पुलिस और राजस्व विभाग की कार्रवाई
पुलिस के मुताबिक, सूचना मिली थी कि फर्जी डॉक्टर डिग्री वाले तीन लोग एलोपैथी प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसके बाद पुलिस और राजस्व विभाग ने अभियान चलाकर उनके क्लीनिक पर छापा मारा। पूछताछ करने पर आरोपियों ने बीईएचएम की डिग्रियां दिखाईं। जांच में पता चला कि डिग्रियां फर्जी हैं, क्योंकि गुजरात सरकार ऐसी कोई डिग्री जारी नहीं करती है। आरोपी फर्जी वेबसाइट पर डिग्रियां रिकॉर्ड कर रहे थे।
ऐसे रची गई साजिश
पुलिस ने बताया कि मुख्य आरोपी को पता चला कि भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के बारे में कोई नियम नहीं हैं। इसके बाद उसने उसी कोर्स में डिग्री देने के लिए एक बोर्ड बनाने की योजना बनाई। उसने पांच लोगों को काम पर रखा और उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी में ट्रेनिंग दी। उनने तीन साल से भी कम समय में कोर्स पूरा कर लिया। इस दौरान उन्हें इलेक्ट्रो-होम्योपैथी दवाएं लिखने का प्रशिक्षण दिया गया।
BEHM का राज्य सरकार के साथ समझौता होने का दावा
पुलिस के मुताबिक, जब फर्जी डॉक्टरों को पता चला कि लोग इलेक्ट्रो होम्योपैथी को लेकर संशय में हैं तो उन्होंने अपनी योजना बदल दी और लोगों को गुजरात के आयुष मंत्रालय की ओर से जारी की गई डिग्रियां देने लगे। उन्होंने दावा किया कि उनके बनाए गए बोर्ड BEHM का राज्य सरकार के साथ समझौता है।
15 दिनों के भीतर प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए
पुलिस ने कहा कि उन्होंने एक डिग्री के लिए 70,000 रुपये लिए और उन्हें प्रशिक्षण देने की पेशकश की। ऐसे लोगों को बताया गया कि इस प्रमाण पत्र के साथ वे बिना किसी समस्या के एलोपैथी, होम्योपैथी और आरोग्य की प्रैक्टिस कर सकते हैं। उन्होंने भुगतान करने के 15 दिनों के भीतर प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए।
गिरोह की ओर से धमकाया जाता था
पुलिस ने बताया कि प्रमाणपत्रों की वैधता थी और डॉक्टरों को एक साल बाद 5,000 से 15,000 रुपये देकर उन्हें नवीनीकृत करना पड़ता था। पुलिस ने बताया कि जो डॉक्टर नवीनीकरण शुल्क नहीं दे पाते थे, उन्हें गिरोह की ओर से धमकाया जाता था। आरोपियों में से दो शोभित और इरफान पैसे के गबन में शामिल थे।