सुविधाओं के नाम पर कारपेट एरिया घटा रहे बिल्डर… फ्लैट मालिकों को मिल रही रहने लायक कम जगह
एनारॉक की रिपोर्ट: सुविधाओं के नाम पर कारपेट एरिया घटा रहे बिल्डर, फ्लैट मालिकों को मिल रही रहने लायक कम जगह

प्रमुख शहरों की आवासीय परियोजनाओं में साझा सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर बिल्डरों ने कारपेट एरिया घटाकर औसत लोडिंग को 40 फीसदी तक पहुंचा दिया है। इससे पिछले कुछ वर्षों से फ्लैट मालिकों को रहने लायक जगह कम मिल पा रही है। एनारॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में औसत लोडिंग अनुपात 31 फीसदी था, जो मार्च, 2025 तिमाही में बढ़कर 40 फीसदी पहुंच गया। किसी आवासीय परियोजना में साझा सुविधाओं के लिए इस्तेमाल जमीन को भी जोड़कर फ्लैट की बिक्री की जाती है। इस पूरे क्षेत्रफल को सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है, जबकि फ्लैट के भीतर की जगह कारपेट एरिया कही जाती है। इन दोनों के बीच अंतर को लोडिंग अनुपात कहा जाता है।
60 फीसदी हिस्सा ही रहने लायक
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- शीर्ष सात शहरों में फ्लैट की कुल जगह का 60 फीसदी हिस्सा ही रहने लायक है। बाकी 40 फीसदी क्षेत्र लिफ्ट, लॉबी, क्लब हाउस जैसी साझा सुविधाओं में चला जाता है।
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- मुंबई महानगर क्षेत्र में औसत लोडिंग सबसे अधिक 43 फीसदी पहुंच गई है, जो 2019 में 33 फीसदी थी। चेन्नई में सबसे कम 36 फीसदी है।
- दिल्ली-एनसीआर में औसत लोडिंग 31 फीसदी से बढ़कर 41 फीसदी पहुंची। बंगलूरू में यह 41 फीसदी, पुणे में 40 फीसदी, हैदराबाद में 38 फीसदी और कोलकाता में 39 फीसदी हो गई।
कारपेट एरिया का उल्लेख जरूरी
एनारॉक ग्रुप के क्षेत्रीय निदेशक एवं प्रमुख (शोध-परामर्श) प्रशांत ठाकुर ने कहा, नियामक रेरा के तहत अब डेवलपरों के लिए फ्लैट खरीदने वालों को दिए जाने वाले कुल कारपेट एरिया का उल्लेख करना जरूरी है। लेकिन, फिलहाल किसी भी कानून में परियोजनाओं के लोडिंग फैक्टर को सीमित नहीं किया गया है।
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सुपर एरिया के नाम पर बिल्डर कर रहे ये ‘खेल’; कंसल्टेंसी फर्म एनारॉक ने किया खुलासा
अपार्टमेंट में सुपर बिल्ट-अप एरिया और कारपेट एरिया का अंतर साल दर साल बढ़ता जा रहा है। कुछ साल पहले तक यह अंतर औसतन 30% हुआ करता था अब 40% हो गया है। इसका मतलब है कि सुपर एरिया (super area scam) का सिर्फ 60% हिस्सा वास्तव में खरीदार के रहने लायक होता है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ने इसकी वजह बताई है।