखे जा रहे हैं, जिनका हवा की स्पीड पर असर पड़ा है। इसी का परिणाम था कि मौसम में कई तरह के उतार चढ़ाव के चलते 2020 में पीक मॉनसून सीजन में देश में पवन ऊर्जा के उत्पादन में कमी देखी गई। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं कि सर्दियां शुरू होने के पहले उत्तर भारत में हवा की स्पीड धीमी हो जाती है। इसी के चलते प्रदूषण की समस्या और गंभीर बन जाती है। जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र के तापमान में बदलाव देखा जा रहा है। इसका हवा की गति पर भी असर पड़ा है। हवाएं लगभग सभी तरह की मौसमी गतिविधियों पर प्रभाव डालती हैं। हवा की स्पीड में बदलाव से मौसम में अनियमितता बढ़ेंगी।

यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों का दावा है कि पहाड़ों में बर्फबारी और बारिश लाने वाले पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न बदला है। वे काफी देरी से आ रहे हैं। पिछले 70 वर्षों में, अप्रैल से जुलाई तक वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की आवृत्ति 60% बढ़ गई है, जिससे बर्फबारी कम हुई और भारी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। सामान्य तौर पर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस जिन्हें साइक्लोनिक सर्कुलेशन के तौर पर भी जाना जाता है, आमतौर पर दिसंबर से मार्च तक हिमालय में भारी बर्फबारी और बारिश लाते हैं। लेकिन साल 2023 में हिमालय में बर्फबारी जनवरी अंत में शुरू हुई। वेदर एंड क्लाइमेट डायनेमिक्स जर्नल में छपे अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तरी भारत में महत्वपूर्ण बर्फबारी और वर्षा प्रदान करने वाले शीतकालीन तूफान काफी देर से आ रहे हैं। पिछले 70 सालों में पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न बदला है। सर्दियों की तुलना में गर्मी में पश्चिमी विक्षोभ बढ़े हैं। इससे विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। लाखों भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण जल आपूर्ति भी कम हो गई है।

हर 10 साल में 0.88 किमी प्रति घंटा धीमी हो रही हवा का असर मौसमी गतिविधियों पर, पवन ऊर्जा लक्ष्य हासिल करना भी होगा मुश्किल
हर 10 साल में 0.88 किमी प्रति घंटा धीमी हो रही हवा का असर मौसमी गतिविधियों पर, पवन ऊर्जा लक्ष्य हासिल करना भी होगा मुश्किल

यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिक और इस शोध के लेखक डॉ. कीरन हंट कहते हैं कि “70 साल पहले की तुलना में जून में उत्तर भारत में अब तेज तूफान आने की संभावना दोगुनी है। साल के इस समय गर्म और नम हवा के साथ, ये देर से आने वाले तूफान हैं।” बर्फ की जगह भारी बारिश हो रही है। इससे घातक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है जैसा कि हमने 2013 में उत्तराखंड में और 2023 में दिल्ली के आसपास देखा था। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट टेरी के वैज्ञानिक और लम्बे समय से पानी पर काम कर रहे डॉक्टर चंदर सिंह कहते हैं कि रेनफॉल पैटर्न बदल रहा है। जनवरी के बाद ठंड कम हो जाती है। राजस्थान, उत्तराखंड हिमाचल और कई राज्यों में अचानक भारी बारिश होने लगती है। एयर का मूवमेंट तापमान से होता है। ग्लोबल एयर सर्कुलेशन और ग्लोबल ओशियन सर्कुलेशन चेंज हो रहा है। तापमान डेढ़ डिग्री तक बढ़ रहा है।

दिन और रात के तापमान में बढ़ रहा अंतर

जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में गर्मी बढ़ी है। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग के बीच दिन और रात के तापमान में अंतर भी तेजी से बढ़ा है। 1961 से 2020 के बीच दिन में गर्मी बढ़ी है, वहीं रात के तापमान में बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिन और रात के तापमान में इस असंतुलन का असर धरती पर मौजूद सभी जीवों और पेड़ पौधों पर पड़ सकता है। इस असंतुलन से इंसानों में बीमारियां बढ़ने का भी खतरा है। स्वीडन में चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि 1990 के दशक के बाद से दिन के समय गर्मी तेजी से बढ़ी है। इस बदलाव का मतलब है कि दिन और रात के बीच तापमान का अंतर बढ़ रहा है, जो संभावित रूप से पृथ्वी पर सभी जीवन को प्रभावित कर रहा है। नेचर जर्नल में छपे इस शोध में बताया गया है कि मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है। बीसवीं सदी में रात के तापमान में दिन के तापमान की तुलना में तेज गति से वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर दिन और रात के बीच बढ़ते तापमान के अंतर को “असममित वार्मिंग” कहा जा रहा है। चाल्मर्स यूनिवर्सिटी में पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता ज़िकियान झोंग कहते हैं कि 1980 के दशक में “ग्लोबल ब्राइटनिंग” फिनॉमिना सामने आया। यह सिकुड़ते बादलों का परिणाम है, इससे अधिक सूर्य की रोशनी पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है, जिससे दिन का तापमान बढ़ जाता है और इसके परिणामस्वरूप, हाल के दशकों में दिन और रात के तापमान के बीच अंतर बढ़ा है।

बदल रहा है बारिश का पैटर्न

मौसम विज्ञान महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने हाल ही में कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण देश में वर्षा का पैटर्न बदल रहा है। उन्होंने कहा कि 1901 से अब तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद ये परिणाम सामने आए हैं कि बारिश के पैटर्न में बदलाव आया हैं। ये देखा गया है कि सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में अब अधिक वर्षा हो रही है। “असम, मेघालय, बिहार और झारखंड जैसे कभी उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में अब कम वर्षा हो रही है। इस बदलाव का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है।

तिब्बती पठार हो रहे हैं गर्म

वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में बर्फबारी और सर्दियों में मौसम में बदलाव का बड़ा कारण उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम में आ रहा बदलाव है। ये ऊंचाई वाली वायु धारा है जो पश्चिमी विक्षोभ को नियंत्रित करती है। तिब्बती पठार का तेजी से गर्म होना – जो कि मध्य, दक्षिण और पूर्वी एशिया की सीमाओं के करीब एक समतल ऊँची भूमि है, के आसपास के क्षेत्रों के साथ एक बड़ा तापमान विरोधाभास पैदा कर रहा है, जिससे एक मजबूत जेट स्ट्रीम बन रही है। ग्लोबल वार्मिंग भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान के अंतर को कमजोर कर रही है जो आमतौर पर गर्मियों में जेट स्ट्रीम को उत्तर की ओर खींचता है। परिणामस्वरूप, जेट स्ट्रीम बाद में वसंत और गर्मियों में दक्षिणी अक्षांशों पर तेजी से बढ़ती जा रही है, जिससे सर्दियों के बर्फीले मौसम के बाद उत्तर भारत में और अधिक तूफान आने की संभावना बनती है। प्री-मानसून के करीब आने वाले ये तूफान बर्फ के बजाय भारी वर्षा लाते हैं, जिससे विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। इस बीच, क्षेत्र के गर्म होने के कारण सर्दियों में बर्फबारी कम हो रही है।

हवाओं की स्पीड घटने से प्रमुख रूप से ये होंगे नुकसान

  • पवन ऊर्जा उत्पादन में कमी देखी जाएगी। स्विस री इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक हवा की गति में 10% की गिरावट से ऊर्जा उत्पादन में 30% की गिरावट आ सकती है।
  • हवाओं की स्पीड में बदलाव से मौसम में बदलाव देखा जा सकता है। असमय बारिश और तूफान जैसी घटनाएं देखी जा सकती हैं।
  • बारिश के पैटर्न में बदलाव देखा जा सकता है।
  • हवाओं की स्पीड में बदलाव पवन ऊर्जा टरबाइन के बुनियादी ढांचे के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।
  • हवा पौधों की वृद्धि, प्रजनन, वितरण, मृत्यु और विकास को प्रभावित करती है। हवा में व्यापक गिरावट वनस्पति के विकास पर असर डाल सकती है।