भ्रष्ट अधिकारियों को लेकर हाईकोर्ट का अहम फैसला, चीफ जस्टिस को भेजा मामला !

भ्रष्ट अधिकारियों को लेकर हाईकोर्ट का अहम फैसला, चीफ जस्टिस को भेजा मामला

 भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति का मामला, हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती….

ग्वालियर•Jan 10, 2025 
MP High Court: हाईकोर्ट की युगल पीठ ने भ्रष्ट अधिकारियों की अभियोजन स्वीकृति पर अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार रोकने किसी भी लोक सेवक पर आरोपों की जांच के लिए लोकायुक्त और उप लोकायुक्त एक स्वतंत्र निकाय बनाया है। भ्रष्टाचार की जांच की अनुमति नहीं दिए जाने से लोकायुक्त अधिनियम 1981 का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। यदि लोकायुक्त किसी के खिलाफ जांच कर रहा है और अभियोजन की मंजूरी नहीं दी जाती है तो, लोकायुक्त बिना दांत का बाघ बन जाएगा।
भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति का मामला
अभियोजन स्वीकृति को लेकर अलग-अलग बेंचों का अलग आदेश है। कोर्ट ने मामले को फुल बेंच को भेजना उचित समझा। इसके लिए इसे चीफ जस्टिस के सामने रखा जाए। दरअसल विशेष स्थापना पुलिस ने अलग-अलग भ्रष्ट अफसरों पर जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी, पर सामान्य प्रशासन विभाग ने अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी, जिससे मामले की जांच आगे नहीं बढ़ सकी। इसको लेकर विशेष स्थापना पुलिस ने 2020 में 6 याचिका दायर की, जिसमें अभियोजन स्वीकृति खारिज करने के फैसले को चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने 22 नवंबर को बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। गुरुवार को न्यायालय में अपना फैसला सुनाते हुए मामला लार्जर बेंच को भेजा है। इसके लिए तीन बिंदु भी निर्धारित किए हैं। गौरतलब है कि 2021 व 2022 में जबलपुर व इंदौर की युगल पीठ ने अभियोजन स्वीकृति को लेकर फैसले दिए, जिसमें स्पष्ट किया कि अभियोजन स्वीकृति निरस्त करने के फैसले को विशेष स्थापना पुलिस न्यायालय में चुनौती नहीं दे सकते।
कोर्ट ने इन सवालों के जवाब के लिए मामला भेजा लार्जर बेंच में
1.क्या विशेष स्थापना पुलिस के पास किसी दोषी लोक सेवक के विरुद्ध लगाए गए आरोपों के संबंध में सामान्य प्रशासन द्वारा निरस्त की अभियोजन स्वीकृति को चुनौती देने का अधिकार है या नहीं।
2. क्या विशेष स्थापना पुलिस की भूमिका केवल मामले की जांच करने या जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक सीमित है।
3. क्या मध्य प्रदेश लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1981 और विशेष स्थापना अधिनियम 1947 को एक साथ रखकर देखा जाए तो यह धारणा बनती है कि विशेष स्थापना पुलिस मामले की जांच कर सकती है। मामले को निष्कर्ष तक पहुंचा सकता है। जिसमें अभियोजन की मंजूरी देने से इनकार करने को चुनौती देना भी शामिल है।
अभियोजन स्वीकृति बना भ्रष्ट अफसरों की ढाल
– मध्य प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों की शिकायत आने या चालान पेश करने की कार्रवाई की जाती है तो अभियोजन स्वीकृत पर मामला अटक जाता है। चालान पेश नहीं होने से भ्रष्ट अधिकारी नौकरी जारी रहती है। वे सेवानिवृत्त भी हो जाते हैं।
-ग्वालियर क्षेत्र में 60 प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के लिए अटके हुए है। विभाग से उनकी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है।
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29 Jul 2024, 8:47 am

राजस्थान में रिश्वतखोर IAS, IPS और RAS अफसरों को बचा रही सरकार, नहीं हो रही कार्रवाई, पढ़ें भ्रष्ट अधिकारियों की पूरी सूच

राजस्थान विधानसभा में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा उठा। भाजपा विधायक अतुल भंसाली ने सवाल पूछा। पिछले पांच वर्षों में 182 अफसरों के खिलाफ कोई अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली। यहां पढ़ें वो बड़े अफसर जिनके खिलाफ सरकार ने कार्रवाई के लिए अपनी मुहर नहीं लगाई है।
  • राजस्थान में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई में देरी
  • एसीबी ने 182 अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की
  • भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति नहीं मिल रही
  • अभियोजन स्वीकृति के लंबित मामलों की सूची जारी

कौन बचा रहा है रिश्वतखोर अफसरों को ?

प्रदेश में करीब 200 अफसर और कर्मचारी ऐसे हैं जो या तो रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार हुए हैं या उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज हुआ है। एसीबी ने जिन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की। उन अफसरों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति ना तो भाजपा सरकार ने दी और ना ही कांग्रेस सरकार ने। दोनों ही पार्टियां कार्रवाई नहीं करने की जिम्मेदारी दूसरे पर थोप रही है जबकि हकीकत में दोनों ही दलों की सरकारें भ्रष्ट अफसरों को बचाती रही है। भाजपा विधायक अतुल भंसाली के सवाल का जवाब देते हुए सरकार की ओर से बताया गया कि अप्रैल 2019 से लेकर मई 2024 तक यानी पिछले पांच साल में 182 अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ एसीबी ने कार्रवाई की लेकिन उन भ्रष्ट कार्मिकों के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति विभाग या सरकार की ओर से नहीं दी गई। कई अफसर को सेवानिवृत्त भी हो गए लेकिन उनके खिलाफ केस चलाने की अनुमति सरकार की ओर से नहीं दी गई।
इन अफसरों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति सरकार ने अटकाई
1. निर्मला मीणा (आईएएस) – अभियोजन स्वीकृति 10 जुलाई 2018 से लंबित
2. नन्नूमल पहाड़िया (सेवानिवृत्त आईएएस) अभियोजन स्वीकृति 28 जून 2022 से लंबित
3. विश्राम मीणा (आईएएस) – अभियोजन स्वीकृति 19 जुलाई 2023 से लंबित
4. पुष्कर मित्तल (आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 17 मार्च 2021 से लंबित
5. दाताराम (आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 12 फरवरी 2021 से लंबित
6. ममता यादव (आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 4 अप्रैल 2022 से लंबित
7. निशू अग्निहोत्री (आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 6 अक्टूबर 2022 से लंबित
8. भैरूंलाल वर्मा (सेवानिवृत्त आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 9 मार्च 2023 से लंबित
9. मोहनलाल गुप्ता (सेवानिवृत्त आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 2 अगस्त 2023 से लंबित
10. महेश गगोरिया (आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 3 जून 2024 से लंबित
11. रामजीलाल वर्मा (सेवानिवृत्त आरएएस) – अभियोजन स्वीकृति 10 जुलाई 2024 से लंबित
12. आश मोहम्मद (सेवानिवृत्त आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 22 अक्टूबर 2019 से लंबित
13. सत्यपाल मिढ्ढा (सेवानिवृत्त आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 16 नवंबर 2021 से लंबित
14. वीरेंद्र कुमार (सेवानिवृत्त आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 24 जनवरी 2022 से लंबित
15. सुगन चंद पंवार (आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 8 मार्च 2022 से लंबित
16. दिव्या मित्तल (आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 27 मार्च 2023 से लंबित
17. जितेंद्र कुमार जैन (आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 10 मई 2023 से लंबित
18. दिव्या मित्तल (आरपीएस) – अभियोजन स्वीकृति 12 जून 2023 से लंबित

2 अप्रैल 2019 से लेकर 27 मई 2024 तक अभियोजन स्वीकृति के लंबित मामलों की सूची संसदीय कार्य मंत्री ने विधानसभा में जारी की। इनमें एक प्रकरण जो आईएएस निर्मला मीणा से जुड़ा है, वह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल (जुलाई 2018) से लंबित है। पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के कार्यकाल के 45 मामले लंबित है जबकि दो प्रकरण मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के कार्यकाल के दो मामले लंबित हैं। मौजूदा सरकार के प्रकरणों में आरएएस महेश गगोरिया और सेवानिवृत्त आरएएस रामजीलाल वर्मा का है। गगोरिया की अभियोजन स्वीकृति जून 2024 से और वर्मा की अभियोजन स्वीकृति जुलाई 2024 से लंबित है।

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