संसदीय प्रणाली पर संकट, हंगामे के कारण कामकाज ठप !

संसदीय प्रणाली पर संकट, हंगामे के कारण कामकाज ठप
भारतीय संसद भी अपने कार्य संचालन की संरक्षक है लेकिन सदन के भीतर अमर्यादित व्यवहार शोरगुल और अध्यक्षीय आसन के प्रति अवमान की घटनाएं बहुधा होती हैं। जनता चाहती है कि संसद चले। पूरे समय चले। राष्ट्रीय विमर्श हो और दलों में परस्पर सद्भाव हो। क्या यह संभव है? इसे संभव बनाने के लिए जरूरी है कि सत्तापक्ष एवं विपक्ष कार्य संचालन के मुद्दे पर एकमत हों।
….गत दिवस ही देश ने 76वां गणतंत्र दिवस मनाया। भारतीय गणतांत्रिक संवैधानिक व्यवस्था में संसद सर्वोच्च जनप्रतिनिधि विधायी संस्था है। संसद पर सरकार को जवाबदेह बनाने की जिम्मेदारी है, लेकिन काफी समय से संसद की गरिमा-महिमा पर आंच आ रही है। संसद के पास तमाम काम हैं। संसद का बहुत सारा काम समितियां करती हैं। माना जाता है कि संसदीय समितियों में राजनीतिक दलबंदी नहीं होती। ऐसे में गहन अध्ययन और विवेचन के अवसर होते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
अब संसदीय समितियों में भी लोकसभा और राज्यसभा जैसे हंगामे हो रहे हैं। वक्फ संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेजा गया था, लेकिन समिति की बैठकों में हंगामे की ही खबरें सामने आईं। ऐसी ही एक बैठक में पिछले शुक्रवार को भी भारी हंगामा हुआ। आरोप है कि 10 सदस्यों ने लगातार हंगामा किया। उन्हें निलंबित किया गया। समिति के प्रमुख जगदंबिका पाल के अनुसार उन्हें भी अपशब्द कहे गए। स्थिति चिंताजनक है। लोकसभा और राज्यसभा में हंगामे के कारण अक्सर कामकाज नहीं होता।
अब संसदीय समितियों की भी यही स्थिति है। पूरी संसदीय व्यवस्था में अव्यवस्था है। राज्य विधानमंडल भी संसद की देखादेखी घोर अव्यवस्था के शिकार हो चले हैं। देश के सभी सदनों के पीठासीन अधिकारियों की कई बैठकें हो चुकी हैं। संसद के स्वर्ण जयंती अधिवेशन में हंगामा नहीं होने देने के लिए संकल्प लिए गए थे, लेकिन नतीजा शून्य रहा।
वक्फ अधिनियम का विवेचन कर रही जेपीसी का गठन संसद की इच्छानुसार ही हुआ है। इस समिति का इतिहास पुराना है। बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए 1987 में पहली बार जेपीसी गठित हुई। हर्षद मेहता प्रतिभूति घोटाले की जांच के लिए 1992 में दूसरी जेपीसी का गठन हुआ। प्रतिभूति और बैंकिंग लेनदेन में जेपीसी ने जांच की। शीतल पेय कीटनाशक मुद्दे पर भी जेपीसी का गठन हुआ था। केतन पारेख शेयर घोटाला, वीआइपी चापर घोटाला आदि मुद्दों पर जेपीसी बनीं।
महत्वपूर्ण मामलों में जेपीसी की मांग होती थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से समितियों की बैठकों में भी अराजकता बढ़ी है। वक्फ संशोधन विधेयक काफी महत्वपूर्ण है। वक्फ कानून वक्फ बोर्ड को उत्पीड़क अधिकार देता है। इस कानून के अंतर्गत पीड़ित लोगों की सुनवाई की व्यवस्था नहीं है। स्पष्ट है कि कानून में संशोधन देश की खास जरूरत है। विधेयक का विरोध कर रहे दल वोट बैंक तुष्टीकरण की नीति के चलते ही इसकी राह में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। वे विधेयक के प्रविधानों पर चर्चा के लिए तैयार नहीं हैं। समिति का कार्यकाल बढ़ाना पड़ा है। आखिर विपक्ष दलों के सदस्य जेपीसी की बैठकों में पूरी तैयारी के साथ क्यों नहीं आते? शोर शराबा और व्यवधान तर्क और तथ्य का विकल्प नहीं होते।
अनुशासित सदनों में ही व्यवस्थित कामकाज होते हैं। जबकि अव्यवस्थित सदन निराश करते हैं। संसदीय समिति प्रणाली प्रतिष्ठित रही है। यह किसी विषय के गहन विवेचन और तथ्यपरक विचार-विमर्श की आदर्श व्यवस्था है, लेकिन ऐसी समितियों के कुछ माननीय सदस्य समिति कक्ष की बैठकों में तथ्य और तर्क के साथ नहीं आते। वे समिति में भी अपना राजनीतिक एजेंडॉ चलाते हैं। व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों के कारण तनाव बढ़ाते हैं।
मर्यादा विहीनता का यह कार्य उस देश में हो रहा है जहां वैदिक काल में सभा और समिति प्रणाली थी। आधुनिक संसदीय समिति प्रणाली में विचारण वाले विषयों की तथ्यपरक जांच होती है। आधुनिक भारत में ऐसी समिति प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजी राज के समय 1919 के बाद हुई। पहली लोक लेखा समिति 1921 में बनी थी।
लोकसभा खास प्रयोजन के लिए बजट आवंटित करती है। लोक लेखा समिति आवंटित धनराशि का उपयोग जांचती है। सीएजी प्राथमिक जांच की संस्था है। अनेक संसदीय समितियां हैं, लेकिन संसद के शीर्ष से लेकर विधानसभा तक संसदीय परंपरा का ध्वस्तीकरण आहतकारी है। लोगों में संसदीय व्यवस्था के प्रति निराशा बढ़ी है।
संप्रति संसदीय प्रणाली के अस्तित्व पर संकट है। संविधान सभा ने डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में मसौदा समिति बनाई थी। संविधान सभा ने उनसे अपेक्षा की थी कि वह संविधान निर्माण से जुड़ी संघ शासन समिति, प्रांतीय विधान समिति एवं मौलिक अधिकार सहित सभी समितियों के विचार मसौदे में सम्मिलित करें। डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा का मसौदा रखते हुए कहा था कि, ‘भारत जैसे देश में जिम्मेदारी की छानबीन जरूरी है। प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव सहित सारी संसदीय कार्यवाही उत्तरदायी बनाती हैं।
संविधान में शासन की स्थिरता के बजाय जवाबदेही को ज्यादा महत्व दिया गया है। इसीलिए इसमें संसदीय पद्धति की सिफारिश की गई है।’ संसदीय प्रणाली में विचार विमर्श की विशेष महत्ता है, लेकिन संसदीय हंगामे के बीच यह असंभव है। जहां हंगामा है वहां विचार विमर्श की जगह नहीं होती। कुछ दल, नेता और समूह संविधान को बचाने निकले हैं। सारा देश जानता है कि भारत के संविधान पर कोई संकट नहीं है, लेकिन विधायी और संविधायी अधिकारों से युक्त संसद के अस्तित्व एवं सदन संचालन का संकट है।
दुनिया में कहीं ऐसा हंगामा नहीं होता। ब्रिटिश संसद पुरानी है। अमेरिकी कांग्रेस, स्विट्जरलैंड की संघीय सभा, चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस, जापान की डॉयट और फ्रांस की संसद सामान्य रूप में चलती हैं। इन देशों की कार्यवाही में हुल्लड़ और हंगामे नहीं होते। संसद स्वयं पूर्ण संवैधानिक संस्था है। इंग्लैंड के राजनीतिक विचारकों ने संसद को अपने कार्य संचालन का स्वामी बताया है।
भारतीय संसद भी अपने कार्य संचालन की संरक्षक है, लेकिन सदन के भीतर अमर्यादित व्यवहार, शोरगुल और अध्यक्षीय आसन के प्रति अवमान की घटनाएं बहुधा होती हैं। जनता चाहती है कि संसद चले। पूरे समय चले। राष्ट्रीय विमर्श हो और दलों में परस्पर सद्भाव हो। क्या यह संभव है? इसे संभव बनाने के लिए जरूरी है कि सत्तापक्ष एवं विपक्ष कार्य संचालन के मुद्दे पर एकमत हों।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)