मध्य प्रदेश में लापता हुईं 4 हजार से ज्यादा बेटियों को अब तक नहीं खोज पाई पुलिस
मध्य प्रदेश में पिछले चार वर्षों में 4 हजार से अधिक बेटियों के लापता होने के मामले सामने आए हैं, लेकिन पुलिस इनमें से अधिकांश को खोज नहीं पाई है। यह आंकड़े जनवरी 2021 से लेकर दिसंबर 2024 तक के हैं, और इसमें मानव तस्करी का भी संदेह है।
मध्य प्रदेश में गुम होने वाली बालिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है …
- पुलिस बल की कमी और लापरवाही से बढ़ रही गायब बेटियों की संख्या।
- मानव तस्करी के मामलों में मध्य प्रदेश की स्थिति बहुत चिंताजनक है।
- जबरन पकड़कर ले जाई गईं बच्चियों में से पुलिस ने सिर्फ 659 को खोजा।
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल(Crime Against Women)। मध्य प्रदेश में प्रतिवर्ष जितनी बालिकाएं गायब हो रही हैं, उनमें लगभग 25 प्रतिशत को पुलिस खोज ही नहीं पाती। पिछले चार वर्षों में गुम हुईं चार हजार से अधिक बालिकाओं को खोज पाने में पुलिस पूरी तरह से नाकाम है।
यह आंकड़े जनवरी 2021 से लेकर दिसंबर 2024 तक के हैं। इसमें मानव तस्करी का भी संदेह है। यह प्रदेश के माथे पर कलंक की तरह है। कारण- यह कि सरकार बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी कई योजनाएं चला रही है, लेकिन प्रदेश का पुलिस तंत्र गायब बेटियों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
इसकी एक बड़ी वजह पुलिस बल की कमी भी है। बालिकाओं को खोजने के लिए पुलिस वर्ष 2021 से वर्ष में दो बार ऑपरेशन ‘मुस्कान’ भी चलाती है।
गुम होने वाली बालिकाओं की संख्या बढ़ रही

गुम होने वाली बालिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2024 के अंत तक की स्थिति में पुराने और नए मामले मिलाकर 15 हजार 671 बालिकाएं गुम हुई। इनमें ऑपरेशन मुस्कान और अन्य माध्यमों से 11 हजार 670 बालिकाओं को पुलिस ने खोजा, पर अभी भी चार हजार से अधिक का पता नहीं है।
इसमें मानव तस्करी के लिए उनके अपहरण की आशंका है। बता दें कि अकेले वर्ष 2024 में बालिकाओं और महिलाओं के अपहरण के 10 हजार 400 मामले पंजीबद्ध किए गए हैं।
अब महिलाओं की बात करें तो इनके गुम होने की संख्या हजारों में है। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें अगर महिला के साथ अपराध नहीं होता, एफआईआर कायम करने का भी प्रविधान नहीं है।
जबरदस्ती पकड़कर ले जाई गईं बालिकाओं में पुलिस ने 659 को खोजा
ऑपरेशन मुस्कान के अंतर्गत जनवरी 2021 से फरवरी 2024 के बीच 12 हजार 567 बालिकाओं को खोजा गया, इनमें 659 को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाया गया था।

लैंगिक शोषण के लिए 630, बंधुआ मजदूरी के लिए 17 और नौकरी के लिए 12 बालिकाओं को अपराधी जबरदस्ती पकड़कर ले गए थे। 2,389 बालिकाओं ने बताया कि वे प्रेमी के साथ गई थीं। फिरौती के लिए दो बालिकाओं का अपहरण किया गया था।
पुलिस बल बढ़ाने की जरूरत
महिला अपराधों को रोकने में महत्वपूर्ण पहलू पुलिस की सड़क पर उपस्थिति है। बालिकाओं के गुम होने के बाद उन्हें खोजने में पुलिस की इच्छा शक्ति और पर्याप्त बल आवश्यक है। जितना स्वीकृत बल है, उतना तो देना ही चाहिए, आवश्यकता के अनुसार बल बढ़ाने की भी आवश्यकता है। शहरों में ऐसी घटनाएं अधिक हो रही हैं तो पुलिस की सक्रियता बहुत अच्छे से दिखनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि पुलिस में जो भी अधिकारी या कर्मचारी गड़बड़ करता है तो उसके सेवा से हटाना जरूरी हैं, नहीं तो अपराध कम नहीं होंगे। – अरुण गुर्टू, सेवानिवृत डीजी, पुलिस, मप्र
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मध्य प्रदेश में हर दिन दुष्कर्म की 15, अपहरण व बंधक बनाने की 31 और छेड़छाड़ की 20 घटनाएं
मध्य प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। पिछले वर्ष में दुष्कर्म, अपहरण और छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ी हैं। पुलिस की सुस्ती और कमजोर खुफिया तंत्र के कारण अपराधियों में पुलिस का डर नहीं है। महिला सुरक्षा के लिए विशेष नीतियों और अभियानों की आवश्यकता है।
सामूहिक दुष्कर्म के मामले भी 200 से ज्यादा। प्रतीकात्मक तस्वीर
- हर साल बढ़ रहे हैं बच्चियों और महिलाओं के अपहरण के मामले।
- सुस्त पुलिसिंग, न पर्याप्त संसाधन हैं, न ही कोई मजबूत रणनीति।
- 2024 में महिलाओं के विरुद्ध प्रदेश में 31 हजार से अधिक घटनाएं।
भोपाल(Crime Against Women in MP)। मध्य प्रदेश की आधी आबादी यानी बालिकाओं और महिलाओं को घर से बाहर निकलते ही डर सताने लगता है। यह भय है- अपहरण, दुष्कर्म, दुष्कर्म के प्रयास और छेड़छाड़ जैसी घटनाओं का।
बीते वर्ष 2024 के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर दिन दुष्कर्म की 15, अपहरण व बंधक बनाने की 31 और छेड़छाड़ की 20 घटनाएं हुईं। नारी सशक्तीकरण के दावे बहुत हो रहे हैं, नियम-कानून बन रहे हैं।
जनप्रतिनिधि मंच से अपराध घटने और बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करते हैं, पर ये आंकड़े डराते भी हैं चेताते भी। महिलाओं और बालिकाओं को डराती हैं ऐसी घटनाएं, जो वे हर दिन देख यह सुन रही हैं।
बंधक बनाने के 10 हजार से ज्यादा केस
लगभग साढ़े आठ करोड़ की जनसंख्या वाले मध्य प्रदेश में बीते वर्ष नवंबर तक बालिकाओं और महिलाओं के अपहरण और बंधक बनाने के 10 हजार 400 मामले सामने आए। यानी हर दिन 31 घटनाएं हो रही हैं।
कहने को तो घटना से एक महिला प्रभावित होती, पर सच्चाई यह है कि पूरा परिवार और हर वह महिला भयग्रस्त हो जाती है, जिसे घटना के बारे में पता लगता है। वर्ष 2022 से 2024 के बीच अपहरण और बंधक बनाने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

दुष्कर्म की घटनाएं 5 हजार से ऊपरये तो सिर्फ अपहरण और बंधक बनाने के आंकड़े हैं। दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2024 में पांच हजार से ऊपर पहुंच गईं। सामूहिक दुष्कर्म के मामले भले ही पिछले वर्षों की तुलना में घटे हैं पर घटनाएं 200 से अधिक हैं।
सरकार, समाज, जनप्रतिनिधि, पुलिस संबंधित विभागों को विशेष नीतियों और अभियानों के माध्यम से महिला सुरक्षा में आ रही चुनौतियां से निपटना होगा, नहीं तो दावे सिर्फ दावे रह जाएंगे।

महिला सुरक्षा में चुनौतियां
- थाना स्तर पर सुनवाई ही नहीं : महिला सुरक्षा के मामले में पुलिस को जिस संवेदनशीलता से काम करना चाहिए वह नहीं दिखता। प्रदेश में कई ऐसे उदाहरण हैं कि पीड़िता की थाने में सुनवाई नहीं हुई। इसी माह गुना में एक दुष्कर्म पीड़िता की सुनवाई तीन माह तक नहीं हुई तो वह आरोपितों के नाम की तख्ती गले में लटकाकर थाने पहुंची।
- कमजोर खुफिया तंत्र : महिला सुरक्षा के मामले पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर साबित हुआ है। सीधी में पिछले वर्ष वायस चेंजर एप महिला की आवाज में बात कर आरोपित ने सात लड़कियों से दुष्कर्म किया, पर पुलिस को भनक नहीं लगी।
- पुलिस ही नहीं तो सुरक्षा कौन करे : प्रदेश में पुलिस के एक लाख 25 हजार स्वीकृत बल में से एक लाख ही पदस्थ जो आवश्यकता से बहुत कम हैं। इसके ऊपर दूसरी बात यह कि पहले की तरह पुलिस अब सड़क पर दिखती ही नहीं।
- अपराधियों में पुलिस का डर ही नहीं : भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों में पुलिस के सामने छेड़छाड़ की घटनाएं हो चुकी हैं। रोकने पर स्वजन के साथ मारपीट की गई, पर पुलिस ने मामूली घटना मान लिया। यही कारण है अपराधियों के मन में पुलिस का डर नहीं है। दिसंबर 2024 में भोपाल के ईंटखेड़ी में छेड़छाड़ से तंग नाबालिग ने खुदकुशी कर ली।
- महिला पुलिस पर ही भरोसा नहीं : प्रदेश में कुल पुलिस बल में लगभग छह प्रतिशत ही महिलाएं हैं। उन्हें भी फील्ड पोस्टिंग जैसे थाना, चौकी आदि जगह पदस्थ करने की जगह लाइन या आफिस में लगाया गया है।
सबसे बड़ी चुनौती सोशल मीडिया
महिला अपराध रोकने के लिए सरकार और समाज को साथ-साथ काम करना होगा। पुलिस व्यवस्था में यह प्रयास हो रहे हैं अधिक से अधिक मामलों में सजा हो। सबसे बड़ी चुनौती सोशल मीडिया ने दी है, जिससे युवा भटक रहे हैं। समाज में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। सामाजिक मूल्यों का महत्व घटता जा रहा है। एकल परिवार हैं, जिनमें माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे रहे हैं। बच्चों पर उनका नियंत्रण नहीं है। महिला अपराध का एक और बड़ा कारण नशा भी है। इस पर रोक का प्रयास होना चाहिए। तीसरा हमारे समाज की अभी भी पुरानी सोच है कि पुरुष बलवान और महिला कमजोर है। – अरुणा मोहन राव, सेवानिवृत डीजी, पुलिस