निजी बैंकों में खोले फर्जी फर्मों के करंट अकाउंट ?

 निजी बैंकों में खोले फर्जी फर्मों के करंट अकाउंट, वहीं से ठगी के धन की हेराफेरी

डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों के बीच पुलिस भी तेजी से जांच कर रही है। अब तक सामने आए मामलों और पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला है कि आरोपी ठगी की रकम को किस तरह अलग-अलग खातों में घुमाते हैं। इनके लिए छोटे और निजी बैंकों में फर्जी खाते खुलवाना और उनका दुरुपयोग आसान है।

  1. ठगों ने किराए पर ले रखे खाते
  2. पुलिस को उलझाने के लिए साजिश
  3. अब जांच में बैंक भी होंगे शामिल

ग्वालियर। देश भर में साइबर ठगी, खासकर डिजिटल अरेस्ट के जरिये लाखों-करोड़ों रुपये शातिर लोग ठग रहे हैं। ठग पुलिस से बचने के लिए निजी बैंकों में फर्जी फर्मों के नाम पर खोले गए करंट अकाउंट (चालू खाता) में रुपये जमा करवाते हैं। वे ऐसी बैंकें चुन रहे हैं, जिन्हें शुरू हुए अधिक समय नहीं हुआ है।

करंट अकाउंट से आगे जिन खातों में रुपये भेजे जा रहे हैं, वे खाते ठगों ने किराये पर ले रखे होते हैं। ठगी का धन हड़पने और पुलिस को उलझाने के लिए एक बड़ा नेटवर्क देश में काम कर रहा है।

naidunia_image
पुलिस अब बैंक अधिकारियों से करेगी बात

  • अब पुलिस बैंक अधिकारियों के साथ इस संबंध में बैठक करने जा रही है। हाल ही में ग्वालियर में ठगी की बड़ी घटनाओं को लेकर साइबर क्राइम विंग ने अध्ययन किया है।
  • इसमें यही स्थापित हुआ है कि ठगी का बहुत बड़ा हिस्सा निजी बैंकों के खातों में जमा हुआ है। बता दें, एक से आठ अक्टूबर के बीच तानसेन नगर निवासी वकील जगमोहन श्रीवास्तव को डिजिटल अरेस्ट कर 16 लाख रुपये की ठगी हुई।
  • वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. महेश शुक्ला को डिजिटल अरेस्ट कर 30 नवंबर को 21 लाख रुपये की ठगी हुई। दोनों मामलों में रुपये एक निजी बैंक के अलग-अलग खातों में जमा करवाए गए।

naidunia_image

इस तरह होती है रुपयों की हेराफेरीसाइबर क्राइम विंग ने ठगी के मामलों में अब तक कई आरोपियों को पकड़ा है। शिक्षिका आशा भटनागर को डिजिटल अरेस्ट कर 51 लाख रुपये की ठगी में सरगना कुणाल जायसवाल सहित अन्य लोगों को पकड़ा गया।

पड़ताल में सामने आया कि रुपये पीड़ित से ही निजी बैंकों के करंट अकाउंट में जमा करवाए गए। ये खाते अलग-अलग राज्यों में थे। जिन फर्मों के नाम पर खाते थे, वे जांच में फर्जी पाई गईं।

पीड़ित ने एक या दो खातों में रुपये जमा करवाए। आगे जिन खातों में रकम ट्रांसफर हुई, वे मजदूरों, नौकरीपेशा, छात्रों, सामान्य दुकानदारों और ग्रामीणों के नाम पर निकले। इनके खाते भी निजी बैंकों में ही ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपियों ने खुलवाए थे।

हर लेनदेन पर कमीशन तय किया और खातों में ठगी की रकम मंगाई। इन खातों को ऑपरेट ठगी के नेटवर्क में शामिल आरोपी ही करते हैं।

निजी बैंकों पर नजर इसलिए...साइबर क्राइम विंग के सब इंस्पेक्टर धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि इस साल डिजिटल अरेस्ट सहित अन्य साइबर ठगी के मामलों में करीब 70 आरोपियों को पकड़ा गया। इसमें सरगना, एजेंट और किराये पर खाते उपलब्ध कराने वाले भी शामिल हैं।

आरोपियों ने बताया कि निजी बैंकों के कर्मचारियों को लक्ष्य मिलते हैं। यहां अधिक संख्या में खाते नहीं होते, कई बैंकों की तो पूरे शहर में ही एक या दो शाखाएं होती हैं। इनमें खाता खुलवाने में अधिक औपचारिकताएं नहीं हैं। ऑनलाइन खाता भी अपेक्षाकृत आसानी से खुल जाता है। कई ऐसी औपचारिकताएं हैं, जिनसे ठग बचते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *