सिर्फ तीन नक्सलियों के लिए मध्य प्रदेश में 7500 जवान, 70 करोड़ से अधिक का खर्चा

 सिर्फ तीन नक्सलियों के लिए मध्य प्रदेश में 7500 जवान, 70 करोड़ से अधिक का खर्चा

मध्य प्रदेश में सिर्फ तीन नक्सली बचे होने के बावजूद बड़ी संख्या में जवानों और धन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

मध्य प्रदेश में नक्सल समस्या को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. एमपी पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में अब सिर्फ 3 नक्सली बचे हैं. इन तीनों  नक्सलियों को पकड़ने के लिए 7500 से ज्यादा सुरक्षा बल को तैनात किया गया है और 70 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च किया गया. इसके अलावा, नक्सली एरिया में सड़क शिक्षा और नेटवर्क के लिए अलग से बजट भी होता है.

7500 जवानों में पुलिस बल, स्पेशल टास्क फोर्स (STF) और केंद्रीय सुरक्षा बल (CRPF) के जवान शामिल हैं. इन जवानों की तैनाती नक्सल प्रभावित इलाकों में होती है, जहां उन्हें नक्सलियों की हरकतों पर नजर रखने और क्षेत्र को सुरक्षित बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई है.

नक्सलियों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन उनकी मौजूदगी राज्य की सुरक्षा और विकास के लिए एक बड़ा खतरा बनी रह सकती है. किसी भी लापरवाही से इन तीन नक्सलियों का नेटवर्क फिर से मजबूत हो सकता है. शायद यही कारण है कि सरकार इतनी बड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाए हुए है.

नक्सलवाद से निपटने के लिए कितने अधिकारी
प्रदेश में नक्सलवाद से निपटने के लिए दो जिलों में सीआरपीएफ की तीन बटालियन और 7500 से अधिक पुलिस फोर्स तैनात है. इनके साथ नक्सलवाद से निपटने के 1 आईजी, 1 डीआईजी और 6 एसपी स्तर के अधिकारी हैं.
 
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से सीआरपीएफ की दो और बटालियन की मांग की है. हालांकि पुलिस का इस पर कहना है कि इस एरिया में छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के करीब 60 नक्सलियों मूवमेंट रहता है, लिहाजा यहां इतने सुरक्षा बल की जरूरत होती है. प्रदेश में नक्सलियों का कोई नया कार्ड तैयार नहीं हुआ है.

कौन है ये तीन नक्सली
अधिकारियों के अनुसार, मध्य प्रदेश के पुलिस रिकॉर्ड्स में जो तीन नक्सलवादी हैं. इन्हें सरकार पिछले 24 साल में गिरफ्तार नहीं कर सकी. साल 2000 में इनमें से एक नक्सली को पकड़ा गया था, लेकिन वह 2004 में छूट गया था. इन नक्सलियों का ग्रामीण इलाकों में अच्छा नेटवर्क होने की वजह से यह हर बार पुलिस की दबिश से पहले ही भाग निकलने में कामयाब रहते हैं.

जिन तीन नक्सलियों का जिक्र मध्य प्रदेश पुलिस की रिकॉर्ड में है उनमें पहला नाम दीपक उर्फ सुधाकर का है. इसकी उम्र 50 साल है. दीपक पर 29 लाख रुपये का इनाम है. दूसरा नाम संगीता है, जिनकी उम्र 38 साल है. संगीता पर 14 लाख रुपये का इनाम है. तीसरा नाम राम सिंह उर्फ संपत है जिसकी उम्र 60 साल है और राम सिंह पर 14 लाख रुपये का इनाम है.

नक्सल हिंसा में लगातार गिरावट
मध्य प्रदेश में नक्सलवाद से जुड़ी हिंसा में लगातार कमी देखी जा रही है. साल 2019 से लगातार बढ़ रहे मौतों के आंकड़ों के उलट, 2023 में इस तरह की घटनाओं में काफी कमी आई है. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (CPI-Maoist) से जुड़ी हिंसा में एक नागरिक और चार माओवादी सहित कुल पांच लोग मारे गए. जबकि 2022 में दो नागरिकों और छह माओवादियों सहित कुल आठ लोग मारे गए थे. 

2018 में सिर्फ एक मौत हुई थी. 2019 और 2020 में चार-चार मौतें हुई थीं. 2021 में पांच मौतें हुई थीं. आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 31 मार्च 2024 तक तक किसी भी मौत की खबर नहीं है.

एक ही जिले में अधिकतर मौतें
मध्य प्रदेश में नक्सली हिंसा का केंद्र मुख्य रूप से बालाघाट जिला रहा है. 2023 में हुई सभी मौतें सिर्फ बालाघाट जिले से ही दर्ज की गई हैं. इसी तरह, 2022 में भी एक मौत बालाघाट से ही हुई थी. 6 मार्च 2000 से राज्य में दर्ज की गई कुल 37 मौतों में से 32 बालाघाट में हुई हैं (12 नागरिक, तीन सुरक्षा बल, SF, कर्मचारी और 17 नक्सली).

बाकी पांच मौतें मंडला (दो नक्सली), कोन्ता (दो नागरिक) और जगदलपुर (एक सैनिक) से हुई थीं. कोन्ता और जगदलपुर में मौतें 1 नवंबर 2000 से पहले की हैं, जब ये दोनों जिले छत्तीसगढ़ का हिस्सा बन गए थे. छत्तीसगढ़ को 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग किया गया था.

सिर्फ तीन नक्सलियों के लिए मध्य प्रदेश में 7500 जवान, 70 करोड़ से अधिक का खर्चा

सुरक्षा बलों पर आखिरी हमला
मध्य प्रदेश में सुरक्षा बलों पर आखिरी नक्सली हमला 22 सितंबर 2010 को हुआ था. इस घटना में बालाघाट जिले के सितापाला गांव के पास माओवादियों ने हॉक फोर्स के एक जवान की हत्या कर दी थी. इस बीच सुरक्षा बलों ने 2023 में दो माओवादियों को गिरफ्तार किया. 2022 में कोई माओवादी गिरफ्तार नहीं हुआ था. हालांकि, 2021 में चार माओवादियों को गिरफ्तार किया गया था. 6 मार्च 2000 से राज्य में कुल 73 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है. 

2023 में हथियार बरामदगी की कम से कम पांच घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2022 में ऐसी तीन घटनाएं हुई थीं. 6 मार्च 2000 से राज्य में कम से कम 31 ऐसी घटनाएं दर्ज की गई हैं. हालांकि 2023 और 2022 में भी कोई माओवादी सरेंडर नहीं किया, लेकिन 6 मार्च 2000 से राज्य में कम से कम 15 माओवादियों ने कथित तौर पर सरेंडर किया है.

मध्य प्रदेश की पहली माओवादी आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति 2023
22 अगस्त 2023 को मध्य प्रदेश कैबिनेट ने माओवादी आत्मसमर्पण, पुनर्वास और राहत नीति 2023 को मंजूरी दी. इसका उद्देश्य स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना और नक्सल प्रभावित परिवारों को सहायता प्रदान करना है.

इसी नीति के तहत, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी को 5,00,000 या उनकी गिरफ्तारी पर घोषित इनामी राशि (जो भी अधिक हो) दी जाती है. यदि माओवादी अविवाहित है, तो उसे शादी के लिए 50,000 की अतिरिक्त सहायता दी जाती है. हर आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी को घर बनाने के लिए 1,50,000 दिए जाते हैं. 

अगर माओवादी आत्मसमर्पण के समय हथियार भी जमा करता है, तो उसे 10,000 से लेकर 40,000 तक की अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि मिलती है. इसके अलावा, आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी को व्यापार शुरू करने के लिए 1,50,000 की सहायता मिलती है. इतना ही नहीं अगर वह किसी अन्य माओवादी को खत्म करने में मदद करता है, तो उसे पुलिस विभाग में कांस्टेबल पद के लिए सिफारिश किया जाता है.

यह नीति राज्य में शांति स्थापित करने और नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका देने का प्रयास है. साथ ही, इससे नक्सल प्रभावित परिवारों को राहत और बेहतर भविष्य की दिशा में प्रेरणा मिलेगी.

2023 में नक्सली हिंसा पर लगाम: बिना आगजनी और धमाके का साल
2023 में मध्य प्रदेश में नक्सलियों द्वारा आगजनी की कोई घटना दर्ज नहीं हुई, जबकि 2022 में ऐसी एक घटना दर्ज की गई थी. आखिरी बार आगजनी की घटना 22 मई 2022 को सामने आई थी. इसमें न्यू डेमोक्रेटिक रिवॉल्यूशन जिंदाबाद (NDRZ) संगठन के माओवादी कार्यकर्ताओं ने बालाघाट जिले के दादेकसा-बिलाल कसा तेंदूपत्ता संग्रह केंद्र में करीब 350 बोरियां तेंदूपत्ता को आग के हवाले कर दिया था.

6 मार्च 2000 से अब तक राज्य में नक्सलियों द्वारा आगजनी की कुल 10 घटनाएं दर्ज की गई हैं. 2023 में नक्सलियों द्वारा कोई धमाके की घटना भी नहीं हुई. मध्य प्रदेश में एकमात्र धमाका 11 दिसंबर 2001 को हुआ था, जब पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) के माओवादी कार्यकर्ताओं ने बालाघाट जिले के सामनापुर में सरकारी गेस्ट हाउस को विस्फोट से उड़ा दिया था. 6 मार्च 2000 से अब तक राज्य में नक्सलियों द्वारा सिर्फ एक विस्फोट दर्ज किया गया है.

इन आंकड़ों से साफ है कि राज्य में नक्सलियों के प्रभाव में कमी आई है. 2023 में नक्सली हिंसा के मोर्चे पर मध्य प्रदेश ने राहतभरा साल देखा. न आगजनी और न धमाके, ये संकेत हैं कि राज्य में शांति और स्थिरता की ओर तेजी से बढ़ने की प्रक्रिया जारी है.

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