क्या आप भी डिप्रेशन या ओवरथिकिंग के शिकार हो रहे?

क्या आप भी डिप्रेशन या ओवरथिकिंग के शिकार हो रहे? वजह हो सकती है इन विटामिन की कमी

शरीर में कुछ जरूरी विटामिन्स की कमी होने पर डिप्रेशन और ओवरथिंकिंग जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ये विटामिन्स हमारे दिमाग के कामकाज और मूड को कंट्रोल करने वाले रसायनों में अहम भूमिका निभाते हैं.

डिप्रेशन और ओवरथिंकिंग जैसी मानसिक समस्याएं सिर्फ भावनात्मक और मानसिक स्थिति का नतीजा नहीं होतीं, बल्कि यह पोषण संबंधी कमी से भी हो सकती हैं. शरीर में कुछ जरूरी पोषक तत्वों की कमी से डिप्रेशन का खतरा बढ़ सकता है. 

हमारे शरीर और दिमाग के सही तरीके से काम करने के लिए जरूरी पोषक तत्वों की भूमिका बहुत अहम होती है. ये जरूरी पोषक तत्व हैं- प्रोटीन, विटामिन बी, विटामिन डी, मैग्नीशियम, जिंक, सेलेनियम, आयरन, कैल्शियम, ओमेगा-3 फैटी एसिड. इन पोषक तत्वों की कमी से दिमाग और नर्वस सिस्टम का काम बिगड़ सकता है, जिससे डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दे सकते हैं.

आइए इस स्पेशल स्टोरी में जानते हैं कौन-कौन से विटामिन्स की कमी आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है.

पहले समझिए डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है. इसमें लंबे समय तक उदास मन रहना या किसी भी काम में खुशी या रुचि न होना शामिल है. डिप्रेशन रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाले मूड में बदलाव और एहसासों से अलग होता है. यह जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकता है जिसमें परिवार, दोस्तों और समाज के साथ रिश्ते भी शामिल हैं. 

डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है. जिन लोगों ने दुर्व्यवहार, गंभीर नुकसान या अन्य तनावपूर्ण घटनाओं का सामना किया है, उनमें डिप्रेशन होने की संभावना ज्यादा होती है. महिलाओं में डिप्रेशन होने की संभावना पुरुषों की तुलना में अधिक होती है.

क्या आप भी डिप्रेशन या ओवरथिकिंग के शिकार हो रहे? वजह हो सकती है इन विटामिन की कमी

डिप्रेशन कितना आम है?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का अनुमान है कि दुनिया की लगभग 3.8% आबादी डिप्रेशन का शिकार है. इसमें 5% वयस्क (पुरुषों में 4% और महिलाओं में 6%) और 60 साल से ज्यादा उम्र के 5.7% वयस्क शामिल हैं. दुनिया में लगभग 280 मिलियन (28 करोड़) लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं.

महिलाओं में डिप्रेशन, पुरुषों की तुलना में लगभग 50% अधिक आम है. दुनियाभर में 10% से ज्यादा गर्भवती महिलाएं और  नवजात शिशुओं  की माएं डिप्रेशन का अनुभव करती हैं. हर साल 700,000 से ज्यादा लोग आत्महत्या के कारण मर जाते हैं. 15-29 साल की आयु के लोगों में आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है.

यह जानकर हैरानी होती है कि मानसिक बीमारियों (जैसे डिप्रेशन) का इलाज मौजूद होने के बावजूद गरीब और मध्यम आय वाले देशों में 75% से ज्यादा लोगों को यह इलाज नहीं मिल पाता. ऐसा इसलिए क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में पैसा कम लगाया जाता है जिससे अस्पताल, दवाइयां और डॉक्टर की कमी होती है. मानसिक बीमारियों का इलाज करने के लिए खास ट्रेनिंग की जरूरत होती है, लेकिन ऐसे ट्रेंड डॉक्टर और नर्स बहुत कम हैं. 

एक कारण ये भी है कि समाज में मानसिक बीमारी को अक्सर छिपाया जाता है. लोग इस बारे में बात करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें शर्मिंदगी या भेदभाव का डर होता है. इन सभी कारणों से बहुत से लोग मानसिक बीमारियों का  सही इलाज नहीं ले पाते हैं.

विटामिन की कमी से भी हो सकता है डिप्रेशन!
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के न्यूरोलॉजी सीनियर कंसल्टेंट डॉ पीएन रंजेन ने एबीपी न्यूज को बताया, ये बात एकदम सही है कि कुछ विटामिनों की कमी डिप्रेशन और ज्यादा सोचने की समस्या का कारण बन सकती है. हमारे दिमाग को सही तरीके से काम करने, सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर बनाने के लिए विटामिन और दूसरे पोषक तत्व बहुत जरूरी होते हैं. अगर शरीर में इनकी कमी हो जाए, तो हमारा मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.

न्यूरोलॉजी सीनियर कंसल्टेंट डॉ पीएन रंजेन ने आगे बताया, विटामिन D की कमी से सेरोटोनिन का उत्पादन कम हो सकता है, जो हमारे मूड को ठीक रखने के लिए बहुत जरूरी है. इस कमी के कारण उदासी, थकान और डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. धूप, मछली, अंडे खाकर विटामिन डी की कमी पूरी की जा सकती है.

विटामिन B12 न्यूरोट्रांसमीटर बनाने और दिमाग की नसों को सही तरीके से काम करने के लिए बहुत जरूरी है. इसकी कमी से दिमाग से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं. थकान, बेचैनी, हाथ-पैरों में झुनझुनी या सुन्नपन, याददाश्त कमजोर होना और जरूरत से ज्यादा सोचने की आदत हो सकती है. ये विटामिन मांस, मछली, अंडे, दूध से बनी चीजें और उनके सप्लीमेंट्स से मिलता है.

ये दूसरे विटामिन की कमी भी डिप्रेशन की हो सकती है वजह 
विटामिन B9 फोलेट, डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर बनाने में मदद करता है, जो हमारे मूड को कंट्रोल करते हैं. इसकी कमी से डिप्रेशन और चिंता का खतरा बढ़ सकता है. ये हरी पत्तेदार सब्जियां, बीन्स, फल और फोर्टिफाइड अनाज से मिलता है. वहीं विटामिन B6 सेरोटोनिन और डोपामाइन बनाने के लिए जरूरी है, जो हमारे मूड और व्यवहार को प्रभावित करते हैं. इसकी कमी से मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन और बेचैनी हो सकती है. चिकन, मछली, आलू, केला और मेवा खाने से शरीर में विटामिन बी9 की कमी पूरी होती है.

विटामिन E एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है और हमारे दिमाग को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है. शरीर में इसकी कमी होने से थकान, दिमाग सुस्त होना और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है. बादाम, बीज, पालक और सूरजमुखी के तेल से इसकी कमी पूरी होती है.  

इसके अलावा, ओमेगा-3 फैटी एसिड दिमाग के कामकाज और मूड को स्थिर रखने के लिए बहुत जरूरी होते हैं. मैग्नीशियम की कमी से चिंता और डिप्रेशन बढ़ सकता है.

क्या आप भी डिप्रेशन या ओवरथिकिंग के शिकार हो रहे? वजह हो सकती है इन विटामिन की कमी

डिप्रेशन और ज्यादा सोचने की समस्या से कैसे बचें
डॉ पीएन रंजेन का कहना है कि ऐसा संतुलित आहार खाएं जिसमें ऊपर बताए गए सभी विटामिन और पोषक तत्व भरपूर मात्रा में हों. अगर आपके शरीर में किसी विटामिन की कमी है, तो डॉक्टर की सलाह से सप्लीमेंट्स लें.

विटामिन D का स्तर बढ़ाने के लिए रोजाना कुछ समय धूप में बिताएं. समय-समय पर खून की जांच करवाते रहें ताकि किसी भी विटामिन की कमी का जल्दी पता चल सके और उसका इलाज हो सके. अगर डिप्रेशन या जरूरत से ज्यादा सोचने की समस्या है, तो डॉक्टर या किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

क्या डिप्रेशन का इलाज संभव है?
डिप्रेशन का इलाज बिल्कुल संभव है. साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट (मनोवैज्ञानिक इलाज) डिप्रेशन का पहला इलाज होता है. इसमें मरीज को एक विशेषज्ञ से बात करनी होती है जो आपको अपनी सोच, भावनाओं और व्यवहार को समझने और उन्हें बदलने में मदद करता है. इसके लिए किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जा सकते हैं. दूसरा इलाज है एंटीडिप्रेसेंट मेडिटेशन (दवाइयां). मध्यम और गंभीर डिप्रेशन में मनोवैज्ञानिक इलाज के साथ-साथ दवाइयां भी दी जा सकती हैं. हल्के डिप्रेशन में आमतौर पर दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ती.

मनोवैज्ञानिक इलाज मरीज को नई तरह से सोचने, समस्याओं से निपटने और दूसरों से रिश्ता बनाने के तरीके सिखाता है. इसमें विशेषज्ञों और प्रशिक्षित लोगों के साथ बातचीत शामिल हो सकती है. यह बातचीत आमने-सामने या ऑनलाइन भी हो सकती है. मरीज खुद भी किताब, वेबसाइट और ऐप्स के माध्यम से भी मनोवैज्ञानिक इलाज प्राप्त कर सकते हैं. 

नोट– खबर में दी गई कुछ जानकारी डॉक्टर और WHO की रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

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