जीत के लिए दिमाग की कंडीशनिंग सबसे ज्यादा जरूरी है ?

जीत के लिए दिमाग की कंडीशनिंग सबसे ज्यादा जरूरी है …

दो दिन पहले तक गैरी कास्परोव के नाम सबसे युवा वर्ल्ड चैस चैम्पियन का रिकॉर्ड था, जो कि साल 1985 में 22 साल की उम्र 

ऐसे कई लोग होंगे, जिन्होंने इस युवा को यहां तक पहुंचाने में कड़ी मेहनत की होगी, जिसमें उसके माता-पिता के अथक परिश्रम के साथ, पूर्व वर्ल्ड चैंपियन विश्वनाथन आनंद की एकेडमी का भी योगदान है। लेकिन एक और व्यक्ति हैं, जिनकी बराबरी से सराहना की जानी चाहिए और वो हैं साउथ अफ्रीका के मेंटल कंडीशनिंग कोच पैडी अप्टन, जो कि साल 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम के साथ भी थे।

इस हफ्ते इवेंट के दौरान जब गुकेश अच्छी तरह नहीं सो पा रहे थे, तब उन्होंने पैडी को बुलाया, जिन्होंने कुछ बदलाव बताए, इसमें माहौल बदलने का सुझाव था, जिसके बाद गुकेश आठ घंटे से ज्यादा सो सके और आखिरी कुछ गेम से पहले अपने दिमाग व शरीर को ऊर्जावान रख सके। यहां तक कि उनके पिता रजनीकांत, जिन्होंने डॉक्टरी का करियर पीछे छोड़ दिया, वे सारी प्रतिस्पर्धाओं में गुकेश के साथ होते हैं और इस बात को हमेशा प्राथमिकता देते हैं कि हर प्रतिस्पर्धा से पहले गुकेश एयरपोर्ट या विमान में सो सके।

न सिर्फ आराम, बल्कि सोशल मीडिया से दूरी, मोबाइल की लत से बचना जैसे मुख्य तरीके हैं, जिससे दिमाग की कंडीशनिंग होती है और जीत पर फोकस रहता है। ताज्जुब नहीं कि इस सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन ने मैच के बाद जीत का जश्न मनाने से पहले चैसबोर्ड पर सारे पीस फिर से जमाए और बोर्ड को प्रणाम किया, यह गेम व ईश्वर के प्रति उनकी कृतज्ञता दर्शाने का तरीका था।

इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप चैस खिलाड़ी हैं या नहीं। हर पेशेवर सफलता के लिए यही नियम लागू होते हैं। हुमा कुरैशी से पूछिए जिन्होंने कुछ दमदार किरदार निभाए हैं। उन्होंने कहा, “मैं बिना किसी पछतावे के कहती हूं कि मैं ओटीटी की महारानी हूं, जबकि बहुत से लोगों ने मुझे ओटीटी नहीं करने के लिए कहा था।

वह मोबाइल फोन के बदले अपना फोकस अपने आसपास के लोगों पर रखती हैं और उनके व्यक्तित्व के कुछ खास पहलुओं को अपने काम में शामिल करती हैं। दर्शकों की सराहना के बारे में बात करते हुए, हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “पुरस्कार, प्रतिसाद, सब कुछ मायने रखता है। जो लोग कहते हैं कि ऐसा नहीं है, वे शायद झूठ बोल रहे हैं।

एक कलाकार होने के नाते मुझे लोगों की प्रशंसा व स्वीकृति की जरूरत होती है। लेकिन क्या सिर्फ यही चीजें मायने रखती हैं? शायद नहीं। मुझे लगता है कि आपके आत्म-मूल्य का दूसरों से कोई लेना-देना नहीं है। इसके बिना भी, आप वही व्यक्ति रहते हैं।’

एक और युवा हैं, जो सचेत रहकर दिमाग को कंडीशन करने की कोशिश करती हैं, वो हैं दिल्ली की कलाकार अदिति शर्मा, जो क्रैश और रब से है दुआ जैसे शो का हिस्सा रहींं। रोचक है कि अदिति जैसी नई-नवेली अभिनेत्री की सोशल मीडिया पर दमदार उपस्थिति है, बावजूद इसके कि इन माध्यमों पर बहुत सारी नकारात्मकता है।

इतनी कम उम्र में भी वह बहुत स्पष्ट हैं कि वो अभिनेत्री हैं, इंफ्लुएंसर नहीं। कलाकार होने के नाते उन्हें प्रशंसकों से जुड़े रहना है, तस्वीरें पोस्ट करनी है, और कभी-कभार ही उनसे संवाद करना है, लेकिन वह इंफ्लुएंसर्स वाले काम जैसे प्रमोशन, सलाह या किसी मुद्दे पर पक्ष रखने से बचती हैं। उनकी सबसे अच्छी आदत है कि वह फोन के जितने करीब होती हैं, उतनी ही दूर भी होती हैं।

वह जीवन के हर पल या भावनाओं को हद से ज्यादा शेयर करने से दूर हैं। भले ही वह खुश हों या दुखी, वह इन्हें अपने तक ही रखती हैं। सचेत रहकर उन्होंने फोन या सोशल मीडिया की लत से दूर रहना चुना है। और मेरा यकीन करें, ये सभी लोग अपने वरिष्ठ मेंटर्स या मेंटल कंडीशनिंग कोच की सलाह के बिना कहीं सिर नहीं खपाते।

फंडा यह है कि अगर आपका बच्चा स्मार्ट फोन में चौबीसों घंटे घुसा रहता है, तो समय आ गया है कि आप उनके मेंटल कंडीशनिंग कोच बनें या किसी प्रोफेशनल के पास ले जाएं।

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