गुजरात बॉर्डर पर मप्र ने खोले शराब तस्करी के 7 ‘कॉरिडोर’ ?

संयोग या रणनीति…:2 जिलों में 50% आबादी बीपीएल, पर टेंडर करोड़ों में

गुजरात बॉर्डर पर मप्र ने खोले शराब तस्करी के 7 ‘कॉरिडोर’

नीलामी ऐसी… 50% आबादी भी शराब पिए तो प्रत्येक को साल में 1 लाख खर्च करने होंगे

आदिवासी विरोध में, बोले- हमारा समाज बर्बाद कर रहे

मध्य प्रदेश की नई शराब नीति ने गुजरात सीमा से सटे आदिवासी इलाकों को तस्करी के अघोषित कॉरिडोर में बदल दिया है। झाबुआ और आलीराजपुर जिलों में शराब की दुकानों का बंटवारा 7 समूहों को किया गया है। बंटवारा इस तरह हुआ है कि हर समूह को गुजरात सीमा से सटी पूरी बेल्ट सौंप दी गई है।

गुजरात में शराबबंदी है। ऐसे में इन सीमावर्ती क्षेत्रों से शराब तस्करी की आशंका बढ़ गई है। हर समूह को जो दुकानें दी गई हैं, वे सीमा से महज 500 मीटर से लेकर 5 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं।

यही नहीं, नीलामी के दौरान इन दुकानों की बोली कई जगहों पर 12 से 16 करोड़ रुपए तक पहुंची, जबकि इन गांवों की आबादी 1500 से 5000 के बीच है। इनमें भी ज्यादातर आबादी बीपीएल है। सबसे बड़ा उदाहरण झाबुआ जिले के मंडली गांव का है, जहां महज 2500 की आबादी में 1250 बीपीएल हैं।

यहां अंग्रेजी शराब की एक दुकान को 13 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया। मान लें कि 50% आबादी शराब पीती है, तब भी हर व्यक्ति को साल में एक लाख रुपए की शराब पीनी होगी, तभी ठेकेदार की लागत निकल पाएगी। यानी, यहां गणित स्थानीय खपत से ज्यादा गुजरात में संभावित तस्करी के लिहाज से बैठता है।

आमतौर पर वितरण इस तरह होता है कि एक समूह में दूर-दराज और आबादी वाले क्षेत्र मिलाकर रखे जाते हैं, पर हर समूह को पूरा ‘कॉरिडोर’ सौंप दिया गया है। इधर, स्थानीय जनप्रतिनिधि इस नीति का खुला विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने तस्करी को वैध रास्ता देकर आदिवासी समाज को सामाजिक पतन की ओर धकेल दिया है।

सरकार का पक्ष जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर ने 3 दिन तक उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, कमिश्नर एक्साइज अभिजीत अग्रवाल और प्रमुख सचिव वाणिज्य कर अमित राठौर से संपर्क करने की कोशिश की, पर संपर्क नहीं हो पाया।

मंडली की आबादी 2500; इनमें से 1250 बीपीएल यहां एक दुकान का टेंडर 13 करोड़ रुपए में निकला

1. मेघनगर समूह- मंडली में सबसे महंगी दुकान {ठेकेदार : मालवा रियलिटी {कुल मूल्य : ₹92 करोड़ {दुकानें : 5 अंग्रेजी, 5 देसी। मंडली में अंग्रेजी शराब की दुकान ₹13 करोड़ में नीलाम हुई। आबादी 2500 है, इनमें 1250 बीपीएल। आधी आबादी भी शराब पीती है तो लागत वसूलने के लिए प्रत्येक को सालाना 1 लाख खर्च करने होंगे।

2. झाबुआ समूह- पिटोल में ₹16 करोड़ की दुकान {ठेकेदार: गुरुकृपा बायोफ्यूल LLP {कुल मूल्य: ₹119 करोड़ {दुकानें: 6 अंग्रेजी, 4 देसी पिटोल गुजरात सीमा से 2.5 किमी दूर। आबादी 5000 है, पर 2500 बीपीएल हैं। बोली ₹16 करोड़ लगी यानी प्रति व्यक्ति सालाना खपत ₹32,000 बैठती है।

3. थांदला समूह- बट्ठा में ₹8 करोड़ की दुकान {ठेकेदार: गुरुकृपा बायोफ्यूल LLP {कुल मूल्य: ₹76 करोड़ {दुकानें: 7 अंग्रेजी, 6 देसी। बट्ठा की आबादी 1500 है, करीब 750 बीपीएल। शराब दुकान ₹8 करोड़ में नीलाम हुई। यह गांव गुजरात से 5 किमी दूर है। प्रति व्यक्ति सालाना खपत ₹1 लाख बनती है।

यहां ​मांग अधिक क्यों? 2024-25 में झाबुआ से ₹287 करोड़ की कमाई हुई, जबकि 2023-24 में ₹238 करोड़ थी। आलीराजपुर से 2024-25 में ₹117 करोड़ आए, जबकि 2023-24 में ₹93 करोड़ थे। लेकिन सवाल यह है कि आबादी के अनुपात में अधिक खपत के बाद भी तस्करी के लिए ये ‘कॉरिडोर’ क्यों खोले जा रहे हैं।

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