देश में दुधारू पशुओं की संख्या, राज्यवार आंकड़ा क्या है?

देश में दुधारू पशुओं की संख्या, राज्यवार आंकड़ा क्या है? किसानों की आय का कितना बड़ा स्रोत

उत्तर भारत और मध्य भारत में दुधारू गायों की संख्या ज्यादा है. पूर्वोत्तर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संख्या कम है. दक्षिणी राज्यों में भी दुधारू गायों की संख्या अच्छी है.

दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है. भारत एक कृषि प्रधान देश भी है, जहां 60% से अधिक आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर करती है. खेती के साथ-साथ दुग्ध उत्पादन किसानों के लिए एक प्रमुख आय स्रोत बन चुका है. खासकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए दुधारू पशु आर्थिक स्थिरता का एक मजबूत आधार हैं.

एक भारतीय किसान 2-5 दुधारू पशु पालकर हर महीने 10,000-50,000 रुपये तक आसानी से कमा लेता है. दूध का हर दिन बिक्री का बाजार होता है, इससे किसानों को खेती की तरह सीजनल उतार-चढ़ाव का सामना नहीं करना पड़ता. दूध के अलावा किसानों को घी, दही, पनीर, मक्खन, छाछ और खोया जैसे उत्पादों की बिक्री से ज्यादा मुनाफा होता है.

1 लीटर दूध की कीमत 50 से 70 रुपये होती है, जबकि उसी दूध से बने घी की कीमत 600 से 1200 रुपये प्रति किलो तक हो सकती है. इससे किसानों को दूध बेचने से ज्यादा मुनाफा मिलता है. 

भारत में दुधारू पशुओं की क्या है स्थिति
20वीं पशुधन गणना के मुताबिक, दूध देने वाली गाय और सूखे दुधारू पशुओं की संख्या 74.59 मिलियन (7.45 करोड़) है. 19वीं पशुधन गणना में दुधारू पशुधन की संख्या 67.54 मिलियन (7.75 करोड़) थी. यानी, दुधारू पशुधन की संख्या में 10.44% बढ़ गई.

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 85 लाख 40 हजार 455 दुधारू गायें हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश (67,88,245), बिहार (65,91,370), पश्चिम बंगाल (64,39,350) और राजस्थान (63,31,640) सबसे ज्यादा दुधारू पशु वाले राज्य हैं. लक्षद्वीप (740), दमन और दीव (705) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (14,760) में सबसे कम संख्या है. चंडीगढ़ (7460) और मिजोरम (15,908) में भी संख्या कम है. 

उत्तर भारत और मध्य भारत में दुधारू गायों की संख्या ज्यादा है. पूर्वोत्तर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संख्या कम है. दक्षिणी राज्यों में भी दुधारू गायों की संख्या अच्छी है, जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक.

देश में दुधारू पशुओं की संख्या, राज्यवार आंकड़ा क्या है? किसानों की आय का कितना बड़ा स्रोत

दुधारू पशुधन से किसानों की आय और दूध का उत्पादन कितना बढ़ा?
लोकसभा में एक सवाल में सरकार ने बताया, यह तो नहीं पता कि दुधारू पशुओं से किसानों की कमाई कितनी बढ़ी है, लेकिन सरकार ने पशुपालन और डेयरी विभाग के जरिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी योजनाएं चलाईं. इससे देश में दूध का उत्पादन बहुत बढ़ गया है. 2014-15 में दूध का उत्पादन 146.31 मिलियन टन था. 2023-24 में यह बढ़कर 239.30 मिलियन टन हो गया. यानी, पिछले 10 सालों में दूध का उत्पादन 63.55% बढ़ गया. 

2014-15 में एक जानवर से हर साल औसतन 1640 किलो दूध मिलता था. 2023-24 में यह बढ़कर 2072 किलो हो गया. यह 26.34% की बढ़ोतरी है, और यह दुनिया में सबसे ज्यादा है. सरकारी योजना से दूध का उत्पादन और पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ी है, जिसका फायदा दूध का काम करने वाले सभी किसानों को हुआ है.

राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी 2024 के अनुसार, दूध का उत्पादन मूल्य भी बढ़ा है. 2014-15 में दूध का उत्पादन मूल्य 4.95 लाख करोड़ रुपये था. 2022-23 में यह बढ़कर 11.16 लाख करोड़ रुपये हो गया. 

सरकार ने दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं?
लोकसभा में पूछे गए इस लिखित सवाल में सरकार ने कहा, भारत सरकार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ाने के प्रयासों में मदद करने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत कई कदम उठा रही है. राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग पूरे देश में कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) को बढ़ावा दे रहा है. इसका मकसद देशी नस्लों समेत मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है. इससे देश में दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ेगी.

कृत्रिम गर्भाधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मादा पशु को प्राकृतिक रूप से गर्भधारण कराने के बजाय, वीर्य को सीधे गर्भाशय में डाला जाता है. कृत्रिम गर्भाधान से पशुओं में फैलने वाली कुछ बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है. बेहतर नस्ल के पशु ज्यादा दूध देते हैं, जिससे दूध का उत्पादन बढ़ता है और किसानों की आय भी बढ़ती है.

सरकार चाहती है कि ज्यादा मादा बछड़े पैदा हों, क्योंकि मादा पशु ही दूध देते हैं. इसके लिए वह लिंग वर्गीकृत वीर्य और IVF जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रही है. इससे बेहतर नस्ल के पशु पैदा होंगे और दूध का उत्पादन बढ़ेगा.

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अच्छी नस्ल के पशु: सरकार की कोशिश
सरकार चाहती है कि अपने देश की गाय और भैंस की नस्लें अच्छी हों, जो ज्यादा दूध दें. इसके लिए सरकार पशुओं के बच्चों की जांच करती है और उनके परिवार को देखती है. इससे पता चलता है कि कौन से पशु अच्छी नस्ल के हैं. यह काम गिर-साहीवाल जैसी गायों और मुर्रा-मेहसाणा जैसी भैंसों के लिए किया जा रहा है. राठी, थारपारकर, हरियाना, कांकरेज जैसी गायों और जाफराबादी, नीली रावी, पंढरपुरी और बन्नी जैसी भैंसों के लिए भी यही किया जा रहा है.

सरकार पशुओं के जीन की जांच भी कर रही है. इससे पता चलता है कि कौन से पशु अच्छी नस्ल के हैं और उनके बच्चे भी अच्छी नस्ल के होंगे. इसके लिए गायों के लिए ‘गौ चिप’ और भैंसों के लिए ‘महिष चिप’ बनाई गई है. 

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