यूपी 2027 में क्या बंट जाएगा ?
……. ने राजनीतिक क्षेत्र के लोगों और विश्लेषकों से इसी मुद्दे पर बात की। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यूपी की जनगणना और परिसीमन के बाद प्रदेश का बंटवारा कर दो से तीन अलग राज्य बनाने की मांग बढ़ेगी। साथ ही सामाजिक और राजनीतिक संतुलन बनाने के लिए इसकी संभावना भी बढ़ जाएगी।
पहले जानिए यूपी के बंटवारे का क्या आधार बनेगा
1- 2025 में होगी जनगणना: देश में जनगणना 2025 में होने जा रही है। माना जा रहा है कि जनवरी-फरवरी 2025 से जनगणना शुरू होगी। दिसंबर 2025 तक जनगणना पूरी हो जाएगी। जनवरी 2026 तक जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए जाएंगे। यूपी की वर्तमान में आबादी 24 करोड़ से अधिक अनुमानित है।
जनगणना के बाद यूपी की आबादी 25 करोड़ के पार होने का अनुमान है। यूपी देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य तो है ही। यदि दुनिया की बात की जाए तो चीन, अमेरिका, इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद सबसे ज्यादा आबादी यूपी में ही निवास करती है।
2- 2027 में होगा परिसीमन: शासन के सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन 2027 में होगा। परिसीमन का आधार जनगणना होगा। सरकार प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र के लिए न्यूनतम जनसंख्या निर्धारित करेगी।
यूपी में वर्तमान में 403 विधानसभा क्षेत्र और 80 लोकसभा क्षेत्र हैं। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसतन 4 लाख मतदाता हैं। लोकसभा क्षेत्र में 20 से 25 लाख मतदाता हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या को साधना चुनौतीपूर्ण होने के साथ महंगा भी पड़ता है।
3- 20 से 25 फीसदी बढ़ जाएंगी सीटें: जानकारों का मानना है कि परिसीमन के बाद यूपी में विधानसभा की 100 और लोकसभा की 30 सीटें तक बढ़ सकती हैं। यदि अनुमान सही रहा तो विधानसभा में 500 और लोकसभा में यूपी की 100 से 110 सीटें होगी। जानकारों का मानना है कि परिसीमन के बाद यूपी में बढ़ी लोकसभा और विधानसभा की सीटें ही यूपी के बंटवारे का आधार बनेगा।
4- केंद्र में यूपी का दबाव बढ़ जाएगा: जानकारों का कहना है कि परिसीमन के बाद यूपी के बंटवारे की प्रबल संभावना है। परिसीमन के बाद यूपी में 500 से अधिक विधानसभा क्षेत्र और 100 से अधिक लोकसभा क्षेत्र होंगे। ऐसे में उस दौरान जो भी यूपी का मुख्यमंत्री होगा वह प्रधानमंत्री से कमजोर नहीं होगा। जिस भी दल के पास यूपी में सबसे अधिक सांसद या राज्यसभा सदस्य होंगे वह केंद्र की सरकार पर दबाव बनाने में सफल होगा।
इतना ही नहीं राजनीतिक दलों में भी कांग्रेस और भाजपा में यूपी का प्रदेश अध्यक्ष पद का कद बहुत बढ़ जाएगा। किसी भी राज्य के सीएम या प्रदेश अध्यक्ष को इतनी ताकत देने से बेहतर है कि यूपी का बंटवारा कर दिया जाए।
परिसीमन के बाद खड़ी होने वाली स्थितियां…
1- वन नेशन वन इलेक्शन में मिलेगी मदद: जानकार मानते हैं कि यूपी में 2027 विधानसभा चुनाव में जो भी सरकार बनेगी वह दो साल के लिए बनेगी। परिसीमन के बाद यदि यूपी से अलग कर जो दो-तीन नए राज्य बनाए जाएंगे, उनके विधानसभा चुनाव 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ ही कराए जाएंगे। यूपी से अलग दो-तीन राज्य बनाने से वन नेशन वन इलेक्शन में भी मदद मिलेगी।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में दिसंबर 2028, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, कर्नाटक में मार्च से मई 2028 में चुनाव प्रस्तावित है। इन राज्यों में सरकार का कार्यकाल छह से आठ महीने बढ़ाया जा सकता है। वहीं हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्य में जहां दिसंबर 2029 तक चुनाव प्रस्तावित है, वहां समय से पहले विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं।
2- विधानसभा में जगह भी नहीं: यूपी की विधानसभा में वर्तमान में ही 403 सदस्यों के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। गत वर्ष विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने करीब 25 टेबल और बेंच अतिरिक्त लगवाई हैं। ऐसे में परिसीमन के बाद जब सीटें 500 तक पहुंच जाएंगी तो विधानसभा में जगह नहीं होगी। विधान परिषद में सदस्य संख्या 100 से बढ़कर 125 तक करनी होगी, परिषद के मंडप में भी 125 सदस्य बैठने की जगह नहीं है।
सीनियर जर्नलिस्ट वीरेंद्रनाथ भट्ट मानते हैं कि सीएम योगी भी यूपी का बंटवारा नहीं चाहते। भाजपा और देश की राजनीति में जिस तरह योगी का कद बढ़ रहा है, उसे देखते हुए परिसीमन या यूपी के बंटवारे का कोई भी निर्णय योगी की सलाह के बिना होना संभव नहीं है।
राजनीतिक पार्टियां क्या चाहती हैं, उसके पीछे की वजह…
मायावती सरकार ने पारित किया था प्रस्ताव बसपा की मायावती सरकार ने 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में यूपी के बंटवारे कर 4 छोटे राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। इसके तहत हरित प्रदेश, अवध प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल प्रदेश राज्य बनाए जाने का प्रस्ताव था। विधानसभा में पारित प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि बसपा को इससे ज्यादा फायदा हो सकता था। जिस समय यह प्रस्ताव बनाया गया, उस समय बसपा को सबसे ज्यादा सीटें पूर्वांचल और पश्चिम उत्तर प्रदेश से मिली थीं। मध्य और बुंदेलखंड में कम सीटें थी। बसपा को लगा था कि यूपी का विभाजन होगा तो उसका पूर्वांचल और पश्चिम उत्तर प्रदेश में वर्चस्व रहेगा।
भाजपा- फायदा होगा तो ही संभव
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि परिसीमन के बाद यदि यूपी से अलग कर छोटे राज्य बनाना भाजपा के लिए फायदेमंद हुआ तो ही मोदी सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी। ऐसे में राज्यों का सीमांकन इस तरह किया जाएगा ताकि भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे को आगे तक चलाया जा सके।
आरएसएस और भाजपा छोटे राज्यों के समर्थक रहे हैं। पूर्व पीएम स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के समय ही सन 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तरांचल (उत्तराखंड), मध्यप्रदेश से अलग कर छत्तीसगढ़ और बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाया गया।
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय कहते हैं कि यूपी के बंटवारे की प्रक्रिया 1952 से ही चल रही है, लेकिन बंटवारा 2000 में उत्तरांचल बनाकर हुआ। पश्चिमी यूपी को हरित प्रदेश और पूर्वी यूपी को पूर्वांचल प्रदेश बनाने की मांग उठती रही है। हालांकि समाजवादी पार्टी नहीं चाहती कि यूपी का बंटवारा हो।
यूपी के बंटवारे के विरोध में है सपा आनंद राय कहते हैं कि समाजवादी पार्टी हमेशा से यूपी के बंटवारे के विरोध में है। 2011 में मायावती सरकार ने यूपी से अलग कर चार राज्य बनाने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया। उस समय समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध करते हुए ‘अखंड उत्तर प्रदेश’ का नारा दिया था।
यूपी के बंटवारे से सबसे अधिक नुकसान सपा को ही होगा। इसके पीछे एक्सपर्ट का मानना है कि सपा का वोट बैंक यादव और मुस्लिम हैं। इन वोटों का बंटवारा हो जाएगा और उसकी पकड़ कमजोर होगी।
अलग राज्य के समर्थन में जनप्रतिनिधियों का क्या रुख है…
संजीव बालियान- जनता की मांग पर सरकार को भी सोचना पड़ेगा
पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान का कहना है कि इतने बड़े प्रदेश में कोई भी सरकार अच्छे तरीके से विकास और शासन नहीं कर सकती। छोटे राज्य का ही विकास हो सकता है। हरियाणा से अलग कर पंजाब और यूपी से अलग कर उत्तराखंड बना तो उनका विकास हुआ। छत्तीसगढ़ और झारखंड भी अच्छे उदाहरण हैं।
पश्चिमी यूपी दिल्ली के पास है, यहां सबसे अच्छा पानी और खेती है। उनका कहना है कि यूपी को अलग कर छोटे राज्य बनाने का समर्थन तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भी कर चुके हैं। जनता जब मांग करेगी तो सरकार को भी मजबूर होकर सोचना पड़ेगा।
उमा भारती भी कर चुकी हैं बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग भाजपा की तेज तर्रार नेत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग कर चुकी हैं। उमा भारती का कहना है कि उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित बुंदेलखंड को अलग कर एक राज्य बनाया जाना चाहिए।
वो जनप्रतिनिधि, जो बंटवारे के फेवर में नहीं हैं
जनसंख्या बोझ नहीं लाभांक्ष है- राजनाथ तत्कालीन गृहमंत्री और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यूपी के बंटवारे को गैर जरूरी बताया था। 2018 में लखनऊ में उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान समारोह में राजनाथ सिंह ने कहा था कि ‘जनसंख्या को कभी बोझ नहीं माना जाना चाहिए। यह एक डेमोग्राफिक डिविडेंड (जनसांख्यिकीय लाभांश) है।
जनसंख्या हमारी श्रमशक्ति है। इसका उपयोग कैसे किया जाए और हम देश के विकास में उसका अधिकतम योगदान कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं, इसकी तकनीक खोजने की जरूरत है। अनावश्यक परेशान होने की जरूरत नहीं है।
केंद्र के हाथ में क्या है…
केंद्र को प्रस्ताव की आवश्यकता भी नहीं
संसदीय और विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि यूपी विधानसभा से यूपी का बंटवारा कर चार राज्य बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है। ऐसे में केंद्र सरकार चाहे तो यूपी का बंटवारा कर सकती है। केंद्र सरकार को अब विधानसभा से पारित प्रस्ताव की भी आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन दिसंबर 2011 में ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नौ सूत्री स्पष्टीकरण मांगते हुए प्रस्ताव राज्य सरकार को वापस भेज दिया था। उसके बाद मार्च 2012 में सपा की सरकार बनने के बाद यह कार्यवाही आगे नहीं बढ़ सकी। अगर केंद्र बंटवारा करना चाहे तो यूपी सरकार से स्पष्टीकरण मंगा लेगी, क्योंकि यहां पर भी बीजेपी की सरकार है।
फ्रीज करना भी विकल्प
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का मानना है कि यूपी के परिसीमन के बाद बंटवारा करने की जगह लोकसभा और विधानसभा की सीटों की संख्या को फ्रीज करना भी विकल्प हो सकता है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ऐसा कोई फॉर्मूला तय कर सकती है, जिससे परिसीमन के बाद भी यूपी की सीटें ज्यादा न बढ़ें। यदि ऐसा हुआ तो बंटवारा करने की संभावना नहीं होगी।