वर्ल्ड वॉर में शहीद हुए सैनिकों के मिले अवशेष ?

 वर्ल्ड वॉर में शहीद हुए सैनिकों के मिले अवशेष: भारत से क्या है संबंध?

80 साल बाद जापानी सैनिकों की हड्डियां मिलने की खबर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दर्दनाक अध्याय को फिर से जीवंत कर दिया है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय बांग्लादेश भारत का हिस्सा था.

ये सैनिक करीब 80 साल पहले युद्ध के दौरान मारे गए थे. अब इनकी पहचान करने और उन्हें जापान वापस भेजने का काम किया जा रहा है. यह घटना सिर्फ सैनिकों की वापसी का मामला नहीं है, बल्कि इसके जरिए द्वितीय विश्व युद्ध और उस समय के एशियाई क्षेत्रों में जापान की भूमिका पर चर्चा फिर से शुरू हो गई है.

जापान ने युद्ध के दौरान चीन, बर्मा (म्यांमार) और ब्रिटिश-शासित भारत में गठबंधन सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. बांग्लादेश उस समय भारत का हिस्सा था और इस क्षेत्र में जापान ने ब्रिटिश सेना से टकराव किया था. 

युद्ध के दौरान भारी संख्या में सैनिक मारे गए और इनकी कब्रें अलग-अलग युद्ध क्षेत्रों में बनीं. मैयमनटी कब्रिस्तान में 700 से ज्यादा सैनिकों को दफनाया गया था, जिनमें से 23 जापानी सैनिकों की हड्डियां अब खोजी गई हैं.

मानव इतिहास का सबसे बड़ा और विनाशकारी युद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध मानव इतिहास का सबसे बड़ा और विनाशकारी युद्ध था. यह 1939 से 1945 तक चला. यह युद्ध विश्व स्तर पर लड़ा गया और इसमें लगभग हर महाद्वीप पर प्रभाव पड़ा था.

इस युद्ध में दो प्रमुख गुट थे: एक्सिस पॉवर्स और एलाइड पावर्स. एक्सिस पॉवर में प्रमुख देश थे जर्मनी, इटली और जापान. इन देशों का उद्देश्य अपने साम्राज्यों का विस्तार करना और दुनिया पर प्रभुत्व स्थापित करना था. एलाइड पावर में प्रमुख देश अमेरिका, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन शामिल था. इनका लक्ष्य धुरी शक्तियों को हराकर दुनिया में शांति बहाल करना था.

भारत का द्वितीय विश्व युद्ध में योगदान
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था. ब्रिटिश सरकार ने वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के नेतृत्व में भारतीय राजनीतिक नेताओं से सलाह लिए बिना भारत की युद्ध में भागीदारी की घोषणा कर दी थी. भारत ने ब्रिटिश कमान के तहत युद्ध के अलग-अलग मोर्चों पर लड़ने के लिए ढाई मिलियन से अधिक सैनिक भेजे, जिससे यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना बन गई.

वर्ल्ड वॉर में शहीद हुए सैनिकों के मिले अवशेष: भारत से क्या है संबंध?

ब्रिटिश भारत ने सितंबर 1939 में आधिकारिक तौर पर नाजी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी. भारतीय सैनिकों ने जर्मनी के खिलाफ यूरोप में लड़ाई लड़ी. फासीवादी इटली के खिलाफ उत्तरी अफ्रीका में भारतीय सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जापान के खिलाफ दक्षिण पूर्व एशिया में लड़ाई लड़ी. ब्रिटिश बर्मा और सीलोन जैसे क्षेत्रों में जापानी आक्रमण का डटकर मुकाबला किया.

युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों को सिंगापुर और हांगकांग जैसे पूर्व उपनिवेशों में भी तैनात किया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध में भारत ने भारी कीमत चुकाई. 87,000 से अधिक भारतीय सैनिक शहीद हुए और करीब 3 मिलियन नागरिक मारे गए.

मित्र राष्ट्रों के लिए भारत का समर्थन, धुरी राष्ट्रों के साथ भारत
भारतीय सैनिकों ने यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया सहित सभी प्रमुख मोर्चों पर लड़ाई लड़ी. इटली को आजाद कराने और युद्ध के लिए जरूरी आपूर्ति पहुंचाने में उनका अहम योगदान रहा. इटली के मोंटे कैसिनो की लड़ाई में भारतीय सैनिकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (INA) का गठन किया. उन्हें इस मिशन में जापान का समर्थन मिला. आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ दक्षिण-पूर्व एशिया (म्यांमार और थाईलैंड) में जापानी सेनाओं के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी. इसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद कराना था.

द्वितीय विश्व युद्ध को लेकर भारतीयों की सोच
कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के फैसले का विरोध किया था. 1939 में जब गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने बिना भारतीय नेताओं से सलाह किए भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल कर दिया, तो कांग्रेस ने इसे नकारा. इसके विरोध में कांग्रेस ने अपने सभी प्रांतीय सरकारों से इस्तीफा दे दिया था.

भारतीय नेताओं का कहना था कि युद्ध के बाद भारत का भविष्य केवल भारतीयों द्वारा तय किया जाना चाहिए. उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि ब्रिटिश भारत की आजादी को स्वीकार करें और भारतीयों को आत्मनिर्णय का अधिकार मिले.

महात्मा गांधी और कई अन्य भारतीय नेताओं ने द्वितीय विश्व युद्ध को एक अवसर के रूप में देखा. उनका मानना था कि युद्ध के कारण ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो रही है और इस कमजोरी का आजादी हासिल करने के लिए फायदा उठाया जा सकता है. कुछ संगठनों जैसे मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने ब्रिटिश युद्ध प्रयासों का समर्थन किया. उनका मानना था कि अगर भारत युद्ध में मदद करेगा, तो ब्रिटेन नरमी बरतते हुए भारत को स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाने देगा.

द्वितीय विश्व युद्ध का भारत पर प्रभाव
युद्ध के दौरान भारतीयों में आज़ादी की भावना और मजबूत हुई. सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (INA) बनाई, जिसने दक्षिण-पूर्व एशिया में जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इससे भारतीयों में स्वतंत्रता आंदोलन की नई ऊर्जा जगी.

हालांकि, युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा. महंगाई बढ़ गई, टैक्स बढ़ गया और भ्रष्टाचार भी बढ़ा. खाने-पीने की कमी ने भयंकर अकाल पैदा कर दिया. 1943 का बंगाल अकाल सबसे भयंकर था, जिसमें लाखों लोग भूख से मारे गए.

वर्ल्ड वॉर में शहीद हुए सैनिकों के मिले अवशेष: भारत से क्या है संबंध?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन कमजोर हो चुका था और उसकी आर्थिक स्थिति भी खराब थी. ऐसे में भारत पर शासन करना उसके लिए मुश्किल हो गया. युद्ध से लौटे भारतीय सैनिकों ने देखा कि उनके पास यूरोपीय नागरिकों के मुकाबले कम अधिकार थे. इन सभी कारणों ने 1947 में भारत की स्वतंत्रता का रास्ता तैयार किया.

द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम क्या हुआ
इस युद्ध में लगभग 70-85 मिलियन लोग मारे गए, जिनमें सैनिक और नागरिक दोनों शामिल थे. नाजी जर्मनी द्वारा छह मिलियन यहूदियों की हत्या हुई, जिसे होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है, इस युद्ध का सबसे काला अध्याय है.

एक्सिस पॉवर्स की हार के बाद नाजी जर्मनी और इंपीरियल जापान का पतन हुआ और जर्मनी का विभाजन हुआ. सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाया, जबकि अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में उभरा, जिससे शीत युद्ध की शुरुआत हुई. इस युद्ध में पहली बार परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया गया. परमाणु हथियारों के विकास ने दुनिया को एक नए खतरे से सामना कराया. 

इस युद्ध ने विश्व व्यवस्था में बड़े बदलाव लाए. संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापना 1945 में हुई. इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना और भविष्य में युद्धों को रोकना था. युद्ध से बर्बाद हुए पश्चिमी यूरोप को फिर से खड़ा करने के लिए अमेरिका ने 1948 में मार्शल प्लान शुरू किया. 

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद परमाणु युग की शुरुआत हुई. इससे शीत युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों की होड़ तेज हो गई. युद्ध के बाद यूरोपीय देशों के उपनिवेश कमजोर हो गए. इसके कारण अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुए और कई देशों को आजादी मिली.

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