वक्फ और संभल ने भाजपा की राजनीति को फायदा पहुंचाया ?
महाराष्ट्र में इंडिया ब्लॉक को करारी हार क्यों झेलनी पड़ी? ज्यादातर विश्लेषकों ने लाड़की बहिन योजना की ओर इशारा किया। महिलाओं के मतदान में 6% की वृद्धि भी इस बात की पुष्टि करती है। लेकिन और भी फैक्टर्स थे, जिनके कारण एनडीए का वोट-शेयर इंडिया ब्लॉक के एमवीए से 15 प्रतिशत अधिक था।
इनमें से एक कारण वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के कारण बढ़ा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण था। 1955 का वक्फ अधिनियम- जिसे 1995 और 2013 में संशोधित किया गया था- मुस्लिम संपत्तियों को नियंत्रित करता है। वक्फ बोर्ड अदालतों के प्रति जवाबदेह नहीं है।
अगर केंद्रीय और राज्य वक्फ बोर्ड जमीन पर दावा करते हैं तो वास्तविक जमीन मालिक को अदालत में अपील करने का कोई अधिकार नहीं होता। इसके चलते वक्फ बोर्ड के ट्रस्टी बिना किसी रोक-टोक के जमीनों पर अतिक्रमण कर सकते हैं। वक्फ ने केरल और कर्नाटक में चर्च की जमीन पर भी दावा किया है, जिससे मुसलमानों और ईसाइयों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024, 2013 के वक्फ अधिनियम में सुधार करने और वक्फ बोर्ड के फैसलों को कानूनी अधिकार-क्षेत्र में रखने का प्रयास करता है, जिसमें अदालत में अपील करने का अधिकार भी शामिल है। लेकिन वक्फ अधिनियम में सुधारों का विरोध करके मौलवियों ने उदारवादी हिंदुओं और ईसाइयों को भी अलग-थलग कर दिया है, जो जरूरी नहीं कि भाजपा के मतदाता हों।
संभल में शाही जामा मस्जिद को लेकर हुए विवाद ने साम्प्रदायिक तापमान को और बढ़ाया, जिससे यूपी में भी ध्रुवीकरण गहरा गया। यूपी उपचुनावों में भाजपा की 7-2 की जीत 2027 के यूपी चुनाव से पहले सपा के लिए चेतावनी है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक के लिए खतरा यह है कि उदारवादी हिंदू भी अब एनडीए के करीब खिसक रहे हैं।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों ने भी भारत में हिंदुओं के बीच गुस्से को और बढ़ा दिया है। इस्कॉन के चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी एक बयान जारी करने के लिए मजबूर कर दिया, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार की पोजिशन का समर्थन किया और बांग्लादेश में हिंदुओं की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को भेजने का आह्वान किया।
हरियाणा में हार के बाद महाराष्ट्र में भी विपक्ष की चुनावी पराजय के बाद इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने कई मुद्दों पर कांग्रेस पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस द्वारा चुनावों में ईवीएम की जगह पेपर बैलेट का इस्तेमाल करने की मांग का मखौल उड़ाया जा रहा है।
कांग्रेस को याद दिलाया जा रहा है कि कैसे 1990 के दशक में बिहार में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा और डुप्लिकेट बैलेट के माध्यम से चुनावों में पेपर बैलेट का दुरुपयोग किया गया था। छोटे लोकतंत्र पेपर बैलेट का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उनके मतदाताओं की संख्या कम है और वहां कानून का सख्ती से पालन कराया जाता है। जबकि ईवीएम प्रणाली की इलोन मस्क ने भी प्रशंसा की है, जिन्होंने कहा कि भारत ने एक दिन में 64 करोड़ वोटों की गिनती की थी, जबकि कैलिफोर्निया चुनाव के कई हफ्ते बाद भी वोट गिन रहा है।
वक्फ अधिनियम 2013 में सुधार का विरोध करने तथा संभल में शाही जामा मस्जिद के न्यायालय के आदेश पर सर्वेक्षण करने वाले एएसआई के सदस्यों पर हमला करने वाले आपराधिक तत्वों का समर्थन करने के कारण कांग्रेस को अब एक ऐसी पार्टी के रूप में देखा जा रहा है, जो आधुनिक, प्रगतिशील भारत की वस्तुस्थिति से कटी हुई है।
संसद में एक ही समय में गांधी परिवार के तीन सदस्यों का होना भी अच्छा नहीं लगता। यह वंशवाद और अधिकारवाद को दर्शाता है। राहुल गांधी ने हाल ही में एक लेख में लिखा कि व्यापार घरानों का एकाधिकार भारत को नष्ट कर रहा है। लेकिन राहुल यह नहीं देख पा रहे हैं कि राजनीतिक एकाधिकार इससे भी बदतर है।
दूसरी तरफ महाराष्ट्र में अपनी शानदार जीत के बाद भाजपा ने भी अच्छी मिसाल कायम नहीं की। दस दिन तक मुख्यमंत्री पद को लेकर टालमटोल की गई। इससे एक बड़ी जीत के बाद उसका चुनावी लाभ कम हो गया। भाजपा अभी भी ऐसे काम करती है जैसे उसे सभी को खुश करना है।
महाराष्ट्र में 288 में से 132 सीटें जीतने के बाद भी भाजपा इस बात को लेकर चिंतित है कि सहयोगी क्या सोचेंगे, कौन से जातिगत समीकरण काम करेंगे और कौन-से अदृश्य खतरे सामने आ सकते हैं। यह छवि एक ऐसी पार्टी की है जिसमें जीत के बाद भी आत्मविश्वास की कमी है।
- वक्फ अधिनियम में सुधार का विरोध करने तथा संभल में न्यायालय के आदेश पर सर्वेक्षण करने वाले एएसआई के सदस्यों पर हमला करने वाले आपराधिक तत्वों का समर्थन करने के कारण कांग्रेस उदारवादियों का समर्थन गंवाने लगी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)