नई दिल्ली। क्या आपको भी लगता है कि आपकी रेजिडेंशियल सोसायटी तो काफी बड़ी है, लेकिन आपके अपार्टमेंट का साइज छोटा है? अगर ऐसा है तो आप अकेले नहीं। दरअसल, सोसायटी में कॉमन फैसिलिटी बढ़ाने के चक्कर में बिल्डर कारपेट एरिया का अनुपात कम करते जा रहे हैं।
रियल एस्टेट कंसल्टेंट एनारॉक ग्रुप ने एक रिपोर्ट (Anarock report real estate) में बताया है कि हाल के वर्षों में सुपर बिल्ट-अप एरिया (super area scam) और कारपेट एरिया का अंतर बढ़ा है। तकनीकी भाषा में इस अंतर को लोडिंग फैक्टर कहते हैं। अगर सुपर बिल्ट-अप एरिया 1,300 वर्ग फीट और कारपेट एरिया 1,000 वर्ग फीट है, तो लोडिंग फैक्टर 30 प्रतिशत होगा।
31 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हुआ अंतर
एनारॉक के अनुसार प्रमुख शहरों में बिल्डरों ने कॉमन फैसिलिटी के नाम पर औसत ‘लोडिंग’ ( builder tricks exposed) काफी बढ़ा दी है। वर्ष 2019 में यह अंतर 31 प्रतिशत था, जो इस साल जनवरी-मार्च तिमाही में 40 प्रतिशत हो गया है। इसका सीधा मतलब है कि फ्लैट मालिकों को रहने लायक कम जगह मिल रही है।
सुपर एरिया-कारपेट एरिया के अंतर पर कोई कानून नहीं
एनारॉक ग्रुप के रीजनल डायरेक्टर और रिसर्च हेड प्रशांत ठाकुर ने कहा कि RERA के तहत अब डेवलपर्स के लिए कारपेट एरिया बताना आवश्यक है, लेकिन फिलहाल कोई भी कानून लोडिंग फैक्टर की सीमा तय नहीं करता है।
जनवरी-मार्च 2025 के आंकड़े बताते हैं कि शीर्ष 7 शहरों में घर खरीदने वालों को अपने अपार्टमेंट में कुल जगह (सुपर एरिया) का 60 प्रतिशत हिस्सा रहने योग्य मिला है। बाकी 40 प्रतिशत हिस्सा लिफ्ट, लॉबी, सीढ़ियां, क्लब हाउस, टेरेस आदि कॉमन फैसिलिटी में चला गया है।
मुंबई में यह अंतर 43 प्रतिशत हुआ, चेन्नई में सबसे कम
शीर्ष 7 शहरों में बेंगलुरु में पिछले सात वर्षों में औसत लोडिंग में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। यह 2019 के 30 प्रतिशत से 2025 की पहली तिमाही में 41 प्रतिशत तक पहुंच गई। वैसे, सबसे अधिक लोडिंग फैक्टर मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र (MMR) में है। वहां यह 33 प्रतिशत से बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया है।
दिल्ली-एनसीआर में औसत लोडिंग फैक्टर 31 प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत, पुणे में 32 प्रतिशत से 40 प्रतिशत, हैदराबाद में 30 प्रतिशत से 38 प्रतिशत और कोलकाता में 30 प्रतिशत से बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया है। चेन्नई में औसत लोडिंग वृद्धि सबसे कम है। चेन्नई का औसत लोडिंग फैक्टर 2019 में 30 प्रतिशत था। यह अभी 36 प्रतिशत है।
खरीदार भी कर रहे सुविधाओं की मांग
एनारॉक की इस रिपोर्ट पर बेंगलुरु स्थित BCD समूह के CMD अंगद बेदी ने कहा, दिलचस्प बात है कि रियल एस्टेट सेक्टर विशिष्ट रूप से डिजाइन किए गए प्रोजेक्ट के साथ एक्सपेरिमेंटल होता जा रहा है। सुविधाएं बिक्री का प्रमुख फैक्टर बन गई हैं। सौना से लेकर अत्याधुनिक क्लब हाउस और वेलनेस सेंटर से लेकर खेल के मैदान तक, लाइफस्टाइल-केंद्रित सुविधाओं की बढ़ती मांग इस बदलाव को बढ़ावा दे रही है।
प्रॉपर्टी फर्स्ट के संस्थापक और सीईओ भावेश कोठारी ने कहा, यह बदलाव ग्राहकों में मिलेनियल्स की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण है। ये खरीदार न केवल कारपेट एरिया में निवेश कर रहे हैं, बल्कि वे जीवनशैली में भी निवेश कर रहे हैं।