आपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच जब मिसाइलें चल रही थीं और ड्रोन से हमले हो रहे थे, तब तमाम झूठी खबरें भी तीव्रता से फैल रही थीं। भारत को सुनियोजित दुष्प्रचार का सामना करना पड़ा। इस दौरान कई डीपफेक वीडियो वायरल हुए, जो नितांत झूठे थे। इनमें से कई एआइ-जनित नकली वीडियो थे। इन नकली वीडियो, फोटो को सरकार के साथ आम जागरूक भारतीय नागरिक भी खारिज करने में जुटे।

पाकिस्तान ने झूठी और नितांत हास्यास्पद फर्जी सूचनाओं की बौछार कर दी थी। यह सिलसिला अब भी कायम है। पाकिस्तान समर्थित हैंडल्स और यहां तक कि उनके टीवी चैनलों ने दावा किया कि भारतीय एयरबेस तबाह हो चुके हैं और एस-400 रक्षा प्रणाली नष्ट हो चुकी है। इन फर्जी खबरों को फैलाने का मकसद भारत की जनता में घबराहट, अविश्वास और भ्रम फैलाना था। अच्छी बात यह रही कि पीआइबी फैक्ट चेक जैसे सरकारी संस्थानों ने त्वरित कार्रवाई कर इन खबरों का खंडन किया।

भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में युद्ध के दौरान गलत और फर्जी सूचनाओं का इतिहास पुराना है। द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की नाजी सरकार ने फिल्मों और रेडियो के माध्यम से दुष्प्रचार किया, जबकि मित्र राष्ट्रों ने नकली टैंकों और फर्जी योजनाओं से दुश्मन को गुमराह किया। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 2022 में एक डीपफेक वीडियो में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को आत्मसमर्पण की घोषणा करते हुए दिखाया गया। यह झूठा वीडियो फेसबुक पर अपलोड हुआ और कुछ ही समय में लाखों बार देखा गया।

फोटोशाप, एआइ आदि के सहारे तैयार फर्जी सूचनाओं से लड़ने के लिए एक सामूहिक रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म, मीडिया संस्थान और नागरिक सभी की भूमिका हो। सरकार को चाहिए कि वह फर्जी खबरों को तत्काल खंडित करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया इकाइयां बनाए और नियमित प्रेस ब्रीफिंग से सूचनाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित करे। यदि आवश्यकता हो तो युद्धकाल में इंटरनेट मीडिया पर निगरानी बढ़ाए और दुष्प्रचार करने वाले इंटरनेट मीडिया अकाउंट्स को बंद किया जाए। आपरेशन सिंदूर के समय ऐसे कुछ अकाउंट बंद भी किए गए, जिस पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कथित हनन का बेजा शोर मचाया गया।

इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स को चाहिए कि वे डीपफेक और झूठी सामग्री को पहचानने और हटाने के लिए एआइ आधारित सिस्टम विकसित करें। इसके लिए उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, ताकि वे फर्जी पोस्ट, वीडियो आदि को ‘फैक्ट-चेक’ लेबल से चिह्नित करें और उनकी पहुंच रोकें। बोट्स और फर्जी अकाउंट्स की निगरानी और जरूरी कार्रवाई की जिम्मेदारी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म्स पर ही डाली जानी चाहिए।

मीडिया समूहों को भी अपनी रिपोर्टिंग में दोहरी जांच-सत्यापन की व्यवस्था करनी चाहिए। पत्रकारों को डिजिटल सत्यापन उपकरणों जैसे रिवर्स इमेज सर्च और ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इसके अलावा मीडिया संस्थानों को जनता को जागरूक करने के लिए भी सक्रिय होना चाहिए, क्योंकि आम लोग झूठे वीडियो, पोस्ट को सच मानकर गुमराह होते हैं। नागरिकों को स्वयं भी खबरों को साझा करने से पहले सत्यापन करना चाहिए। उन्हें विश्वसनीय फैक्ट चेक प्लेटफार्म फालो करने चाहिए। स्कूल और कालेजों में सूचना साक्षरता को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी गलत सूचना के प्रति सतर्क रहे। हमें एक ऐसी शैली को भी विकसित करना होगा, जहां समाचारों को तेजी से फैलाने की अपेक्षा सही समाचार को साझा करना अधिक महत्वपूर्ण हो।

युद्ध के कोहरे में फर्जी सूचनाओं से भ्रम हो सकता है, लेकिन युद्ध की रिपोर्टिंग के बारे में बहुत जिम्मेदारी से काम लेना होगा, क्योंकि इससे नागरिकों को संघर्ष की गलत तस्वीर मिलने का खतरा होता है। ऐसा होने पर उनकी चिंता और घबराहट बढ़ती है। भारतीय टीवी चैनलों को भी सतर्क होना होगा, क्योंकि उनकी गलत, अतिरंजित खबरों से भारत के बारे में विश्व गलत धारणा बना सकता है।

हमारे टीवी चैनलों को झूठी सूचनाओं से तो लड़ना होगा, लेकिन ऐसा कुछ करने से बचना होगा, जिससे विश्व में भ्रम फैले। आपरेशन सिंदूर आतंकी अड्डों को नष्ट करने के लिए था, न कि पड़ोसी देश पर कब्जा करने के लिए। हम नागरिक क्षति को कम करने के लिए बहुत ही सावधानी से लड़ाई लड़ रहे थे। भविष्य की लड़ाइयों में गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए हमारी तैयारी पहले से होनी चाहिए। डा. एपीजे अब्दुल कलाम अक्सर कहते थे कि भारत की ताकत उसकी जागरूक जनता है। यदि हम सभी नागरिक सजग रहें और सत्य को प्राथमिकता दें, तो कोई भी गलत सूचना हमें विचलित नहीं कर सकती।

(पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)