डॉ. आंबेडकर ने संविधान बनाने का श्रेय किसे दिया, किसने उठाए थे कॉस्टीट्यूशन पर सवाल?
डॉ. आंबेडकर ने संविधान बनाने का श्रेय किसे दिया, किसने उठाए थे कॉस्टीट्यूशन पर सवाल? पढ़ें किस्से
Mahaparinirvan Diwas 2024: दिलचस्प है कि चुनावी राजनीति में आंबेडकर बुरी तरह विफल रहे लेकिन आज के दौर में उनके गुणगान को लेकर कमोवेश सभी दल और नेता एकमत हैं. संविधान निर्माण में आंबेडकर की शानदार भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. लेकिन इस काम में वे अकेले नहीं थे. सच तो ये है कि इस महान कार्य का अकेले श्रेय लेने को खुद आंबेडकर भी तैयार नहीं थे. पढ़ें पूरा किस्सा.
उन्होंने कहा था,”डॉक्टर आंबेडकर की अन्य किसी गतिविधि के मुकाबले संविधान तैयार करने में उनकी जो महत्वपूर्ण भूमिका थी, वह समय के साथ ज्यादा याद की जाएगी.”
दिलचस्प है कि चुनावी राजनीति में आंबेडकर बुरी तरह विफल रहे लेकिन आज के दौर में उनके गुणगान को लेकर कमोवेश सभी दल और नेता एकमत हैं. कोई भी दल अपने मंच से ऐसे किसी प्रसंग का जिक्र नहीं चाहता, जिसे लेकर आंबेडकर के जीवनकाल में उनकी आलोचना अथवा विवाद होता रहा हो. उन्हें संविधान निर्माता के रूप में याद किया जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव की सभाओं में तो वे और जोर-शोर से याद किए गए.
विपक्ष ने संविधान को खतरे में बताया था तो सत्ता पक्ष ने बाबा साहब के बनाए संविधान को कोई छू भी नहीं सकता की हुंकार भरी थी. संविधान निर्माण में आंबेडकर की शानदार भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. लेकिन इस काम में वे अकेले नहीं थे. सच तो ये है कि इस महान कार्य का अकेले श्रेय लेने को खुद आंबेडकर भी तैयार नहीं थे.
पटेल की कोशिशों से संविधान सभा में हुए शामिलआजादी निकट थी. संविधान सभा गठित हो चुकी थी. कोशिश थी कि इस सभा में सभी वर्गों, दलों, सम्प्रदायों और विचारों का प्रतिनिधित्व हो. जो उसमें शामिल नहीं हो सके थे, उनकी कोशिश थी कि उनकी सोच संविधान में शामिल हो सके. वे ज्ञापनों के माध्यम से अपना पक्ष संविधानसभा के सामने पेश कर रहे थे. अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ की कार्यसमिति ने डॉक्टर आंबेडकर के जिम्मे ऐसा ही एक ज्ञापन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, ताकि अनुसूचित जातियों के हित संविधान में शामिल किए जा सकें.
उन्होंने इस काम को पूरा किया और सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को ज्ञापन सौंप दिया था. उन दिनों डॉक्टर आंबेडकर की महात्मा गांधी और कांग्रेस से काफी दूरियां थीं. लेकिन सरदार पटेल की कोशिशों से आंबेडकर संविधान सभा में शामिल होने को तैयार हुए. पूर्वी बंगाल से चुनकर वे सभा का हिस्सा बने. विभाजन के बाद यह इलाका पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. उनकी सदस्यता खत्म हो गई. डॉक्टर एम.आर.जयकर के इस्तीफे के कारण बॉम्बे एक सीट रिक्त थी. यहीं से कांग्रेस की मदद से चुनकर आंबेडकर फिर संविधानसभा में पहुंचे.
चकित हुए मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाए जाने परसंविधान सभा ने आंबेडकर को मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया. इस जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया. सिर्फ सभा की कार्यवाहियों के दौरान ही नहीं बल्कि आज भी संविधान निर्माण में उनके शानदार योगदान की सराहना की जाती है. लेकिन जहां तक खुद आंबेडकर का सवाल था, वे इसका अकेले श्रेय लेने को तैयार नहीं थे.
अपनी प्रशंसा के उत्तर में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “संविधान सभा में अनुसूचित जातियों के हितों की रक्षा कराने के अतिरिक्त मैं किसी अन्य महानतर आकांक्षा को लेकर नहीं आया था. मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि मुझे और भी बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी. इस कारण जब मुझे मसौदा समिति में निमंत्रित किया गया तो बड़ा आश्चर्य हुआ. जब इसका सभापति चुना गया तो और भी आश्चर्य हुआ.”
राव और मुखर्जी के योगदान को आंबेडकर ने किया यादसंविधान निर्माण में अपनी अतुलनीय भूमिका की सदस्यों की प्रशंसा के बीच अन्य सहयोगियों के योगदान का आंबेडकर द्वारा उल्लेख उनके बड़े कद के अनुरूप था. साथ ही यह यथार्थ भी था, जिसकी आमतौर पर अनदेखी की जाती है. आंबेडकर ने कहा था ” जो श्रेय मुझे दिया गया है, वास्तव में उसका हकदार मैं नहीं हूं. उसके अधिकारी बी.एन.राव भी हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता हैं. जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का मोटे रूप में एक मसौदा बनाया.
सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक एस.एन. मुखर्जी को है. जटिल से जटिल व्यवस्थाओं को सरल, स्पष्ट और वैध रूप से प्रस्तुति में उनकी योग्यता की बराबरी कठिन है. कठिन परिश्रम के उनके सामर्थ्य की भी तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती. इस सभा के लिए वे देन स्वरूप थे. यदि उनकी सहायता नहीं मिलती तो इस संविधान को अंतिम स्वरूप देने में अभी और कई वर्ष लगते. श्रेय का कुछ भाग प्रारूप समिति के सदस्यों को भी जाना चाहिए जिन्होंने 141 बैठकों में भाग लिया और नए फॉर्मूले बनाने में जिनकी दक्षता तथा विभिन्न दृष्टिकोणों को स्वीकार करके उन्हें समाहित करने की सामर्थ्य के बिना संविधान-निर्माण का कार्य सफलता की सीढ़ियां नहीं चढ़ सकता था.”
सिर्फ मसौदा समिति नहीं ,अन्य सदस्य भी थे सक्रियआंबेडकर ने संविधान निर्माण में बी.एन.राव की भूमिका का महज उदारतावश जिक्र नहीं किया था. 26 नवंबर को संविधान सभा के समापन भाषण में अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “संविधान निर्माण के लिए गठित कई समितियों ने अपने दो प्रतिवेदन प्रस्तुत किए, जिन पर सभा ने विचार किया. उनकी सिफारिशें संविधान के मसौदे का आधार बनीं. यह कार्य बी.एन.राव ने किया, जिन्होंने अपने इस कार्य में अन्य देशों के संविधान के पूर्ण ज्ञान और इस देश की दशा के व्यापक ज्ञान तथा अपने प्रशासी ज्ञान का पुट दिया.
इसके बाद सभा ने मसौदा समिति गठित की, जिसने बी. एन .राव द्वारा निर्मित मूल मसौदे पर पर विचार किया. संविधान मसौदे के दूसरे पठन में संविधान सभा ने विस्तार से विचार किया. जैसा कि डॉक्टर आंबेडकर ने बताया 7,365 से कम संशोधन नहीं थे, जिनमें 2,473 पेश किए गए. मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं कि केवल मसौदा समिति के सदस्य ही नहीं, सभा के अन्य सदस्य भी संविधान को लेकर सचेत थे. वे मसौदे की पूर्ण रूप से जांच – परख कर रहे थे.”
आलोचना के भी स्वरसंविधान को सर्वसम्मति स्वीकृति प्राप्त हुई. आंबेडकर की मेधा,परिश्रम और योगदान की सराहना हुई. लेकिन आलोचना के भी स्वर थे. एच.बी.कामथ ने आंबेडकर से प्रश्न किया, “मैं आशा करता था कि आप बताएंगे कि अतीत से,भारतीय जनता की अपूर्व राजनैतिक तथा आध्यात्मिक प्रतिभा से संविधान में क्या लिया गया?” लोकनाथ मिश्र के अनुसार संविधान का उद्देश्य संकल्प हमारे परिश्रम का सुंदर फल था लेकिन मसौदा उसके विपरीत है. यह संविधान कुटुंब,ग्राम,जिले और प्रांत को कोई अधिकार नहीं देता. डॉक्टर आंबेडकर ने प्रत्येक अधिकार केंद्र को दे दिया है. मुझे आश्चर्य होता है कि इतना बड़ा विद्वान, भारत का इतना यशस्वी पुत्र भारत के बारे में इतना अल्प ज्ञान रखता है.”
प्रोफेसर के. टी.शाह ने कहा था, “इस संविधान का उद्देश्य लगभग पूर्णतया राजनीतिक है. सामाजिक तथा आर्थिक तो है ही नहीं.” पी. एस.देशमुख की राय में अंग्रेज जो शासन व्यवस्था इस देश में छोड़ गए,उसमें यह ठीक-ठाक बैठ जाए, इसी मकसद से इसकी रचना हुई है. अरुण चंद्र गुहा का कहना था कि मसौदा समिति निर्देशों से परे चली गई. संविधान में ऐसी बातें हैं, जो उन सिद्धांतों के विपरीत हैं, जिन्हें संविधान सभा ने तय किया था.”
आंबेडकर पर था काम का भारी बोझमसौदा समिति को विपरीत परिस्थितियों में अपना कार्य पूरा करना पड़ा. अकेले आंबेडकर पर लगभग पूरा भार आ गया. समिति के एक सदस्य टी. टी.कृष्णामाचारी ने अपने भाषण में इसे उजागर किया था, “संविधान सभा को यह पता है कि मसौदा समिति के सात सदस्य थे. उनमें से एक ने त्यागपत्र दे दिया. उनके स्थान पर एक अन्य को रखा गया.
एक अन्य सदस्य का देहांत हो गया लेकिन उनकी जगह किसी को नहीं रखा गया. एक अमेरिका में रहे. उनकी जगह खाली रही. एक सदस्य राज -काज में लगे थे. एक या दो सदस्य दिल्ली से दूर थे. संभवतः अस्वस्थ होने के कारण समिति की बैठकों में उपस्थित नहीं हो सके.
नतीजतन संविधान का मसौदा बनाने का काम डॉक्टर आंबेडकर पर आ पड़ा. हमारे संविधान के मसौदे पर उतना दत्तचित्त होकर ध्यान नहीं दिया गया, जितनी आवश्यकता थी. अगर गोपाल स्वामी आयंगर और के.एम.मुंशी जैसे लोग समस्त बैठकों में उपस्थित होते तो उस पर अधिक ध्यान संभव होता.