क्या भारत में बढ़ रहा है सांप्रदायिक तनाव ?
क्या भारत में बढ़ रहा है सांप्रदायिक तनाव, राजनीति या चुनाव से हिंसक घटनाओं का कितना संबंध?
साल 2024 को भारत में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा के बढ़े हुए दौर के रूप में याद किया जाएगा? इस साल देश में 59 दंगे हुए. ये आंकड़ा 2023 के 32 दंगों के मुकाबले काफी ज्यादा है.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म की एक नई रिपोर्ट चौंकाने वाली है. 2024 में भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में एकदम से 84% की वृद्धि देखी गई है. इसका मतलब है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल बहुत ज्यादा सांप्रदायिक दंगे हुए.
इस रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में कुल 59 दंगों में से 12 अकेले महाराष्ट्र में हुए, जो देश में सांप्रदायिक तनाव की भयावह तस्वीर पेश करते हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है. अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच झगड़े और हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं.
महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दंगे होना कई गंभीर सवाल खड़े करता है. यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर महाराष्ट्र में ही इतने ज्यादा दंगे क्यों हुए? क्यों हमारी धरती बार-बार लहू-लुहान हो रही है? क्यों भाईचारे और एकता की बातें सिर्फ नारों तक सिमट कर रह गई हैं? क्या यह सिर्फ कानून-व्यवस्था की नाकामी है या फिर इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक साजिश है?
सीएसएसएस की रिपोर्ट पांच प्रतिष्ठित अखबारों में छपी न्यूज रिपोर्ट पर आधारित है. इन पांच अखबारों ने 2023 में 32 सांप्रदायिक दंगों की खबर दी थी, उन्हीं अखबारों ने 2024 में 59 सांप्रदायिक दंगों की खबर दी. सबसे ज्यादा दंगे महाराष्ट्र (12) में हुए, उसके बाद उत्तर प्रदेश (7) और बिहार (7) का नंबर आता है. इन सांप्रदायिक दंगों में 13 लोगों (3 हिंदू और 10 मुस्लिम) की जान गई. हालांकि, इस रिपोर्ट में मणिपुर हिंसा की घटनाओं का जिक्र नहीं है.
पहले समझिए कानून की नजर में सांप्रदायिक हिंसा की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता (IPC) सांप्रदायिक हिंसा को एक ऐसे काम के रूप में देखती है जो धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देता है और जो शांति व्यवस्था बनाए रखने के खिलाफ होता है. मतलब कोई भी ऐसा काम जो लोगों को धर्म, जाति या भाषा के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ भड़काता है या उनमें नफरत पैदा करता है. इसे ही सांप्रदायिक हिंसा कहते हैं.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 ऐसे कामों को रोकने और सजा देने के लिए बनाई गई है जो अलग-अलग आधारों पर समूहों के बीच दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा देते हैं. ये धारा सामाजिक सद्भाव यानी भाईचारा बनाए रखने की कोशिश करती है. इसके तहत ऐसे कामों को करने वालों को जेल की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है. खासकर, अगर ये काम किसी धार्मिक जगह पर या किसी धार्मिक कार्यक्रम के दौरान किया जाए, तो इसे और गंभीर अपराध माना जाता है और सजा भी ज्यादा हो सकती है.
2024 में ज्यादा दंगे होने की वजह क्या है?
ज्यादातर सांप्रदायिक दंगे धार्मिक त्योहारों या जुलूसों के दौरान हुए. 59 दंगों में से 26, यानी लगभग आधे, इन्हीं वजहों से हुए. इनमें अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान चार, गणेश चतुर्थी के दौरान चार, बिहार में सरस्वती मूर्ति विसर्जन के दौरान सात, रामनवमी और बकरीद पर दो-दो, और मुहर्रम, उर्स, दुर्गा मूर्ति विसर्जन, ईद मिलाद-उन-नबी, कार्तिक पूजा और एक स्थानीय हिंदू जुलूस पर एक-एक दंगा शामिल था.
6 सांप्रदायिक दंगे पूजा स्थलों पर विवाद के कारण हुए. मुख्य रूप से कुछ समूह मस्जिदों और दरगाहों को अवैध बताते रहे या ये आरोप लगाते रहे कि वो हिंदू पूजा स्थलों पर बने हैं. इस कहानी ने सांप्रदायिक माहौल को गर्म रखा और कई जगहों पर तनाव बढ़ाया.
5 सांप्रदायिक दंगे पूजा स्थलों के अपमान के कारण हुए. एक घटना मध्य प्रदेश के रतलाम में एक मंदिर में बछड़े का कटा हुआ सिर मिलने पर हुई. दूसरी घटना राजस्थान के भीलवाड़ा में एक मंदिर में गाय की पूंछ का टुकड़ा मिलने पर हुई. तीसरा सांप्रदायिक दंगा त्रिपुरा के जीरानिया में हुआ जब देवी काली की एक मूर्ति को विरूपित कर दिया गया. कर्नाटक के बेंगलुरु में सुरथका के पास एक मस्जिद पर पत्थर फेंके गए. हैदराबाद में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर मुथ्यालम्मा इलाके के एक मंदिर में स्थानीय देवता की मूर्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की.
आखिर क्यों भड़कते हैं ऐसे सांप्रदायिक दंगे?
ये बात समझने के लिए बीजेपी और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता से बात की. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आजम खान ने एबीपी न्यूज से कहा, वर्तमान बीजेपी सरकार की नीतियां कहीं न कहीं अल्पसंख्यक समुदाय को उकसाने का काम करती हैं. कानून का राज अब कहीं भी रह नहीं गया है. इस कारण अल्पसंख्यक समुदाय वर्तमान सरकार से परेशान है. दूसरी वजह है जब हिंदू समाज के जुलूस निकलते हैं तो ऐसे नारे लगाए जाते हैं ताकि दूसरे समाज के लोग उत्तेजित हो जाएं. दूसरे समुदाय के लोगों को जानबूझकर कुछ बोलने या करने के लिए उकासाया जाता है. सरकार भी इन लोगों का समर्थन करती है.
वहीं बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने एबीपी न्यूज से कहा, ‘भारत में सांप्रदायिक दंगों का इतिहास बहुत पुराना है. 1947 से 2025 तक डेटा देखेंगे तो पता चलेगा कि पिछले 10 सालों का समय सबसे सुरक्षित रहा है. 2014 के बाद देश में कोई ऐसा बड़ा दंगा नहीं हुआ, जिसमें घरों को जला दिया गया या सरेआम सैकड़ों लोगों का कत्ल कर दिया गया. अगर दंगे हुए तो कुछ एकआद ही हुए. कभी किसी जुलूस वगैरहा में किसी एक पक्ष की तरह से टेंशन भले ही हो जाती हैं, लेकिन बड़े जान-माल का नुकसान नहीं होता है. कभी किसी समुदाय को लग जाता है कि उन्हें उकसाया जा रहा है, तो उसका रिएक्शन होता है. लेकिन प्रशासन की ओर से फिर तुरंत एक्शन भी लिया जाता है.’
आतिफ रशीद ने आगे कहा, “पहले कांग्रेस सरकार के दौर में महीनों तक दंगे होते रहते थे. पीएसी लगानी पड़ती थी, कर्फ्यू लगाना पड़ता था. लाशों का ढेर लग जाता था, सैकड़ों घर जल जाते थे, 2014 के बाद ऐसा कोई दंगा नहीं हुआ जिसे 24 घंटे के भीतर ही कंट्रोल न किया गया हो. आज कर्फ्यू शब्द हम भूल गए हैं. पहले पुलिस आम लोगों पर गोली चला देती थी, अब ऐसा नहीं होता. आजादी के बाद से 2013 तक देशभर में डेढ़ लाख से ज्यादा दंगे हुए. आज हिंदुस्तान ‘दंगा मुक्त’ होता जा रहा है.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार एसपी भाटिया ने एबीपी न्यूज से कहा, ‘हर समाज में कुछ लोग खुद को धर्म का ठेकेदार बताते हैं. ये लोग दिखाते हैं कि वह समाज के हितैषी हैं, उनके धर्म के हितैषी हैं, वह उनका भला चाहते हैं. इस तरह आम लोगों के विचार को प्रभावित करते हैं, उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं. अपने एजेंडे के अनुसार सरकार के कामकाज की आलोचना करते हैं या तारीफ करते हैं. ये असामाजिक तत्व दंगों को बढ़ावा देते हैं.’
क्या आम चुनाव की वजह से ज्यादा हुए दंगे?
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2024 में सांप्रदायिक दंगों की संख्या में जो अचानक बढ़ी है, उसका एक कारण अप्रैल/मई 2024 में हुए आम चुनाव भी हो सकता है. वहीं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए. इन चुनाव में धार्मिक आधार पर समुदायों को ध्रुवीकृत करने के लिए सांप्रदायिक रंग वाले नफरत भरे भाषणों का इस्तेमाल किया गया. सांप्रदायिक दंगों की संख्या बढ़ने का एक कारण अपराधियों के बेखौफ होने के माहौल को भी माना जा सकता है.
2024 में कुल सांप्रदायिक दंगों का लगभग 20% महाराष्ट्र में हुआ. असल में महाराष्ट्र चुनावी और राजनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण राज्य है जहां NDA और इंडिया गठबंधन दोनों ही NDA से सत्ता छीनने की कोशिश कर रहे थे.
‘हेजेमनी एंड डेमोलेशंस: द टेल ऑफ कम्युनल राइट्स इन इंडिया इन 2024’ नाम की एक रिपोर्ट आई है. इसे सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म (CSSS) के इरफान इंजीनियर नेहा दाभाड़े और मिथिला राउत ने लिखा है. इस रिपोर्ट के अनुसार, ये दंगे अचानक नहीं हुए. बल्कि, ये देश में बढ़ रही ध्रुवीकरण, अपराधियों के बेखौफ होने और सरकारी मिलीभगत का नतीजा हैं.
बीजेपी शासित राज्यों में ज्यादा दंगे?
2024 में हुए 59 सांप्रदायिक दंगों में से 49 ऐसे राज्यों में हुए जहां बीजेपी या तो अपने दम पर या अन्य दलों के साथ गठबंधन में शासन कर रही है. गठबंधन सहयोगियों में महाराष्ट्र में शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) और बिहार में जनता दल शामिल हैं. 59 में से सात सांप्रदायिक दंगे उन राज्यों में हुए जहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का शासन है, जबकि तीन सांप्रदायिक दंगे पश्चिम बंगाल में हुए जहां तृणमूल कांग्रेस सत्ता में है.
इन दंगों ने समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया और लोगों की सांप्रदायिक सोच को और मजबूत किया. मरने वालों की संख्या भले ही कम रही, लेकिन इनका असर बहुत गहरा हुआ. 2024 के दंगों की एक खास बात यह थी कि इनकी योजना पहले से उतने अच्छे से नहीं बनाई गई थी, जैसे पहले के दंगों में होती थी.
खास बात यह है कि 2024 में सांप्रदायिक दंगों के दौरान सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां मुसलमानों की हुईं. कुल 546 गिरफ्तारियों में से 440, यानी एक बहुत बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय से था. जबकि हिंदू समुदाय के कुल 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
क्या इन सांप्रदायिक दंगों के राज्य सरकार जिम्मेदार है?
इन आंकड़ों पर बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने कहा, ‘अगर बीजेपी शासित राज्यों में 49 दंगे हुए हैं, तो 10 दंगे गैर-बीजेपी शासित राज्यों में क्यों हुए? इन दंगों पर भी सवाल उठना चाहिए. इसका मतलब है, जब कोई जुलूस निकलता है तो कोई न कोई दूसरे समुदाय को उकसाने का काम करता है. किसी भी दंगें में सरकार का कोई लेना देना नहीं होता. अगर कहीं किसी दो आम लोगों की लड़ाई हो जाए, तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है. सरकार जिम्मेदार तब है, अगर उन लोगों के बीच दंगे एक महीने तक चलते रहे. तब सवाल उठना चाहिए कि सरकार और प्रशासन ने दंगे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की. इन 49 दंगों में ऐसा कोई नहीं होगा, जो 10 घंटे से ज्यादा चला हो.’
आतिफ रशीद ने सीएसएसएस की इस रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा कि इन रिपोर्ट्स पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि आंकड़ा सिर्फ एक साल या दो साल का नहीं देखना चाहिए. तुलना 1947 से अब तक हर साल हुए दंगों की होनी चाहिए. दंगा करने वालों का किसी धर्म, जात या राजनीतिक पार्टी से कोई लेना-देना नहीं होता है. सरकार जिम्मेदार तब है अगर उन दंगों को भड़कने दिया जाए, उनको रोकने के लिए कुछ कार्रवाई नहीं की जाए. पिछली सरकारों ने अपने राजनीति लाभ के लिए लोगों को उकसाया और महीनों तक दंगे करवाए.
मॉब लिंचिंग की घटनाएं भी बढ़ीं?
CSSS की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में मॉब लिंचिंग की 13 घटनाएं हुईं. इन 13 घटनाओं में 11 लोगों की जान गई, जिनमें एक हिंदू, एक ईसाई और 9 मुस्लिम शामिल है. हालांकि, 2023 में मॉब लिंचिंग की 21 घटनाओं के मुकाबले ये संख्या कम है.
मॉब लिंचिंग की घटनाओं में कमी को सुप्रीम कोर्ट के उन दिशानिर्देशों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जिनमें राज्य द्वारा मॉब लिंचिंग के मामलों में सख्त कार्रवाई की बात कही गई है. न्यायपालिका द्वारा लगातार फटकार ने राज्य को मॉब लिंचिंग की घटनाओं में कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया. हालांकि, गौरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं अभी भी जारी हैं.
13 में से सात यानी 50 फीसदी से ज्यादा मामले गोहत्या के आरोपों से जुड़े थे. सांप्रदायिक दंगों की तरह महाराष्ट्र में मॉब लिंचिंग की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं. उत्तर प्रदेश में भी मॉब लिंचिंग की तीन घटनाएं हुई हैं. जबकि छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा में दो-दो घटनाएं हुईं और कर्नाटक में एक घटना दर्ज की गई.
क्या राजनीतिक नेताओं और सोशल मीडिया की भी सांप्रदायिक हिंसा में कोई भूमिका है?
इस पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आजम खान ने कहा, ये बात बिल्कुल सही है. सोशल मीडिया पर किसी का कंट्रोल नहीं है. सरकार को इस पर पॉलिसी बनाने की जरूरत है. सोशल मीडिया पर किसी भी धर्म के खिलाफ बयानबाजी करने पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. क्योंकि इससे कहीं न कहीं माहौल खराब होता है.
वहीं बीजेपी नेता आतिफ रशीद का मानना है कि कुछ राजनीतिक दल भी दंगा भड़काने की कोशिश करते हैं. 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान कुछ राजनीतिक दल कह रहे थे कि ये मुद्दा इंटरनेशनल मीडिया के सामने उठाओ. उस वक्त शायद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आए हुए थे. खुलेआम उकसाने का काम किया जा रहा था.
कैसे सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के बहकावे में आ जाते हैं लोग?
एबीपी न्यूज ने वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद शोएब से बात की. उन्होंने बताया कि भारत में ज्यादातर लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो सोशल मीडिया या टीवी पर कोई खबर देखते ही उसे सच मान लेते हैं और फिर उसी के आधार पर अपना ओपिनियन बना लेते हैं. आजकल AI भी काफी एक्टिव है. हम जिस तरह की न्यूज देखना चाहते हैं, सोशल मीडिया पर उसी तरह की खबर हमें ज्यादा दिखती हैं. इस तरह सोशल मीडिया का लोगों की ओपिनियन बनाने में काफी योगदान होता है.
मोहम्मद शोएब ने आगे कहा, ‘बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है. रोजगार, काम-धंधा करने वाले लोगों के पास दंगा या रैली में शामिल होने का समय नहीं होता है. ऐसे में राजनीतिक लोगों को रिक्रुएटमेंट करने में दिक्कत होती है.’
दंगों का राजनीति से क्या है संबंध?
मोहम्मद शोएब का कहना है कि सांप्रदायिक दंगों का सीधा-सीधा ताल्लुख राजनीति से है. ज्यादातर राजनीतिक दल ‘डिवाइड एंड रूल’ (डिवाइड एंड रूल) की पॉलिसी अपनाते हैं. ऐसा ब्रिटिश शासन होता आ रहा है. हुकुमत करने के लिए हर जगह ये नियम अपनाया जाता है और ये काम भी करता है. कुछ बड़े नेताओं ने अपने बयान में कहा भी है कि विकास जरूर है, लेकिन चुनाव जीतने के लिए हिंदू-मुस्लिम करना ही पड़ेगा. ये एकदम बात सही है, तभी कुछ राजनीतिक दल अपने कार्यकाल में अच्छा काम करने के बावजूद चुनाव हार जाते हैं. इसलिए नेता अब चुनाव में वही सामान बेचते हैं, जो बिकता है.
मोहम्मद शोएब ने सांप्रदायिक दंगों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि अगर सरकार चाहे तो कोई दंगा नहीं होगा. सरकार के पास कानून व्यवस्था है, सरकार के पास फोर्स है. सरकार अगर लोगों के मन कानून का डर पैदा कर दे और कानून के तहत सजा दे तो कोई दंगा नहीं करेगा. दंगाईयों को सरकार या किसी न किसी पॉलिटिकल पार्टी का साथ मिलता है. तभी वह दंगे करते हैं. असल में जुर्म करने वाले इतने बुरे नहीं होते, लेकिन उन्हें सजा न देकर अदालत बिगाड़ देती है.
सांप्रदायिक हिंसा का भारत की इकनॉमी पर क्या असर होता है?
सांप्रदायिक हिंसा के कई गंभीर परिणाम होते हैं, जो समाज को हर तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. सांप्रदायिक हिंसा में बहुत से लोग अपनी जान गंवा देते हैं, जिससे परिवार और समुदाय तबाह हो जाते हैं. ये नुकसान इतना बड़ा होता है कि इसकी छाप पीढ़ियों तक बनी रहती है.
लोगों के घर, दुकानें और धार्मिक स्थल अक्सर दंगों में जला दिए जाते हैं, इससे काफी आर्थिक नुकसान होता है. लोगों की रोजी-रोटी छिन जाती है और समाज का ढांचा बिगड़ जाता है. समाज में एकता और भाईचारा कमजोर होता है. लोगों का एक-दूसरे पर से भरोसा उठ जाता है. पुराने रिश्ते टूट जाते हैं और समाज में विभाजन पैदा हो जाता है.
हिंसा की वजह से सरकार और लोगों का ध्यान और पैसा दूसरी जरूरी चीजों से हटकर दंगों से निपटने में लग जाता है, इससे देश का विकास रुक जाता है. इसके साथ ही, हिंसा के माहौल के कारण बाहर के लोग भारत में निवेश करने से डरते हैं जिससे आर्थिक नुकसान होता है. जो लोग दंगों में बच जाते हैं, उनके मन में डर, चिंता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो जाती हैं. राजनीतिक रूप से सांप्रदायिक हिंसा लोकतंत्र को कमजोर करती है, कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकती है.
अर्थशास्त्र के जानकार मोहम्मद शोएब ने बताया, ‘प्राइवेट निवेशक कम निवेश में ज्यादा से ज्यादा प्रोफिट कमाना चाहते हैं. निवेशक कभी ऐसी जगह या देश में निवेश नहीं करते हैं जहां अक्सर दंगे होते रहते हैं या माहौल खराब रहता है. देखा जाए तो ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज साउथ साइड में है, जैसे- बैंग्लोर, हैदराबाद, महाराष्ट्र. यूपी-बिहार में निवेशक कम आते हैं, क्योंकि यहां अच्छा माहौल नहीं है. भारत में 95 फीसदी अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर है. ये लोग न टैक्स देते हैं, न ही ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं. ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर को जब तक नहीं बढ़ाएंगे, तब तक इकनॉमी में बूस्ट नहीं आता है. इकनॉमिक स्टेबिलिटी, पॉलिटिकली स्टेबिलिटी, कम्यूनल हार्मोनी, एजुकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, बैंकिंग सिस्टम, कानून व्यवस्था ये सब एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं.’
अगले 5 साल में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं कम होंगी या बढ़ेंगी?
इस पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आजम खान ने कहा, ‘इन घटनाओं को कम करने के लिए सरकार को कुछ कदम उठाने होंगे. सरकार को सिर्फ एक समुदाय को टारगेट करके कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. अगर सरकार ने अपनी नीतियां नहीं बदली, तो सुधार की गुंजाइश कम है. जब एक समुदाय के लोगों पर कार्रवाई नहीं होती है, तो उनके अंदर से डर खत्म हो जाता है. ऐसे में फिर दंगे भड़कते हैं.’
आजम खान ने आगे कहा, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है कि सांप्रदायिक दंगों की आड़ में कुछ खास समुदाय के लोगों को टारगेट किया जाता है. कुछ असामाजिक तत्व खास समुदाय को टारगेट करने के लिए प्लान करते हैं.
वहीं बीजेपी नेता आतिफ रशीद ने कहा, देश में जैसे-जैसे कांग्रेस पार्टी कमजोर होती जाएगी, वैसे-वैसे भारत दंगा मुक्त होता चला जाएगा. कांग्रेस ने हमेशा सुनियोजित तरीके से देश में दंगे भड़काकर, हिंदू-मुस्लिम के बीच आग लगाकर अपना झंडा फहराने की कोशिश की है. ये झंडा जैसे जैसे गिरेगा, हिंदुस्तान दंगा मुक्त होगा.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार एसपी भाटिया ने कहा, सरकार की भी कुछ खामियां हैं, जिस वजह से दंगे भड़कते हैं. दंगे करने वाले शरारती तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. अगर पारदर्शिता से कार्रवाई होगी, तो किसी की दंगा करने की हिम्मत नहीं होगी. भारत की संस्कृति पूरे विश्व में अलग पहचान रखती है. शांति का माहौल बनाकर रखा जाए, तो एक दिन भारत जरूर विश्व गुरु बनेगा.