सीरिया में क्या हुआ कि राष्ट्रपति बशर अल असद को छोड़कर भागना पड़ा देश?
सीरिया में क्या हुआ कि राष्ट्रपति बशर अल असद को छोड़कर भागना पड़ा देश?
59 वर्षीय बशर अल-असद ने साल 2000 में अपने पिता हाफिज अल-असद की मृत्यु के बाद सीरिया की सत्ता संभाली थी. बशर से पहले उनके पिता 1971 से देश पर शासन कर रहे थे.
सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के 24 साल और उनके परिवार के 50 साल पुरानी सत्ता का अंत, 2024 की शुरुआत में एक बेहद आश्चर्यजनक और अप्रत्याशित घटनाक्रम के रूप में सामने आया. दरअसल रविवार यानी 8 दिसंबर को खबर आई है कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद दमिश्क (सीरिया की राजधानी) छोड़कर एक अज्ञात जगह पर भाग गए हैं. यह जानकारी रॉयटर्स ने दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के हवाले से दी.
उनके देश छोड़कर भागने की खबर ऐसे समय में आई है जब विद्रोही समूहों ने दावा किया था कि वे राजधानी में घुसना शुरू कर चुके हैं और सीरिया की सेना उनकी चुनौती का सामना करने के लिए कहीं मौजूद नहीं है. दरअसल विद्रोहियों के दमिश्क को घेरने के बाद राष्ट्रपति असद IL-76T विमान से वहां से निकले थे, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि वह सीरिया छोड़कर रूस गए हैं या ईरान.
राष्ट्रपति असद के देश छोड़कर भागने के बाद सीरिया में विद्रोहियों ने तख्तालट कर दिया है. विद्रोही समूह ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया है. राष्ट्रपति बशर अल असद का ये कदम ईरान और हिजबुल्लाह के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर राष्ट्रपति बशर अल असद को देश छोड़ने की स्थिति में क्यों आना पड़ा.
सीरिया का गृहयुद्ध
दरअसल 59 वर्षीय बशर अल-असद ने साल 2000 में अपने पिता हाफिज अल-असद की मृत्यु के बाद सीरिया की सत्ता संभाली थी. बशर से पहले उनके पिता 1971 से देश पर शासन कर रहे थे. उनके सत्ता में आने के 11 साल बाद यानी साल 2011 में इस देश में गृहयुद्ध की शुरुआत हुई, जब राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए.
इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत तो लोकतांत्रिक सुधारों की मांग को लेकर हुई थी, लेकिन असद सरकार ने जनता की मांगों को सुनने के बजाय उनकी आवाज को कुचलने के लिए सैन्य कार्रवाई की, जिससे यह प्रदर्शन हिंसा में तब्दील हो गया और सरकार के विरोध में कई अलग अलग सशस्त्र विद्रोही समूहों का गठन हुआ. साल 2012 के मध्य तक, यह विद्रोह एक पूर्ण गृह युद्ध में तब्दील हो चुका था.
इस युद्ध में कई पक्षों ने भाग लिया, जिनमें विद्रोही समूह, जिहादी संगठन, और असद समर्थक बल शामिल थे. इस युद्ध में रूस, ईरान, और हिजबुल्लाह जैसे बाहरी शक्तियों ने असद का समर्थन किया, जबकि पश्चिमी देशों और क्षेत्रीय शक्तियों ने विद्रोहियों का समर्थन किया. इन सभी संघर्षों के बीच सीरिया का अधिकांश हिस्सा बर्बाद हो गया, और लाखों लोग मारे गए या शरणार्थी बन गए.
2024 में असद की स्थिति
2024 आते-आते सीरिया के हालात और भी खराब हो चुके थे. विद्रोही समूहों ने बहुत तेजी से देश भर में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी इनमें हयात तहरीर अल-शाम (HTS) जैसे समूह शामिल थे, जो अल-कायदा से जुड़े थे. विद्रोहियों ने साल 2023 के नवंबर महीने में एक बड़े हमले की शुरुआत की, और दिसंबर तक वे राजधानी दमिश्क तक पहुंच गए.
इस बीच जिन शहरों पर असद की सरकार का कब्जा था, वे लगातार विद्रोहियों के हमलों से जूझ रहे थे. विद्रोही ताकतों के इस बड़े आक्रमण ने असद के शासन को हिलाकर रख दिया था.
सीरिया में बशर अल असद के खिलाफ विद्रोहियों के बढ़ते हमलों ने उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया था. विद्रोहियों ने पहले होम्स जैसे बड़े शहरों पर कब्जा किया और उसके बाद दमिश्क के आसपास के क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की. साल 2024 में विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर पूरी तरह से घेराबंदी करना शुरू कर दिया, जिससे असद के लिए अपनी सत्ता बनाए रखना मुश्किल हो गया.
असद के समर्थन वाली ताकत के कमजोर होने का विद्रोहियों को मिला फायदा
एक ओर जहां असद के खिलाफ विद्रोहियों का दबाव बढ़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उनके मुख्य सहयोगी रूस और ईरान भी उन्हें पूरी तरह से समर्थन नहीं दे पा रहे थे.
दरअसल असद को साल 2011 से लेकर अब तक सबसे ज्यादा समर्थन रूस और ईरान से ही मिलता रहा है. रूस ने सीरिया के गृहयुद्ध में असद को बचाने के लिए सैन्य सहायता दी थी, जबकि ईरान और हिजबुल्लाह ने भी उसे समर्थन दिया था. लेकिन 2024 तक ये सभी ताकतें असद की मदद करने में सक्षम नहीं रह गई थीं. रूस- यूक्रेन युद्ध के कारण रूस पिछले दो सालों से उलझा हुआ है, जबकि ईरान और हिजबुल्लाह को भी अपनी सीमित संसाधनों के कारण समस्याएं आ रही थीं.
हिजबुल्लाह के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी सीरिया की सरकार
सीरिया की सरकार, विशेष रूप से बशर अल असद, ईरान और हिजबुल्लाह के लिए बेहद महत्वपूर्ण थीं. असद के शासन का समर्थन करने से ईरान को क्षेत्रीय प्रभाव मिलता था, खासकर मध्य पूर्व में. सीरिया ने ईरान के लिए एक रणनीतिक मार्ग का काम किया, जिससे ईरान अपने समर्थकों, जैसे हिजबुल्लाह, को हथियार और संसाधन भेजने में सक्षम था. हिजबुल्लाह भी सीरिया को अपना एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता था, क्योंकि यहां से उसे अपनी ताकत और प्रभाव को बढ़ाने का रास्ता मिलता था.
सीरिया के राष्ट्रपति का ये कदम ईरान- हिजबुल्लाह और के लिए झटका
बशर अल असद के भागने से ईरान और हिजबुल्लाह की क्षेत्रीय रणनीतियों में गहरा प्रभाव पड़ सकता है. सीरिया, जो ईरान का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है, अब विद्रोहियों के हाथों में जा सकता है और इससे ईरान का सीरिया पर नियंत्रण भी समाप्त होने की संभावना है. ऐसा होने पर ईरान की रणनीतिक स्थिति कमजोर हो सकती है. वहीं दूसरी तरफ हिजबुल्लाह, जो सीरिया से होकर अपने सैन्य सप्लाई प्राप्त करता था, उसे भी एक बड़ा झटका लगा है. अब उसे अपनी युद्ध सामग्री और समर्थन के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे, और इससे उसकी सैन्य क्षमता पर भी असर पड़ सकता है.
असद की हुकूमत को क्यों काला अध्याय बताया जा रहा?
बशर अल-असद की हुकूमत को “काला अध्याय” इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि उनके शासन में सीरिया में अत्याचार और बर्बरता का दौर चला. असद ने साल 2000 में राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली और 2024 तक 24 साल तक शासन किया. इससे पहले, उनके पिता हाफिज अल-असद ने 30 सालों तक सीरिया पर राज किया. असद के शासन में लाखों लोगों की जानें गईं और लाखों को अपने घर छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा.
असद पर यह आरोप है कि सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने बेतहाशा हिंसा का सहारा लिया. उन्होंने छात्रों पर गोलियां चलवायीं, टैंकों का इस्तेमाल किया और क्रूरता की सभी सीमाएं लांघ दीं. असद के परिवार ने सीरियाई जनता को लोकतंत्र से दूर रखा और हर उस नेता को मार दिया, जिसने लोकतंत्र की मांग की.
2011 में जब सीरिया के लोग लोकतंत्र की मांग के लिए सड़कों पर उतरे, तो असद ने बेरहमी से उस विद्रोह को दबाने की कोशिश की. उन्होंने हर प्रदर्शनकारी को आतंकवादी करार दिया और उन पर तोप के गोलों से हमला करवाया, जिसके परिणामस्वरूप सीरिया में गृहयुद्ध की शुरुआत हुई. इसके अलावा, असद ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल भी करवाया, जो उनकी हुकूमत की क्रूरता को और भी उजागर करता है.
सीरिया में असद शासन का अंत
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का देश छोड़कर भागना सीरिया के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला मोड़ है. विद्रोहियों ने इतनी तेजी से बढ़त बनाई कि असद के लिए अपनी सत्ता बचाना असंभव हो गया. उनके समर्थन में आए देशों की मदद अब खत्म हो चुकी थी, और विद्रोही ताकतें राजधानी दमिश्क में घुस आई थीं। यही कारण था कि बशर अल असद को सीरिया छोड़ने का फैसला करना पड़ा.
अब सीरिया में असद के बिना क्या होगा, यह देखना बाकी है. हालांकि विद्रोहियों ने बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन देश में शांति और स्थिरता लाना अब भी एक बड़ा सवाल है. असद का भागना सीरिया के भविष्य के लिए एक नया अध्याय खोलता है, लेकिन यह भी स्पष्ट करता है कि सत्ता परिवर्तन और संघर्ष का रास्ता बहुत कठिन और अनिश्चित होता है.