मायावती क्यों नहीं बना पा रहीं माहौल?
एक के बाद एक बैठक और बसपा में लगातार फेरबदल, फिर भी मायावती क्यों नहीं बना पा रहीं माहौल?
कांशीराम की सियासी विरासत बसपा दलित वोटों के घटते आधार से जूझ रही है. मायावती के नेतृत्व में पार्टी संगठनात्मक बदलाव कर रही है. मगर, राजनीतिक रणनीति और प्रभावी संवाद की कमी से पार्टी का सियासी माहौल नहीं बन पा रहा है. बसपा की स्थिति काफी कमजोर हो गई है. देश भर में बसपा का ग्राफ डाउन हुआ है.

कांशीराम ने अस्सी के दशक में दलित और पिछड़ों के बीच राजनीतिक अलख जगाने के लिए बसपा का गठन किया था. दलित और अतिपिछड़े वोटों के सहारे मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं. दलित वोटों पर बसपा का दो दशक तक एकछत्र राज कायम रहा लेकिन 2012 के बाद मायावती के सत्ता से बेदखल होने के बाद से बसपा का सियासी आधार लगातार कमजोर हुआ है. ऐसे में बसपा को दोबारा से खड़ा करने के लिए मायावती काफी मशक्कत करने में जुटी हैं.
मायावती 2024 के बाद से एक के बाद एक बैठक कर रहीं और पार्टी संगठन में लगातार फेरबदल करने में जुटी हुई हैं. मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को तीसरी बार पार्टी में लिया है और पार्टी में नंबर दो की कुर्सी सौंपी है. इसके बाद भी मायावती सियासी माहौल बनाने में सफल नहीं हो पा रही हैं और बसपा को लेकर ना विश्वास बन पा रहा, जिसके चलते बसपा के सियासी भविष्य पर सवाल उठने लगा है?
खिसकते जनाधार के बीच बसपा की एक्सरसाइजबसपा की स्थिति काफी कमजोर हो गई है. देश भर में बसपा का ग्राफ डाउन हुआ है. यूपी की सियासत में पार्टी हाशिए पर पहुंच गई है. 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा एक सीट जीतने के साथ 13 फीसदी वोट पर सिमट गई थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा जीरो पर सिमट गई और वोट शेयर घटकर 9.39 फीसदी पर पहुंच गया. पहले गैर-जाटव दलित वोट यूपी में बीएसपी से खिसकर बीजेपी में शिफ्ट हो गया था.2022 और 2024 में बसपा के जाटव वोट में भी सेंधमारी हो गई.
बसपा के सिमटते सियासी जनाधार को दोबारा से मजबूत करने के लिए मायावती लगातार सियासी एक्सरसाइज कर रही हैं. ताकि बहुजन सियासत को फिर एक बार मजबूत कर सकें. इसके तहत ही मायावती ने दलित और ओबीसी समीकरण बनाने के दिशा में कदम बढ़ाया. मायावती ने 13 साल बाद ओबीसी नेताओं को पार्टी से जोड़ने के मिशन पर काम शुरू किया है. इसके अलावा बसपा संगठन की बैठक महीने में तीन से चार बार कर रही हैं. इतना ही नहीं बसपा के अलग-अलग क्षेत्रों की प्रभारी के साथ लगातार बैठक कर रही हैं तो कोऑर्डिनटर बूथ से लेकर जिला और विधानसभा स्तर की बैठक करने में जुटे हैं.
बसपा सियासी माहौल बनाने में लगातार फेलबसपा के कैडर कैंप भी लगातार किए जा रहे हैं. बामसेफ को फिर से सक्रिय किया गया है और बसपा की बैठकों में भी शिरकत कर रहे हैं. दलित और ओबीसी के नेताओं के साथ भी मायावती बैठक कर रही हैं. यूपी में बसपा ने जिला से लेकर बूथ तक संगठन तैयार कर लिया है. इसके अलावा बसपा के नेता गांव में कैडर कैंप की बैठक से पहले रैलियां निकालकर माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सियासी बज बन नहीं पा रहा है. इतना ही नहीं बसपा कोई सियासी नैरेटिव भी नहीं गढ़ पा रही है, जिससे दोबारा से पार्टी में नई जान फूंकी जा सके.
आकाश आनंद को मायावती ने बसपा का चीफ नेशनल काऑर्डिनेटर नियुक्त किया है, ये नियुक्ति उनकी पार्टी में तीसरी बार हुई है. हालांकि, इस पहले आकाश बसपा के राष्ट्रीय काऑर्डिनेटर हुआ करते थे. अब चीफ नेशनल काऑर्डिनेटर बनाया गया है. इससे यह साफ हो गया कि अब बसपा में मायावती के बाद अब आकाश आनंद ही नंबर दो होंगे. पार्टी में 3 नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं, जिसमें रामजी गौतम, राजाराम और रणधीर बेनीवाल हैं. बसपा के ये तीनों नेशनल कोऑर्डिनेटर अब आकाश आनंद को रिपोर्ट करेंगे. इस तरह आकाश आनंद की सियासी ताकत बढ़ गई है, लेकिन तेवर पहले की तरह आक्रामक नहीं रहने वाले हैं. मायावती इस फेरबदल के जरिए बसपा के माहौल बनाने की स्ट्रेटजी मानी जा रही है.
बसपा का सियासी माहौल क्यों नहीं बन पा रहा है?मायावती की लगातार सियासी एक्सरसाइज के बाद बसपा के पक्ष में नहीं बन पा रहे राजनीतिक माहौल से पार्टी के दिग्गज नेता भी चिंतित नजर आ हैं तो पार्टी कैडर भी कश्मकश की स्थिति में नजर आ रहा है. इसे लेकर तमाम राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत करके समझने की कोशिश की, जिसमें ज्यादातर नेताओं का मानना है कि बसपा का परंपरागत तरीके से राजनीतिक करना है. वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि देश की सियासत पूरी तरह से बदल चुकी है, लेकिन मायावती अभी भी पुराने ही तौर-तरीके से राजनीति कर रही हैं.
कांशीराम ने जिन मुद्दों पर बसपा का गठन किया है, उसका लाभ मायावती चार बार सीएम बनाकर उठा चुकी हैं. दलित और पिछड़ों की ख्वाहिश पहले से ज्यादा है और वो अपने प्रतिनिधित्व को लेकर बात कर रही हैं. ऐसे में अब अपेक्षा के अनुरूप में राजनीति करनी होगी. कांग्रेस और बीजेपी रणनीतिक तरीके से मीडिया तक अपनी बात पहुंचाने में बसपा से आगे निकलती दिख रही है जबकि मायावती सिर्फ एक एजेंसी को बुलाकर उससे अपनी बात कह देतीं हैं या फिर ट्वीट कर अपनी बात कहती हैं. इस तरह जनता के साथ उनका कनेक्शन पूरी तरह से कट गया है. बसपा का काऑर्डिनेटर और प्रभारी के जरिए ही बसपा नेताओं का कनेक्शन है. ऐसे में जनता के साथ सीधे संपर्क न होने से भी बसपा का आधार खिसका है.
मायावती के सामने ये नैरेटिव तोड़ने की चुनौतीविपक्ष के रूप में बसपा पूरी तरह से गायब है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक विपक्षी दल के रूप में मायावती अपनी भूमिका का निर्वाहन सही तरीके से नहीं कर पा रही हैं बल्कि कई ऐसे मौके देखे गए हैं जब मायावती बीजेपी सरकार के सलाहकार की भूमिका में खड़ी दिखी हैं. हालांकि, मायावती यूपी में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं और सूबे में दलितों की पहली पसंद बसपा है. इसके बाद भी नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से मायावती कई अहम मुद्दों पर बीजेपी के प्रति नरम रूख अख्तियार कर रखा है, जिसके चलते सियासी नैरेटिव नहीं गढ़ पा रही है. नैरेटिव गढ़ने से ही सियासी माहौल बनता है.
सरकार के सलाहकार की भूमिका अदा करने के चलते बसपा को बीजेपी की बी-टीम का नैरेटिव विपक्ष गढ़ने में कामयाब हो गया है. इसके चलते मुस्लिम समुदाय का वोटर पूरी तरह से बसपा से दूर हो गया है. बीजेपी विरोधी दूसरे वोट भी बसपा के साथ नहीं आते हैं. बीजेपी की बी-टीम के नैरेटिव को तोड़े बिना बसपा का ग्राफ उभरना आसान नहीं है. ऐसे में मायावती को इस नैरेटिव को तोड़ने की दिशा में कदम उठाना होगा.
समीकरण पर ज्यादा विश्वास करती हैं मायावतीमायावती संघर्ष के बजाय समीकरण पर ज्यादा विश्वास करती हैं. बसपा ने अब खुद को जातीय राजनीति में उलझा कर रखा है. मायावती ने बसपा को पूरे प्रदेश की पार्टी बनाने के बजाय कभी दलित-ब्राह्मण गठजोड़ तो कभी दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे नैया पार करने की कोशिश करती हैं. इसे वो सोशल इंजीनियरिंग का नाम देती हैं. मायावती को लगता है कि लोगों के बीच जाने के बजाय जातीय समीकरण बना लीजिए और चुनाव जीत लेंगे, लेकिन मोदी के राजनीतिक उदय के बाद अब यह तिलिस्म बुरी तरह से टूट गया. इसके बावजूद मायावती उससे बाहर नहीं निकल पा रही हैं और पुराने फॉर्मूले पर कायम हैं. मध्यमवर्गीय वोट बैंक का महत्व सबसे अधिक है, जिसे साधने की दिशा में कोशिश करनी होगी.
कांशीराम वाली बसपा अब नहीं रह गई है बल्कि मायावती की बसपा बन चुकी है. कांशीराम राजनीतिक कदम उठाने से पहले विचार-विमर्श करते थे और उसका क्या फर्क पड़ेगा उसे समझते थे. इसके बाद ही कोई फैसला लेते थे, लेकिन अब बसपा में यह कल्चर नहीं है. मायावती को ओवर कॉफिडेंस था कि उनका वोटर किसी भी सूरत में उनसे दूर नहीं जाने वाला है, चाहे वो कोई भी कदम उठाएं. ऐसे में बसपा से ओबीसी ही नहीं गैर जाटव दलित ही नहीं बल्कि जाटव वोट भी दूर हो गया है.
अपने कोर वोटबैंक को वापस लाना होगाबसपा को उभारने के लिए मायावती को पहले अपने कोर वोटबैंक को वापस लाना होगा, जिसमें जाटव ही नहीं बल्कि दलित समाज को जोड़ना होगा. दलित वोट को जोड़ने में मायावती सफल हो जाती हैं तो दूसरी वोटबैंक साथ आ जाएगा. दलित वोट तभी बसपा में आएगा, जब उसे विश्वास हो कि बसपा जीत सकती है. बसपा के प्रति अविश्वास की कमी है, जिसे दूर करने की कवायद करनी चाहिए. ये विश्वास तभी स्थापित होगा, जब पार्टी उनके दुख, सुख में खड़ी नजर आए. सियासी विकल्प देने के लिए काम करना होगा. ये बात साफ हो जाए कि बसपा ही बीजेपी को हरा सकती है तो बसपा को उभरने से कोई नहीं रोक सकता है.
बसपा को फिर से एक बार वैचारिक स्तर पर मुहिम चलानी होगी, जिसे सिर्फ दलित समाज में नहीं बल्कि ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच मजबूत कैडर तैयार करने होंगे. आंबेडकर की विचारधारा अभी काफी मजबूत है, 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने जिस तरह संविधान और आरक्षण के नैरेटिव को बीजेपी के खिलाफ गढ़ था, उसका लाभ भी उसे मिला है. ऐसे ही बसपा के लिए इस मुद्दे को मजबूती से स्थापित करने में ज्यादा लाभ मिल सकता है.
देश में गठबंधन की सियासत इस कदर हावी है कि बीजेपी भी बिना गठबंधन की नहीं चल पा रही है और कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति करनी पड़ रही है. ऐसे में मायावती का अकेले चुनाव लड़ना सियासी तौर पर महंगा पड़ रहा है. देश में वोटिंग पैटर्न पूरी तरह से बदल चुका है. एक तरफ बीजेपी को हर हाल में जिताने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी को हराने वाले. ऐसे में किसी एक खेमे में ही रहकर राजनीति की जा सकती है. मायावती बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ना सियासी तौर पर कारगार नहीं माना जा रहा है. इस तरह से मायावती को किसी एक खेमे को चुनना होगा, चाहे बीजेपी के साथ या फिर कांग्रेस के साथ. गठबंधन के बिना बसपा की सियासी नैया पार नहीं होने वाली है?