किसी नदी का पानी पीने या नहाने लायक है या नहीं, ये कैसे होता है तय?

किसी नदी का पानी पीने या नहाने लायक है या नहीं, ये कैसे होता है तय?

River Water Pollution Measurement: हाल ही में महाकुंभ के दौरान गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता की जांच करके कहा गया है कि कुंभ के दौरान पानी नहाने लायक था. तो आखिर इस तरीके की जांच कौन करता है.

River Water Pollution Measurement: हाल ही में महाकुंभ के दौरान गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता की जांच करके कहा गया है कि कुंभ के दौरान पानी नहाने लायक था. तो आखिर इस तरीके की जांच कौन करता है.

River Water Pollution Measurement: अगर आप भारत का नक्शा उठाकर देखें तो आपको देश के अंदर कई नदियां मिलेंगी. कुछ मुख्य नदियां तो नक्शे में दिखाई जाती हैं, वहीं कुछ को तो दर्शाया भी नहीं जाता है. हमारे देश में नदियों की पूजा होती है. देश में गंगा नदी को सबसे पवित्र माना जाता है. हाल ही में जब महाकुंभ चल रहा था, उस वक्त CPCB ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा था कि गंगा-यमुना के पानी में हाई लेवल फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया है, जिससे कि अब पानी नहाने लायक नहीं बचा है. वहीं हाल ही में CPCB ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महाकुंभ में गंगा का पानी नहाने लायक था. ये तय मानकों पर खरा उतरा है. नदी का पानी पीने लायक या नहाने लायक है कि ये तय कैसे होता है. चलिए विस्तार से बताएं.

भारत में नदियों में प्रदूषण की जांच का पता करने के लिए देश में CPCB यानि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काम करता है. ये देश में जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और इसमें कमी लाने की कोशिश करता है.

भारत में नदियों में प्रदूषण की जांच का पता करने के लिए देश में CPCB यानि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड काम करता है. ये देश में जल प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और इसमें कमी लाने की कोशिश करता है.
CPCB हर राज्य में और क्षेत्रों में नदियों और कुओं के पानी की सफाई के लिए बढ़ावा देता है और इसके जल की निगरानी करता है.

CPCB हर राज्य में और क्षेत्रों में नदियों और कुओं के पानी की सफाई के लिए बढ़ावा देता है और इसके जल की निगरानी करता है.
CPCB जल गुणवत्ता की निगरानी के लिए राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NWMP) के तहत काम करता है. यही जांच के जरिए ये तय करता है कि आखिर नदी के जल में प्रदूषण की कितनी मात्रा है और ये पीने योग्य या नहाने योग्य है कि नहीं.

CPCB जल गुणवत्ता की निगरानी के लिए राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NWMP) के तहत काम करता है. यही जांच के जरिए ये तय करता है कि आखिर नदी के जल में प्रदूषण की कितनी मात्रा है और ये पीने योग्य या नहाने योग्य है कि नहीं.
ये नदी के अलग-अलग हिस्सों से पानी के सैंपल कलेक्ट करते हैं और इनको केमिकल और बायोलॉजिकल टेस्ट के लिए लैब में भेजा जाता है. जहां इनकी जांच होती है.

ये नदी के अलग-अलग हिस्सों से पानी के सैंपल कलेक्ट करते हैं और इनको केमिकल और बायोलॉजिकल टेस्ट के लिए लैब में भेजा जाता है. जहां इनकी जांच होती है.
इस जांच में देखा जाता है कि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) की कितनी मात्रा है.

इस जांच में देखा जाता है कि पानी में घुली हुई ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) की कितनी मात्रा है.
इस दौरान पानी कितना खारा और कितना एसिडिक है इस बात का पता लगाया जाता है. इसके अलावा इसमें हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस और अन्य कीटाणुओं की जांच करता है.

इस दौरान पानी कितना खारा और कितना एसिडिक है इस बात का पता लगाया जाता है. इसके अलावा इसमें हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस और अन्य कीटाणुओं की जांच करता है.
अगर बिना प्रदूषण को नापे और पानी अच्छा है या नहीं बताए बिना लोग उसका इस्तेमाल करेंगे तो गंदे पानी की वजह से टाइफाइड बुखार, हैजा और हेपेटाइटिस ए या ई जैसी खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं.

अगर बिना प्रदूषण को नापे और पानी अच्छा है या नहीं बताए बिना लोग उसका इस्तेमाल करेंगे तो गंदे पानी की वजह से टाइफाइड बुखार, हैजा और हेपेटाइटिस ए या ई जैसी खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं.

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