आतंकियों और दुश्मनों के सामने झुकना कोई अमेरिका और ट्रंप से सीखे !

आतंकियों और दुश्मनों के सामने झुकना कोई अमेरिका और ट्रंप से सीखे

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने कई दुश्मन देशों और आतंकी संगठनों के सामने झुककर रिश्ते सुधारने की कोशिश की. तालिबान से युद्ध के बाद बातचीत, सीरिया पर से प्रतिबंध हटाना, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन से समझौता, चीन से व्यापार डील और पाकिस्तान के साथ नरमी. ये सभी घटनाएं दिखाती हैं कि ट्रंप प्रशासन रणनीतिक फायदे के लिए दुश्मनों से भी हाथ मिलाना जानता है.

आतंकियों और दुश्मनों के सामने झुकना कोई अमेरिका और ट्रंप से सीखे

आतंकियों और दुश्मनों के सामने झुकना कोई अमेरिका और ट्रंप से सीखे.

अमेरिका को समझना मुश्किल नहीं बहुत आसान है…मगर इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद. दुनिया भर में खुद को सबसे ताकतवर और निर्णायक राष्ट्र कहने वाला अमेरिका जब दुश्मनों और आतंकियों के सामने झुकता है, तो यह वैश्विक राजनीति का सबसे बड़ा विरोधाभास बन जाता है. खासकर, डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में. दरअसल, इन दिनों अमेरिका ने कई ऐसे कदम उठाए, जिससे यह साबित हो गया कि वैश्विक दबाव, कूटनीतिक फायदे और रणनीतिक मजबूरियों के आगे अमेरिका भी झुक सकता है.

तालिबान: दुश्मन को बना लिया दोस्तअफगानिस्तान में तालिबान को जड़ से खत्म करने के लिए अमेरिका ने 20 साल तक युद्ध लड़ा. हजारों सैनिक मारे गए और खरबों डॉलर खर्च हुए. लेकिन जब 2021 में बाइडेन ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी का ऐलान किया, तो अफगानिस्तान की सत्ता तालिबान के हाथ में चली गई. इसके बाद अमेरिका और तालिबान के बीच कतर में वार्ता होने लगी. यह वही तालिबान था, जिसे अमेरिका आतंकी संगठन मानता रहा. ट्रंप प्रशासन ने तालिबान से समझौते की नींव रखी थी, जिसे बाइडेन ने आगे बढ़ाया. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका अपने दुश्मनों के आगे झुक सकता है.

सीरिया: एक बयान से दुश्मनी खत्मसीरिया पर पहले अमेरिकी प्रतिबंध थे, लेकिन ट्रंप ने अपने कार्यकाल में यह ऐलान कर दिया कि वे प्रतिबंध हटा रहे हैं ताकि उन्हें महानता का अवसर मिल सके. यह बयान उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस के सामने दिया और कहा ओह, मैंने क्राउन प्रिंस के लिए क्या कुछ नहीं किया. यह दिखाता है कि अमेरिका ने सीरिया जैसे देश से संबंध सुधारने के पीछे सऊदी अरब को खुश करने की नीति अपनाई. हालांकि ये ट्रंप जानबूझकर कर नहीं कर रहे हैं. सऊदी से पैसे और बिजनेस के लिए वो इन सभी देशों से दोस्ती बढ़ा रहे हैं.

उत्तर कोरिया: तानाशाह से हाथ मिलायाकिम जोंग उन को अमेरिका तानाशाह और परमाणु खतरा मानता रहा है. अमेरिका दुनिया के कई मंचो से किम को लताड़ चुका है. इनता ही नहीं, अमेरिकी हुकूमत ने कई प्रतिबंध भी लगाए. लेकिन 2018 में ट्रंप और किम के बीच सिंगापुर समिट हुई.

trump kim

इस मुलाकात में दोनों देशों ने शांति, सुरक्षा और परमाणु निरस्त्रीकरण पर सहमति जताई. यह अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच पहला उच्च-स्तरीय संवाद था. किम को लताड़ने ट्रंप ने यहां तो किम की तारीफ तक कर डाली. इससे साफ होता है कि अमेरिका अपने हितों के लिए तानाशाही से भी हाथ मिलाने को तैयार रहता है.

पाकिस्तान: आतंकियों के पनाहगारों से भी बातशुरू से ही अमेरिका और पाकिस्तान की करीबियां रही हैं. लेकिन 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान से दूरी बना ली थी. यहां तक की ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मारा गया. इसके बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान को फिर से गले लगा लिया. हाल ही में भारत-पाक तनाव के समय अमेरिका ने सीजफायर की घोषणा कर दी और पाकिस्तान से बातचीत शुरू कर दी. यह दिखाता है कि जब रणनीतिक फायदे की बात हो, तो अमेरिका दुश्मन माने गए देश को भी दोस्त बना लेता है.

चीन: ट्रेड वॉर के बाद दोस्ती का प्रस्तावचीन शुरू से ही रूस का करीबी रहा है. एशिया में भी ताकतवर रहा है. इसीलिए अमेरिका और चीन की नहीं बनती. दोनों देश ही खूब व्यापार करने वाले देश हैं. ऐसे में दोनों में कंपटीशन रहता है. वहीं, अमेरिका के दुश्मन देशों से चीन ने हमेशा से करीबी भी बना रखी है. रूस के साथ ही चीन की मजबूत दोस्ती देखी जा सकती है. चीन रूस का काफी करीबी दोस्त माना जाता है. हाल ही में अमेरिका और चीन में ट्रेड वॉर जारी है.

China America Trade War

ये वॉर इतनी भयंकर रही कि इधर अमेरिका ऐलान कर रहा था उधर अगले दिन ही चीन भी अमेरिका के खिलाफ ऐलान करने लगा. चीन और अमेरिका के बीच सालों से व्यापारिक और तकनीकी टकराव चलता रहा है. ट्रंप ने चीन पर टैरिफ लगाए, लेकिन फिर खुद ही कहा कि चीन के साथ ‘बहुत मजबूत’ ट्रेड डील हुई है. उन्होंने कहा कि ‘हम चीन को अमेरिकी व्यापार के लिए खोलने जा रहे हैं.’ यह झुकाव तब आया जब अमेरिका को आर्थिक मोर्चे पर चीन की जरूरत महसूस हुई.

रूस: जानी दुश्मनों की भी करने लगे तारीफरूस और अमेरिका के रिश्ते तो विश्व युद्ध से बेकार चल रहे हैं. दोनों एक-दूसरे को जानी दुश्मन मानते हैं. हालांकि, रूस-यूक्रेन यूद्ध को लेकर ट्रंप ने मौजूदा समय में रूस से नजदीकियां बढ़ाई. इतना ही नहीं, ट्रंप ने कई बार पुतिन की तारीफ भी की. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भी ट्रंप ने रूस से संवाद का रास्ता खोला और कहा कि अगर मैं राष्ट्रपति होता तो युद्ध ही न होता. यह रवैया बताता है कि अमेरिका अपने पुराने दुश्मन को भी मौका देने को तैयार है, यदि उससे कोई रणनीतिक लाभ हो.

ईरान: प्रतिबंध लगाकर बातचीत करने लगेईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हमेशा विवादों में रहा. ट्रंप ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए. इसके बाद ईरानी राष्ट्रपति और पीएम ने ट्रंप को खूब खरी खोटी भी सुनाई. इतनी ही नहीं, कई बार तो खुलेआम ईरान ने अमेरिका को धमकाते हुए कहा कि ट्रंप को जो करना है कर लें, हम परमाणु परीक्षण करेंगे. इतनी बहस के बाद जब क्षेत्रीय स्थिरता की बात आई तो अमेरिका ने फिर से ईरान से संवाद का रास्ता चुना. अमेरिका की ये हरकते खुद बयां करती हैं कि अमेरिका अपने निर्णयों को जल्द पलटने में भी देर नहीं लगाता.

अमेरिका के झुकने के पीछे की रणनीतिइन सभी मामलों में अमेरिका के झुकने के पीछे मुख्य कारण रणनीतिक और आर्थिक लाभ हैं. अमेरिका को यह एहसास हो चुका है कि हर युद्ध को जीतना संभव नहीं और हर देश को खत्म नहीं किया जा सकता. इसलिए उसने अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी और दुश्मनों से बातचीत शुरू की.

President Donald Trump

ट्रंप भले ही आक्रामक बयानबाजी करते रहे हों, लेकिन उनकी विदेश नीति में लचीलापन दिखा. वे सऊदी क्राउन प्रिंस को खुश करने के लिए सीरिया पर से प्रतिबंध हटाते हैं, किम जोंग उन से हाथ मिलाते हैं, और चीन से डील करते हैं. यह एक व्यवहारिक रणनीति थी, लेकिन इससे अमेरिका की साख को नुकसान भी हुआ.

क्या अमेरिका दोहरा रवैया अपनाता है?अमेरिका का यह व्यवहार कई बार दोहरे मापदंडों जैसा लगता है. एक तरफ वो मानवाधिकार और आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख दिखाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हीं आतंकियों या तानाशाहों से हाथ मिलाता है. इससे अमेरिका की वैश्विक छवि पर सवाल उठते हैं.

अमेरिका के इन फैसलों पर दुनिया भर में मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है. कुछ देशों ने इसे प्रगतिशील कूटनीति माना, जबकि अन्य ने अमेरिका को अवसरवादी बताया. लेकिन सच यह है कि इन झुकावों के कारण अमेरिका ने कई देशों में अपनी सैन्य मौजूदगी और दबदबे को बनाए रखा.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *