नई दिल्ली सीट से जो जीता वही सिकंदर और जो हारा उसका खराब हो गया सियासी मुकद्दर
नई दिल्ली सीट से जो जीता वही सिकंदर और जो हारा उसका खराब हो गया सियासी मुकद्दर
नई दिल्ली सीट पर तीन दशक से एक ट्रेंड चल रहा है. इस सीट से हारने वाले नेता का सियासी मुकद्दर खराब हो जाता है, वहीं जीतने वाला सिकंदर बन जाता है और मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठता है. नई दिल्ली सीट पर शीला दीक्षित से लेकर अरविंद केजरीवाल तक ने तीन-तीन बार जीत हासिल की और साथ ही वो दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बने.
अंग्रेजों के समय में बसाई गई लुटियंस नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र को अपने में समेटे हुए हैं. इस इलाके की सियासी चमक अंग्रेजों के समय से अभी तक कायम है. नई दिल्ली विधानसभा सीट दिल्ली की सियासत ही नहीं बल्कि सत्ता की दशा और दिशा तय करती है. नई दिल्ली सीट पर जिस भी पार्टी और नेता ने जीत दर्ज की, वहीं दिल्ली की सत्ता का सिकंदर रहा. इस सीट से हारने वाले नेता का सियासी मुकद्दर खराब हो जाता है. नई दिल्ली सीट पर तीन दशक से यही ट्रेंड चला आ रहा है.
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को प्रत्याशी बनाया है. संदीप दीक्षित दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे हैं. शीला दीक्षित इसी नई दिल्ली सीट का प्रतिनिधित्व करती रही हैं. वो तीन बार इस सीट से विधायक रही हैं, लेकिन 2013 में अरविंद केजरीवाल से हार गई थी. संदीप दीक्षित अपनी मां की राजनीतिक विरासत को पाने और अपनी मां की हार का हिसाब बराबर करने के लिए केजरीवाल के खिलाफ उतरे हैं.
नई दिल्ली सीट सत्ता का पावर हाउसदिल्ली में विधानसभा का गठन 1993 में हुआ है, उसके बाद से राजधानी में सात बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र 2008 से पहले तक गोल मार्केट सीट के तहत आता था. 2008 में परिसीमन के बाद से यह सीट नई दिल्ली के नाम से जानी जाती है. इस तरह दिल्ली में सात बार विधानसभा चुनाव हुए और जो पार्टी नई दिल्ली सीट जीतने में कामयाब रही, उसी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनी है. सात चुनाव में तीन-तीन बार कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और एक बार बीजेपी ने जीत हासिल की, जिस पार्टी ने गोल मार्केट और नई दिल्ली सीट जीती, उसकी ही सरकार बनी है.
1993 में नई दिल्ली सीट बीजेपी ने जीती और दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी. इसके बाद 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नई दिल्ली सीट जीती और तीनों ही बार कांग्रेस दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही. इसी तरह से 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट आम आदमी पार्टी ने जीती और तीन बार से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी.
नई दिल्ली सीट जो जीता वही सिंकदरनई दिल्ली सीट जीतने वाली पार्टी की सिर्फ सरकार ही नहीं बनती बल्कि सत्ता के सिंहासन पर उसी का कब्जा होता है. पिछले सात चुनाव में छह बार नई दिल्ली सीट जीतने वाले नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं. 1993 में नई दिल्ली सीट गोल मार्केट के नाम से जानी जाती थी. इस चुनाव में बीजेपी के टिकट पर कीर्ति आजाद विधायक चुने गए थे, दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी. इसके बाद नई दिल्ली सीट पर 1998 से लेकर 2008 तक लगातार तीन बार शीला दीक्षित ने जीत दर्ज की और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी.
अरविंद केजरीवाल ने अपने सियासी सफर का आगाज नई दिल्ली विधानसभा सीट से किया. 2013 से लेकर 2020 तक लगातार तीन बार केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से विधायक बने और तीनों ही बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. इस तरह अब तक जो भी राजनीतिक दल नई दिल्ली सीट पर काबिज हुआ, वही दिल्ली की सत्ता का सिकंदर बना.
जो हारा उसका मुकद्दर हुआ खराबनई दिल्ली विधानसभा सीट से जीतने वाले विधायक सिंकदर बने तो हारने वाले प्रत्याशी का राजनीतिक मुकद्दर खराब हो गया. 1993 के चुनाव में बीजेपी से कीर्ति आजाद विधायक बने और कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले बृजमोहन भामा हारने के साथ ही सियासी वियावान में चले गए. इसके बाद 1998 चुनाव में नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित विधायक बनीं और बीजेपी प्रत्याशी कीर्ती आजाद को हार झेलनी पड़ी. 2003 में कीर्ति आजाद की जगह उनकी पत्नी पूनम आजाद बीजेपी से शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ी, लेकिन उसके बाद से सियासी हाशिए पर चली गईं. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शीला दीक्षित के खिलाफ बीजेपी से विजय जौली चुनाव लड़े. जौली दिल्ली के बीजेपी के बड़े नेता माने जाते थे, लेकिन नई दिल्ली सीट से चुनाव हारने के बाद से दोबारा से उभर नहीं सके.
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट पर कांग्रेस की शीला दीक्षित को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ऐसी शिकस्त दी कि दोबारा से उभर ही नहीं सकी. शीला दीक्षित ने अपनी सीट के साथ-साथ सत्ता भी गंवा दी. इसके बाद अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी से 2015 के चुनाव में नुपुर शर्मा मैदान में उतरी, लेकिन जीत नहीं सकी. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी से सुनील यादव मैदान में उतरे, लेकिन वो जीत नहीं सके. नुपुर शर्मा को बीजेपी ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया तो सुनील यादव गुमनाम हैं.
केजरीवाल के सामने संदीप दीक्षितनई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं और चौथी बार जीत का चौका लगाने के लिए उतर सकते हैं. 2020 में नई दिल्ली सीट पर केजरीवाल को 46226 वोट मिले थे तो बीजेपी के सुनील यादव को 21697 वोटों से शिकस्त दी थी. इस सीट पर तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी रोमेश सभरवाल रहे और उन्हें महज 3206 वोट मिले थे. इस बार केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को उतारा है, लेकिन बीजेपी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. संदीप दीक्षित कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं और शीला दीक्षित के बेटे हैं. इतना ही नहीं अरविंद केजरीवाल के खिलाफ वो सबसे ज्यादा आक्रमक रहने वाले कांग्रेसी नेता है. इसके चलते मुकाबला रोचक हो गया है, लेकिन देखना है कि कैसे केजरीवाल अपनी सियासी नैया पार लगाते हैं?