बंधुत्व में है राष्ट्रनिर्माण की शक्ति, नागरिकों को मिले हैं कई अधिकार !

बंधुत्व में है राष्ट्रनिर्माण की शक्ति, नागरिकों को मिले हैं कई अधिकार
Constitution बंधुत्व ही ऐसा मंत्र है जिससे हमारा देश भारत विकसित राष्ट्र के अपने मिशन को पूरा कर सकता है। स्वतंत्रता के बाद सरकार की कार्यप्रणाली के माध्यम से न्याय स्वतंत्रता और समानता को तो धीरे-धीरे प्रसारित किया गया लेकिन बंधुत्व उपेक्षित रहा। कांग्रेस और उसकी ओर से अपनाए गए समाजवाद का जोर सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं पर केंद्रित था।
….बंधुत्व शब्द हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा भारतीय समाज के प्रति गहरी समझ को उजागर करता है, लेकिन इसे लंबे समय तक अनदेखा किया गया। संविधान काफी कठिन परिस्थितियों में लिखा गया। माउंटबेटन के आदेश पर रेडक्लिफ ने राष्ट्र का विभाजन को अंतिम रूप दे दिया था।
नतीजा यह हुआ कि सीमा के दोनों तरफ भीषण अव्यवस्था फैल गई। विभाजन के बाद भी साम्राज्यवादी ब्रिटेन ने हमारी रियासतों का समर्थन जारी रखा था। सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद इस पर लगाम लगी। संविधान सभा के दो साल 11 महीने के अंतराल में हम विभाजन की विभीषिका को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
ऐसे में आजादी से पहले बने नियंत्रक कानूनों को नया नाम देकर फिर से लागू कर दिया गया। नागरिकों को संतुलन का संदेश देने के लिए कई अधिकार दे दिए गए, जबकि उनकी जिम्मेदारियां सिर्फ एक ही अनुच्छेद 51 ए तक ही सीमित थीं। नियंत्रण पर केंद्रित इन कानूनों को प्रशासनिक तंत्र द्वारा भी आसानी से स्वीकार कर लिया गया।
इस तरह देश संविधान की प्रस्तावना के पहले तीन शब्दों न्याय, स्वतंत्रता और समानता पर ध्यान केंद्रित करता रहा और चौथे शब्द बंधुत्व को अधिकांशत: नजरअंदाज करता रहा। इसका एक कारण यह भी रहा कि बंधुत्व ब्रिटिश शासन के लिए सबसे बड़ा खतरा था। नागरिकों की एकजुटता अंग्रेजों को सात समंदर पार खदेड़ सकती थी।
1857 में स्वतंत्रता के प्रथम उद्घोष के बाद जब अंग्रेजों को यह महसूस हुआ कि यदि मंगल पांडेय और रानी लक्ष्मीबाई जैसे योद्धा भारतीय समाज को एकजुट कर लेंगे तो फिर ब्रिटिश शासन के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इसके बाद सुनियोजित तरीके से बंधुत्व पर विभाजन की नीति से हमला किया गया।
स्वतंत्रता के बाद सरकार की कार्यप्रणाली के माध्यम से न्याय, स्वतंत्रता और समानता को तो धीरे-धीरे प्रसारित किया गया, लेकिन बंधुत्व उपेक्षित रहा। कांग्रेस और उसकी ओर से अपनाए गए समाजवाद का जोर सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं पर केंद्रित था। इसे एक परिवार और पार्टी द्वारा अपने हित के लिए अपनाया गया और समाज में निहित मानव शक्ति की अवहेलना की गई।
समाजवाद उस माडल पर आधारित था, जिसकी यूरोप से नकल की गई, जहां द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अत्यधिक सरकारी खर्च ने सामाजिक शक्ति का तिरस्कार किया। इसका परिणाम आज भी वहां राजकोषीय घाटे के रूप में देखा जा सकता है। भारत में कांग्रेस सरकारों ने बंधुत्व को कमजोर कर दिया और छोटे शहरों एवं जिलों के सामर्थ्य की अनदेखी की।
बदलाव तब आया, जब भाजपा के पूर्ववर्ती स्वरूप जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया। यह राष्ट्र निर्माण के सोच में एक महत्वपूर्ण बदलाव था, जिसने राजनीति को नया आयाम दिया। केवल सरकार पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय भाजपा ने समाज की गहरी परतों में जाकर बंधुत्व को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।
इसके लिए झूठे पंथनिरपेक्षता के भ्रम से लड़ना पड़ा और भारतीय संस्कृति को पुनः जागृत करना पड़ा। भाजपा ने समाजवाद और साम्यवाद से संघर्ष किया, जो सरकार की कार्यप्रणाली पर निर्भर रहकर एक भ्रष्ट राज्य बना चुके थे। एकात्म मानववाद ने आर्थिक विचारों को भी बदल दिया, जिसमें स्वावलंबन और उद्यमिता के माध्यम से समावेशी विकास का इंजन विकसित किया गया।
एकात्म मानववाद छोटे शहरों और जिलों से निकला। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका प्रयास’ के माध्यम से बंधुत्व को एक नई आवाज दी है। विकसित भारत के लिए देश ने विकास की जो रणनीति अपनाई है, उसमें प्रत्येक नागरिक की ऊर्जा को उजागर किया जा रहा है।
यहां सरकार सहयोगी की भूमिका निभाना चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह पहचाना है कि हमारा राजनीतिक ढांचा सामाजिक ऊर्जा से परिभाषित हुआ है और यहां परिवार, समुदाय और धर्म महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मोदी सरकार की तीसरी पारी इसका परिणाम है।
स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से बंधुत्व को बेहतर रूप में पुनर्स्थापित किया जा सकता है, क्योंकि ये संस्थाएं लोगों को एकजुट करती हैं। मेरे निर्वाचन क्षेत्र देवरिया में ‘अमृत प्रयास’ नामक दस साल की एक विकास योजना ने स्थानीय प्रशासन, नागरिकों, संगठनों और निजी क्षेत्र के प्रतिभागियों को शामिल किया है।
यह एक उद्यमिता केंद्र द्वारा समर्थित है, जो आसपास के दस जिलों में उद्यमिता इकोसिस्टम का निर्माण करता है। बिना बंधुत्व के यह इकोसिस्टम संभव नहीं हो पाता। जब हम स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहे हैं, तब संविधान की प्रस्तावना का चौथा शब्द बंधुत्व राष्ट्र को नई शक्ति, गति और विस्तार दे सकता है।
विख्यात कवि पाब्लो नेरूदा ने बंधुत्व के आह्वान में कहा है, ‘हमारे मूल मार्गदर्शक सितारे संघर्ष और आशा हैं, लेकिन कोई अकेला संघर्ष नहीं होता, कोई अकेली आशा नहीं होती।’ केवल बंधुत्व ही ऐसा मंत्र है, जिससे भारत विकसित राष्ट्र के मिशन को पूरा कर सकता है। जब करोड़ों नागरिक एक साथ मिलकर एक महान राष्ट्र बनाने के संघर्षों और आशाओं में शामिल होंगे तो उनके जीवन को एक नया अर्थ भी मिलेगा।
(स्तंभकार लोकसभा सदस्य एवं ‘अमृत काल का भारत, उद्यमिता और भागीदारी से राष्ट्र निर्माण’ के लेखक हैं)