क्या भारत धार्मिक भेद भाव की आग में जल रहा हे ?

 धार्मिक प्रतिबंधों के मामले में भारत भी टॉप-25 देशों में शामिल, आंकड़ों में ऐसा दावा क्यों?

धर्म से जुड़ी हिंसा को मापने वाले एक सर्वे में दावा किया गया है कि भारत में धर्म के नाम पर लोगों को परेशान करना, मारपीट, आतंकवाद जैसी घटनाएं बहुत ज्यादा होती हैं.

धर्म से जुड़ी हिंसा को मापने वाली एक रिसर्च रिपोर्ट ने भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवालिया निशान लगा दिया है. प्यू रिसर्च सेंटर की ओर से पब्लिश इस रिपोर्ट के अनुसार, धर्म से जुड़ी हिंसा के मामले में भारत 198 देशों में सबसे ऊपर है. इस रिपोर्ट ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.  इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार धर्म से जुड़े मामलों में काफी दखलअंदाजी करती है.

यह रिपोर्ट ‘सोशल हॉस्टिलिटीज इंडेक्स’ (SHI) के आधार पर तैयार की गई है जो धार्मिक उत्पीड़न, मॉब लिंचिंग, आतंकवाद और धार्मिक रूपांतरण को लेकर झगड़े या धार्मिक चिन्हों को लेकर विवादों को मापता है. इस इंडेक्स में भारत को 10 में से 9.3 नंबर मिले हैं.

रिसर्च में ‘गवर्नमेंट रेस्ट्रिक्शन्स इंडेक्स’ (GRI) के आधार पर भी आंकलन किया गया है. जीआरआई यह मापता है कि सरकारें लोगों के धर्म पर कितनी पाबंदियां लगाती हैं. यह उन घटनाओं को भी देखता है जहां सरकारें धर्म का बहाना बनाकर लोगों को परेशान करती हैं, डराती हैं या कुछ धर्मों को ज्यादा फायदा देना. भारत को GRI में 10 में से 6.4 नंबर मिले.

प्यू रिसर्स के इस दावे को समझने के लिए एबीपी न्यूज ने पक्ष-विपक्ष, वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता से बात की.

रिसर्च में धार्मिक प्रतिबंधों के मामले में भारत की क्या है स्थिति?
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2022 तक दुनिया के ज्यादातर देशों (62%) में सरकार ने धर्म पर कम पाबंदियां लगाईं और समाज में भी धार्मिक सद्भाव ज्यादा रहा. दक्षिण कोरिया, कनाडा और अमेरिका जैसे देश इसके उदाहरण हैं. लेकिन, 12% यानी 25 देशों में सरकार ने धर्म पर काफी पाबंदियां लगाईं और समाज में भी धार्मिक विरोध ज्यादा रहा. 

चिंता की बात यह है कि भारत भी इन देशों में शामिल है. इसके अलावा, इस लिस्ट में नाइजीरिया, सीरिया, पाकिस्तान, इराक, मिस्र, अफगानिस्तान, इजराइल, लीबिया, फिलिस्तीन, यूक्रेन, बांग्लादेश, फ़्रांस, जॉर्डन, ईरान, श्रीलंका, सोमालिया, ट्यूनीशिया, इंडोनेशिया, यमन, लाओस, नेपाल, अल्जीरिया, मालदीव और आर्मेनिया जैसे देश भी शामिल हैं.

वहीं कुछ देश (16%) ऐसे भी हैं जहां सरकार ने धर्म पर काफी पाबंदियां लगाईं, लेकिन समाज में धार्मिक सद्भाव बना रहा. चीन और क्यूबा जैसे देश इसके उदाहरण हैं. कुछ देशों (10%) में सरकार ने धर्म पर कम पाबंदियां लगाईं, लेकिन समाज में धार्मिक विरोध ज्यादा रहा. ब्राजील और फिलीपींस जैसे देश इस कैटेगरी में आते हैं. 

क्या भारत भी हिंसा के रास्ते पर?
इस रिपोर्ट में दो दर्जन देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की खतरनाक तस्वीर पेश की है. इन देशों में सरकारें धर्म पर सख्त पाबंदियां लगाती हैं और समाज में भी धार्मिक नफरत और हिंसा का बोलबाला है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र, भारत, इराक, इजराइल, नाइजीरिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, सीरिया, थाईलैंड और यमन जैसे देशों में पिछले कुछ सालों में धर्म के नाम पर युद्ध, आतंकवाद और खूनी संघर्ष देखे गए हैं.

यह रिपोर्ट बताती है कि भारत और पाकिस्तान में साल 2007 से, जब से यह अध्ययन शुरू हुआ है, हर साल धार्मिक हिंसा और सरकारी पाबंदियां ‘ज्यादा’ या ‘बहुत ज्यादा’ रही हैं. बांग्लादेश में भी ज्यादातर सालों में यही स्थिति रही है. भारत के लिए यह रिपोर्ट चिंताजनक है क्योंकि वह भी उन देशों में शामिल है जहां धार्मिक हिंसा और सरकारी पाबंदियां दोनों ही बहुत ज्यादा हैं.

क्या सच में भारत में धार्मिक प्रतिबंध हैं?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए एबीपी न्यूज ने पक्ष-विपक्ष, वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता से बात की. सभी का यही कहना है कि भारत के कानून में किसी धर्म पर कोई पाबंदी नहीं है. बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने बातचीत में कहा, भारत में सभी धर्मों के लोगों को पूरी आजादी है. पूजा पद्धति किसी की कुछ भी हो सकती है, इससे न कभी सरकारों को आपत्ति हुई है और न ही लोगों को आपत्ति हुई है. भारत में अल्पसंख्यक समुदाय मुस्लिम, पारसी, सिख, बौद्ध धर्म के धार्मिक स्थल से पूरी तरह से सुरक्षित हैं. शायद, इंटरनेशनल एजेंसियां भारत की छवि को खराब करने के लिए इस प्रकार के बयान जारी करती हैं. सच्चाई से इसका कुछ लेना-देना नहीं.

उन्होंने आगे कहा, “दुनियाभर के तमाम देशों में जहां-जहां अल्पसंख्यक रहते हैं, चाहें वे पाकिस्तान हो, बांग्लादेश हो या अफगानिस्तान हो, वहां उनको प्रताड़ित किया जाता है, धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जाता है, उनके धार्मिक स्थलों को तोड़ा जाता है, लेकिन भारत इस मामले में लोकतांत्रिक तरीका अपनाता है. भारत में आजतक किसी भी अल्पसंख्यक का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन नहीं किया गया, न ही कभी किसी अल्पसंख्यक महिला को बहुसंख्यक समाज के पुरुष से शादी करने के लिए बाध्य किया गया.”

धार्मिक प्रतिबंधों के मामले में भारत भी टॉप-25 देशों में शामिल, आंकड़ों में ऐसा दावा क्यों?

बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने आगे कहा, “पूरी दुनिया को पता है पाकिस्तान और बांग्लादेश में किस तरह से हिंदुओं के साथ सलूक किया जाता है. बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन होता है. बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार की इंतेहा कर दी गई और पूरी दुनिया इस पर खामौश है. एक मुसलमान होने के नाते मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि भारत में मुझे पूरी धार्मिक आजादी है. मैं कुरान मानता हूं. मस्जिद में नमाज पढ़ता हूं. कभी सरकार, संस्था या हिंदू भाइयों की वजह से कभी मेरे धार्मिक कामों में कोई रुकावट नहीं आती.”

India among top 25 countries in terms of religious restrictions, why such claim ABPP धार्मिक प्रतिबंधों के मामले में भारत भी टॉप-25 देशों में शामिल, आंकड़ों में ऐसा दावा क्यों?
चिंता की बात है कि भारत भी उन देशों में शामिल है जहां धार्मिक प्रतिबंध सबसे ज्यादा है

फिर आखिर भारत को धार्मिक प्रतिबंध वाले देशों की लिस्ट में क्यों शामिल क्या गया?
इस पर कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने एबीपी न्यूज से कहा कि भारत को इस लिस्ट में शामिल करने की बहुत सारी वजह हैं. पिछले 10-11 साल से भारत में यही काम हो रहा है. मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं. गुजरात के अंदर  10 मस्जिदें तोड़ी गई और एक 500 साल पुराना कब्रिस्तान ध्वस्त कर दिया गया. हर जगह मस्जिद के नीचे शिवलिंग तलाश किया जा रहा है. सर्वे हो रहा है कि 500 साल पहले इस मस्जिद के नीचे क्या था. आज दुनिया बहुत छोटी हो गई है, ऐसा नहीं हो सकता कि कहीं एक जगह कुछ बात हो और वह दुनिया के दूसरे कोने तक न पहुंचे.

उन्होंने कहा, “भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि मुस्लिम विरोधी विचारधारा से उसे फायदा होता है. जिस भी तरीके से भारतीय मुसलमानों को आहट पहुंचे, वही काम बीजेपी करती है. वक्फ बोर्ड, तीन तलाक के खिलाफ कानून लाना, यूनिफॉर्म सिविल कोट का भी यही मकसद है. जबकि कानून यह कहता है कि मंदिर-मस्जिद की स्थिति 1947 जैसी ही रहेगी. उसे बदला नहीं जा सकता. इसके बावजूद अदालतें इस कानून के खिलाफ आदेश दे रही हैं.”

कांग्रेस नेता ने आगे कहा, “इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने कठमुल्ला का देशद्रोही बता दिया. बंगाल के हाईकोर्ट के एक जज ने इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली. संभल के डिस्टिक कोर्ट के जज ने दो घंटे में फैसला सुना दिया. ये खबरें पूरी दुनिया को पता है. यही वजह है कि हमारा मुल्क उन 25 देशों में शामिल हो गया, जहां धार्मिक पाबंदियां सबसे ज्यादा हैं.”

भारत में किस तरह की धार्मिक पाबंदियां हैं?
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी का कहना है कि भारत का कानून धार्मिक पाबंदियां की बिल्कुल इजाजत नहीं देता है. लेकिन भारत में कानून का मजाक बनाया जा रहा है. अगर हाईकोर्ट का जज ये बात करेगा कि ये देश बहुसंख्यकों की भावनाओं के अनुसार चलेगा, तो संविधान तो खत्म हो गया. कानून रह ही नहीं गया. ये बात कहने वाला हाईकोर्ट का जज है और कल भी रहेगा. वह अपनी मर्जी से फैसले करेगा. एक मुख्यमंत्री कह रहा है कि मैं गर्मी निकाल दूंगा, मिट्ठी में मिला दूंगा… ये संविधान के अनुसार नहीं है. बिहार का केंद्रीय मंत्री कह रहा है कि मुसलमानों की दुकानों से कोई चीज न खरीदी जाए. अगर भारत में आप संविधान के खिलाफ काम करेंगे तो आप मंत्री भी रहेंगे, मुख्यमंत्री भी रहेंगे, हाईकोर्ट के जज भी रहेंगे, तो कानून तो मजाक बन कर रह गया है. 

क्या भविष्य में भारत को धार्मिक स्वतंत्रता मिल पाएगी?
इस पर कांग्रेस नेता राशिद ने कहा कि भारत हिंदू-मुस्लमान मोहब्बत के लिए जाना जाता है. ये स्थिति कुछ समय के लिए है, ऐसी स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली है. इस देश में आप हिंदू-मुस्लिम के बीच गलतफहमी कुछ समय के लिए पैदा की जा सकती है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहेगा. भारतीय जनता पार्टी कुछ समय के लिए तो फायदा उठा सकती है और उठा रही है. लेकिन ये मुमकिन नहीं कि ऐसा हमेशा चलता रहेगा. अंग्रेज भी भारत आए, देश के लोगों ने मारकर भगा दिया. मुगल आए, खत्म हो गए. देश के लोग बहुत सर्कुलर हैं.

दूसरे नजरिया से समझिए भारत का नाम शामिल करने की क्या हो सकती है वजह?
दूसरा नजरिया जानने के लिए एबीपी न्यूज ने वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार विष्णु शर्मा से बात की. उन्होंने बताया, ‘दुनियाभर में 57 मुस्लिम देश हैं. यहां दूसरे धर्म के लोगों पर बहुत सी पाबंदियां होती हैं. ऐसे ही 34-35 क्रिश्चयन धर्म अपनाने वाले देश हैं. लेकिन भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. भारतीय कानून में सभी धर्म बराबर हैं. यहां कानून में काफी तरह की छूट है. भारत में कोई भी व्यक्ति खुले में पिशाब कर सकता है, लेकिन इस्लामिक देशों में कोई आम व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता. क्योंकि वहां का कानून इतना सख्त है.’

वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा ने आगे कहा, “क्योंकि भारत में सभी धर्मों को आजादी है इसलिए मुस्लिम या अल्पसंख्यक वक्फ बोर्ड बना सकते हैं. किसी की भी संपत्ति पर कब्जा कर सकते हैं, दावा कर सकते हैं कि ये संपत्ति वक्फ बोर्ड की है. इसी वजह से लोगों में भेदभाव पैदा होता है कि इन लोगों को क्यों ये अधिकार मिल गए, हमें क्यों नहीं मिले. धर्म के आधार पर एक अलग एजुकेशन बोर्ड बना दिया गया. मदरसों में एक खास धर्म के लोगों को पढ़ाया जा रहा है. तभी लोगों के बीच झगड़े होते हैं. दूसरे देशों में ऐसे झगड़े नहीं होते, क्योंकि वहां कानून में इसका इजाजत ही नहीं दी गई है. मुस्लिम कट्टरपंथी देशों में अगर दूसरे धर्म के लोग आवाज उठाने की कोशिश करते हैं, तो कानून के तहत उस आवाज को तुरंत दबा दिया जाता है. वहां के कानून में ये पूरा अधिकार है. इसलिए दो धर्मों के लोगों के बीच विवाद रिकॉर्ड में आते ही नहीं है.”

क्या प्यू रिसर्च की रिपोर्ट गलत है?
इस पर बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने कहा, ‘ऐसी रिसर्च करने वाली एजेंसियों को हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई का भिंडी बाजार, यूपी का मुरादाबाद-अमरोहा, हरियाणा का मेवात में जाना चाहिए. वहां के मुसलमानों को देखना चाहिए. जुमे के दिन मस्जिदों में यहां की भीड़ देखने लायक है. ये हिंदुस्तान ही एक मात्र देश है जहां से हज यात्रा पर सबसे ज्यादा करीब 2.5 लाख मुसलमान हर साल जाते हैं. एयरपोर्ट से लेकर हज कमेटी तक काम करने वाले सभी लोग हिंदू होते हैं. मोहब्बत के साथ सभी हिंदू हज यात्रियों की सेवा करते हैं. हिंदुस्तान गंगा जमुना तहजीब का पूरी दुनिया में नेतृत्व करता है.’

वहीं वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा का कहना है कि प्यू रिसर्च या तमाम रिसर्च एजेंसियां सरकार के पास दर्ज रिकॉर्ड के आधार ही अपनी रिपोर्ट तैयार करती हैं. भारत में सरकार हर तरह का क्राइम दर्ज करती है. अगर भारत सरकार क्राइम का रिकॉर्ड दर्ज ही न करे, तो रिसर्च एजेंसियों के पास डेटा भी नहीं जाएगा. कहीं मॉब लिंचिंग हो गई, गौमांस ले जाते किसी को पकड़ लिया या वक्फ बोर्ड ने किसी की जमीन पर दावा कर दिया तो झगड़ा हो गया. या किसी रथ यात्रा, जुलूस में दूसरे धर्म के लोगों ने पथराव कर दिया तो विवाद हो गया. या किसी दूसरे धर्म के नारे लगा दिए तो रिपोर्ट दर्ज हो गई. 

“दूसरे देशों में सरकारें ये सब रिकॉर्ड ही नहीं करती है. वहां कानून में ही दूसरे धर्म के लोगों को जुलूस निकालने की इजाजत ही नहीं है. अगर भारत हिंदू राष्ट्र होता और कानून में दूसरे धर्म के लोगों को जुलूस निकालने का अधिकार नहीं होता, तो न कोई जुलूस निकालता, न ही कोई विवाद होता और न ही कोई रिपोर्ट दर्ज होती. आज यूपी में हर तरह के क्राइम का डेटा दर्ज किया जाता है तो सबसे ज्यादा क्राइम वाला राज्य हो गया यूपी. अगर क्राइम रिकॉर्ड करना बंद कर दिया जाए, तो सबसे कम क्राइम वाला राज्य बन जाएगा.”

विष्णु शर्मा ने आगे कहा, “भारत ऐसा देश है जहां रविवार को सभी स्कूल-कॉलेज और निजी-सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं. मगर कुछ खास धर्म के लोग शुक्रवार को बंद रखते हैं. उत्तराखंड में हाल ही में देखा गया कि कुछ स्कूलों में मुस्लिम समाज के लोग शुक्रवार को अपने बच्चे भेजते ही नहीं है. जब पेरेंट्स से पूछा गया कि ऐसा क्यों करते हैं, तो बताया कि शुक्रवार को नमाज पढ़ने जाना होता है. फिर उन स्कूलों में तय किया गया कि शुक्रवार को हाफडे बाद छुट्टी कर दी जाएगी. इतनी आजादी सिर्फ भारत में ही है. यहां सभी की मनमर्जी चलती है. यहां लोग अपने अधिकार के लिए लड़ते हैं, इसलिए झगड़ा होता है.”

“चीन में चीन उइगर मुस्लिमों के साथ तरह का अत्याचार होता है, ये पूरी दुनिया जानती है. चीन के लोगों को तो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चलाने तक की आजादी नहीं है. वहां उनके अपने ऐप हैं. चीनी सरकार कोई डेटा किसी देश के साथ शेयर नहीं करती है. भारत में तो लोग हजारों साल पुरानी कुंभ की जमीन पर तक अपना दावा कर देते हैं.”

धार्मिक प्रतिबंधों के मामले में भारत भी टॉप-25 देशों में शामिल, आंकड़ों में ऐसा दावा क्यों?

वहीं मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्ता शबनम खान ने प्यू रिसर्च की रिपोर्ट को गलत बताया. उन्होंने कहा, “मुझे लग रहा है इन्होंने गलत सर्वे कर दिया, क्योंकि भारत देश में किसी पर कुछ पाबंदी नहीं है. शायद भारत की एकता, अखंडता और आपस में लोगों के बीच इतना प्रेम देखकर उनकी कुछ मंशा रही हो. भारत में ताजिया भी निकलता है और रथ यात्रा भी निकलता है. सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल भी होते हैं. भारत के लोग मिल-जुलकर रहते हैं, कभी साजिशाना कुछ लोग हरकत कर देते हैं वह अलग बात है. यहां सुबह-सुबह मंदिर में घंटे बजते हैं और मस्जिद में भी अजान होती है.”

शबनम खान ने आगे कहा, “कभी-कभी इस तरह की सर्वे रिपोर्ट जारी करने के पीछे कुछ एजेंडा होता है. ये दिखाने के लिए कि देखो अल्पसंख्यक कितना परेशान और दुखी है. ये सोचने वाली बात है कि प्यू रिसर्च रिपोर्ट में 2007 से बताया जा रहा है कि भारत उन देशों में शामिल है जहां धार्मिक पाबंदियां सबसे ज्यादा हैं. 2014 से पहले तक तो देश की सरकारें सिर्फ एक खास धर्म के बारे में ही बात करती थीं. फिर तब कैसे भारत में धार्मिक पाबंदी लग सकती हैं. ऐसे में प्यू रिसर्च पर सवाल उठता है.”

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