ग्लोबल साउथ’: पूरी दुनिया में शांति स्थापना का केंद्र, भारत की क्या भूमिका?
ग्लोबल साउथ’: पूरी दुनिया में शांति स्थापना का केंद्र, भारत की क्या भूमिका?
ग्लोबल साउथ” नाम सबसे पहले 1969 में अमेरिकी विद्वान कार्ल ओग्लेसबी ने दिया था. इसका मतलब है उन देशों का समूह जो पहले राजनीतिक और आर्थिक रूप से शोषित हुए थे.
आज की दुनिया में “ग्लोबल साउथ” यानी दक्षिणी देशों का समूह शांति बनाने में एक बड़ा और भरोसेमंद नाम बन रहा है. ये देश अब दुनिया के सामने एक नया रास्ता दिखा रहे हैं, खासकर तब जब पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाली कोशिशें कमजोर पड़ रही हैं. हाल ही में रियाद में हुई शांति वार्ता इसका एक उदाहरण है. संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसी बड़ी संस्थाओं के साथ मिलकर ये देश यूक्रेन जैसे संकटों में शांति लाने की कोशिश कर रहे हैं. इस खबर में हम जानेंगे कि ग्लोबल साउथ क्या है, ये शांति में कैसे मदद कर सकता है, इसमें क्या मुश्किलें हैं और भारत इसमें क्या भूमिका निभा सकता है.
1. ग्लोबल साउथ क्या है?
“ग्लोबल साउथ” नाम सबसे पहले 1969 में अमेरिकी विद्वान कार्ल ओग्लेसबी ने दिया था. इसका मतलब है उन देशों का समूह जो पहले राजनीतिक और आर्थिक रूप से शोषित हुए थे. ये देश ज्यादातर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया में हैं. ये इलाके “ब्रांड्ट लाइन” के नीचे आते हैं. ब्रांड्ट लाइन 1970 में बनाई गई एक काल्पनिक रेखा है जो दुनिया को अमीर उत्तरी देशों और गरीब दक्षिणी देशों में बांटती है. ये रेखा लगभग 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर है.
ग्लोबल साउथ को यूरोप और उत्तरी अमेरिका के “बाहरी इलाके” भी कहा जाता है. यहां के देशों की आमदनी कम है और इन्हें राजनीतिक व सांस्कृतिक रूप से कम अहमियत दी जाती रही है. इस समूह में चीन और भारत जैसे बड़े देश भी शामिल हैं.
2. ग्लोबल साउथ शांति में कैसे मदद कर सकता है?
ग्लोबल साउथ दुनिया में शांति लाने के लिए कई तरीकों से काम कर सकता है.-
निष्पक्ष मध्यस्थ की भूमिका: ग्लोबल साउथ के देश किसी भी गुट में शामिल नहीं होते। इसलिए इन्हें भरोसेमंद और निष्पक्ष माना जाता है। जैसे, रूस-यूक्रेन संकट में भारत ने दोनों पक्षों से बात की और अपनी तटस्थता दिखाई।
शांति सैनिकों का योगदान: ये देश संयुक्त राष्ट्र की शांति सेनाओं में सबसे ज्यादा सैनिक भेजते हैं। भारत ने कांगो में और अफ्रीकी यूनियन ने सोमालिया में शांति बनाए रखने में मदद की है।
बातचीत का मंच: ग्लोबल साउथ के देश अपने मंचों पर बातचीत करवाते हैं. ये मंच पश्चिमी देशों से अलग होते हैं. जैसे, ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) ने यूक्रेन संकट में शांति की अपील की.
न्याय की आवाज: इन देशों का औपनिवेशिक इतिहास रहा है. इसलिए ये देश आजादी, बराबरी और दूसरों के मामले में दखल न देने की बात जोर-शोर से उठाते हैं. अफ्रीकी देशों ने इसे खूब कहा है.
सभी को साथ लेकर चलना: ग्लोबल साउथ महिलाओं को भी शांति प्रक्रिया में शामिल करता है. भारत ने लाइबेरिया में महिलाओं की पूरी पुलिस यूनिट भेजी थी, जो UN के लिए काम करती थी.
3. ग्लोबल साउथ के सामने क्या मुश्किलें हैं?
हालांकि ग्लोबल साउथ शांति लाने में सक्षम है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियां भी हैं.
शांति समझौते का टिकना मुश्किल: अगर पहले से मजबूत शांति समझौता नहीं होगा, तो इन देशों की कोशिशें जंग के बीच फंस सकती हैं।
सीमाओं पर झगड़ा: रूस-यूक्रेन जैसे संकटों में सीमाओं पर सहमति नहीं होती। इससे शांति मिशन चलाना मुश्किल हो जाता है और फिर से लड़ाई शुरू होने का खतरा रहता है।
UN की मंजूरी जरूरी: इन देशों को अपनी कोशिशों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी चाहिए। लेकिन वहां देशों के बीच मतभेद के कारण ये मुश्किल होता है।
पश्चिमी मदद की जरूरत: तटस्थ रहने की बात कहने के बावजूद, इन देशों को पश्चिमी देशों से हथियार, पैसा और तकनीक चाहिए। इससे इनकी स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं।
सामंजस्य और तैयारी की कमी: इन देशों के पास शांति मिशन का अनुभव तो है, लेकिन ट्रेनिंग, पैसा और तेजी से काम शुरू करने की क्षमता में कमी है।
महत्वपूर्ण बात: “तटस्थ रहने की बात कहने के बावजूद, इन मिशनों को पश्चिमी मदद चाहिए, जो इनके स्वतंत्र दावों को कमजोर करती है।”
4. निष्कर्ष और भारत के लिए मौका
यूक्रेन संकट ग्लोबल साउथ के लिए अपनी कूटनीतिक ताकत दिखाने का एक बड़ा मौका है। अगर ये देश UN की मदद से शांति मिशन को लीड करें, तो इनकी साख और प्रभाव बढ़ेगा। खास तौर पर भारत के लिए ये मौका है कि वो अपनी तटस्थता को नेतृत्व में बदले। अगर भारत ऐसा करता है, तो आने वाले दशकों में दुनिया की ताकत का खेल बदल सकता है।
भारत की भूमिका
भारत ग्लोबल साउथ का एक मजबूत देश है. उसकी तटस्थता और शांति के लिए काम करने की पुरानी परंपरा उसे खास बनाती है. रूस-यूक्रेन संकट में भारत ने दोनों देशों से बात की और शांति की कोशिश की. भारत UN शांति मिशनों में भी बड़ा योगदान देता है. उसने कांगो और लाइबेरिया जैसे देशों में सैनिक और पुलिस भेजे हैं. भारत ब्रिक्स जैसे मंचों पर भी सक्रिय है, जहां वो शांति की बात उठाता है.
लेकिन भारत के सामने भी चुनौतियां हैं. उसे अपनी सेना और संसाधनों को और मजबूत करना होगा. साथ ही, पश्चिमी देशों की मदद लेते हुए अपनी स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी. अगर भारत इन मुश्किलों से पार पा लेता है, तो वो ग्लोबल साउथ का नेता बन सकता है और दुनिया में शांति का बड़ा केंद्र बन सकता है.
ग्लोबल साउथ आज दुनिया में शांति का एक नया रास्ता दिखा रहा है. भारत जैसे देश इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं. ये मौका है कि ग्लोबल साउथ अपनी ताकत दिखाए और दुनिया को एक नई दिशा दे. आने वाला समय बताएगा कि ये देश इस मौके का फायदा कैसे उठाते हैं.