ब्लैक कॉफी से घटेगा मौत और दिल की बीमारियों का खतरा !
हालिया शोधों से पता चलता है कि नियमित और संयमित मात्रा में ब्लैक कॉफी पीने से मृत्यु हृदय रोग टाइप-2 डायबिटीज़ अल्ज़ाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों क…और पढ़ें
नई दिल्ली
आप भले ही हर सुबह कॉफी पीते समय इसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में न सोचते हों, लेकिन एक नया अध्ययन बताता है कि कॉफी का नियमित और संयमित सेवन मृत्यु के जोखिम को कम कर सकता है। अमेरिका के टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के गेराल्ड जे. और डोरोथी आर. फ्राइडमैन स्कूल ऑफ न्यूट्रिशन साइंस एंड पॉलिसी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कॉफी में मिलाई जाने वाली चीनी और संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फैट) की मात्रा इस लाभ को प्रभावित कर सकती है।
पहली स्टडीयह शोध द जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित हुआ है, जिसमें बताया गया कि रोजाना 1 से 2 कप कैफीनयुक्त कॉफी पीने वालों में किसी भी कारण से मृत्यु और हृदय रोग से मृत्यु का खतरा कम होता है। खासकर ब्लैक कॉफी या कम चीनी और कम फैट वाली कॉफी पीने से सभी कारणों से होने वाली मृत्यु का जोखिम 14% तक घट जाता है। लेकिन यदि कॉफी में ज्यादा मात्रा में चीनी या क्रीम मिलाई गई हो, तो यह लाभ नहीं मिलता। शोध की वरिष्ठ लेखिका फैंग फैंग झांग, जो फ्राइडमैन स्कूल में न्यूट्रिशन की प्रोफेसर हैं, कहती हैं कि कॉफी दुनिया में सबसे ज़्यादा पी जाने वाले पेयों में से एक है। अमेरिका में करीब आधे वयस्क रोजाना कम से कम एक कप कॉफी पीते हैं। ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि इसका स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। हमारे परिणाम बताते हैं कि भले ही कॉफी में बायोएक्टिव तत्व लाभकारी हों, लेकिन अगर इसमें अधिक मात्रा में चीनी और सैचुरेटेड फैट मिलाया जाए, तो ये लाभ घट सकते हैं।
यह अध्ययन 1999 से 2018 के बीच नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रिशन एग्ज़ामिनेशन सर्वे (NHANES) के नौ चक्रों के डेटा और नेशनल डेथ इंडेक्स से जुड़े मृत्यु संबंधी आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इसमें अमेरिका के 46,000 वयस्कों (उम्र 20 वर्ष से अधिक) के 24 घंटे के डायटरी रीकॉल रिकॉर्ड का उपयोग किया गया। कॉफी के प्रकार (कैफीनयुक्त या डिकैफ), उसमें मिलाई गई चीनी और सैचुरेटेड फैट की मात्रा के आधार पर उपभोग का वर्गीकरण किया गया।
शोध में कम चीनी को परिभाषित किया गया है, 8 औंस कप में 2.5 ग्राम से कम (या आधा चम्मच) और कम सैचुरेटेड फैट को 1 ग्राम प्रति कप या 2% दूध के 5 टेबलस्पून के बराबर माना गया।
इस विषय पर हमने डॉ. पीयूष रंजन, वाइस चेयरपर्सन, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से बात की। इसके अलावा डॉ. संदीप मिश्रा, पूर्व निदेशक, कार्डियोलॉजी विभाग, एम्स और डॉ. अमरिंदर सिंह मलाही, विशेषज्ञ, कार्डियोवैस्कुलर रेडियोलॉजी व एंडोवास्कुलर इंटरवेंशन, एम्स से भी चर्चा की गई।
हमने डॉ. पवन कुमार गोयल, सीनियर डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस अस्पताल से भी राय ली। वहीं डॉ. भूमेश त्यागी, कंसल्टेंट – जनरल मेडिसिन एवं फिजिशियन, शारदा केयर – हेल्थ सिटी से भी इस विषय में बातचीत हुई।
दूसरी स्टडी
अमेरिकन न्यूट्रिशन सोसाइटी की एक नई रिपोर्ट में बुज़ुर्गों के लिए संतुलित मात्रा में कॉफी के सेवन के संभावित स्वास्थ्य लाभों को उजागर किया गया है। अध्ययन बताते हैं कि कॉफी पीने से हृदय रोग, स्मृति क्षरण, पार्किंसन रोग और टाइप-2 डायबिटीज़ का खतरा कम हो सकता है। कॉफी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और सूजन-रोधी यौगिक इन लाभों में योगदान करते हैं।
हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि अधिक मात्रा में कॉफी पीना बुज़ुर्गों में बेचैनी, अनिद्रा या उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं बढ़ा सकता है। यह भी देखा गया है कि कॉफी के प्रकार (ब्लैक, डिकैफ, दूध के साथ) और व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार इसके प्रभाव अलग-अलग हो सकते हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि जो लोग नियमित दवाइयां ले रहे हैं, वे कॉफी का सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करें।
पीयूष रंजन,वाइसचेयरपर्सन, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एवं पैंक्रियाटिको-बिलियरी साइंसेजकॉफी अब सिर्फ़ एक पेय नहीं रही, बल्कि यह एक बायोएक्टिव डाइटरी कॉम्प्लेक्स बन चुकी है, जिसका हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इसमें 1,000 से अधिक रासायनिक तत्व पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं, कैफीन, क्लोरोजेनिक एसिड, ट्राइगोनेलिन, काहवेओल और कैफेस्टोल। अगर इसे सीमित मात्रा में लिया जाए (रोज़ाना 3-4 कप तक), तो यह कई स्वास्थ्य लाभ देती है। हममें से अधिकतर लोग दिनभर की थकान या सुस्ती दूर करने के लिए कॉफी का सहारा लेते हैं। इसका मुख्य सक्रिय तत्व, कैफीन, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है। यह एडेनोसिन रिसेप्टर्स को ब्लॉक करके, डोपामिन और नोरेपिनेफ्रिन जैसे रसायनों का स्राव बढ़ाता है, जिससे शरीर और दिमाग को ऊर्जा मिलती है। नियमित रूप से कॉफी पीने वालों में अल्ज़ाइमर और पार्किंसन जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा काफी हद तक कम पाया गया है।
हालिया रिसर्च बताती है कि कॉफी लीवर के लिए भी फायदेमंद है। लीवर में कैफीन का मेटाबोलिज्म CYP1A2 एंजाइम के ज़रिए होता है, जिससे पैराक्सैंथिन, थियोब्रोमिन और थियोफिलाइन बनते हैं। ये सभी सूजन कम करने वाले तत्व हैं। कॉफी पीने से नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) की प्रगति धीमी होती है, सिरोसिस का खतरा घटता है और लीवर कैंसर (हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा) की संभावना 40% तक कम हो सकती है। यह लीवर एंजाइम्स (ALT, AST, GGT) को भी कम करती है, जो लीवर की सूजन और क्षति के संकेतक होते हैं।
कॉफी गट माइक्रोबायोम यानी आंतों के अच्छे बैक्टीरिया को भी मजबूत करती है। इसमें पाए जाने वाले पॉलीफेनॉल और सॉल्यूबल फाइबर प्रीबायोटिक का काम करते हैं, जो बिफिडोबैक्टीरियम और अक्करमैनसिया म्यूसीनिफिला जैसे लाभकारी जीवाणुओं को पोषण देते हैं। कॉफी से इंसुलिन की संवेदनशीलता और ब्लड शुगर कंट्रोल बेहतर होता है, खासकर इसके क्लोरोजेनिक एसिड के कारण, जो शरीर में ग्लूकोज के अवशोषण को धीमा करते हैं और लीवर में ग्लूकोज के निर्माण को रोकते हैं। रिसर्च में पाया गया है कि नियमित रूप से कॉफी पीने से टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा 20-30% तक घट सकता है। कॉफी एंटीऑक्सीडेंट्स का सबसे बड़ा स्रोत है, खासकर उन लोगों के लिए जिनका खानपान विविध नहीं है। इसके पॉलीफेनॉल्स, खासकर क्लोरोजेनिक एसिड, फ्री रेडिकल्स को खत्म करते हैं और पुरानी सूजन को कम करते हैं, जो कई बीमारियों की जड़ है। कैफीन शरीर में थर्मोजेनेसिस को बढ़ाता है, जिससे ऊर्जा खर्च होती है और फैट ब्रेकडाउन यानी चर्बी का उपयोग होता है। इसका मेटाबोलाइट पैराक्सैंथिन फैट ऑक्सिडेशन को और भी बढ़ाता है, जिससे शरीर की संरचना सुधरती है और वजन नियंत्रण में मदद मिलती है, अगर इसे व्यायाम के साथ जोड़ा जाए। लंबे समय की स्टडीज़ बताती हैं कि कॉफी पीने वालों में लीवर, कोलोरेक्टल, प्रोस्टेट और एंडोमेट्रियल कैंसर का खतरा कम होता है। शर्त सिर्फ़ इतनी है कि कॉफी में जरूरत से ज़्यादा चीनी या क्रीम न मिलाई जाए। बिना ज्यादा फैट या मिठास वाली कॉफी, रोजमर्रा की जिंदगी में न सिर्फ़ ताज़गी देती है, बल्कि दिमाग से लेकर दिल, लीवर से लेकर पाचनतंत्र तक के लिए फायदेमंद होती है। रोज़ाना 3-4 कप कॉफी एक प्यारी आदत भर नहीं, बल्कि जीवनभर स्वास्थ्य बनाए रखने का एक प्रभावशाली औजार भी हो सकती है। हालांकि कॉफी के कई फायदे हैं, लेकिन युवा वर्ग को इसकी अधिक मात्रा से सतर्क रहना चाहिए। जरूरत से ज़्यादा कॉफी पीना लत की शक्ल ले सकता है, जिससे एसिडिटी, दिल की धड़कन तेज़ होना (पैल्पिटेशन) और घबराहट (एंग्ज़ायटी) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए संयमित मात्रा में ही इसका सेवन करना बेहतर है।
डॉक्टर संदीप मिश्रा, एम्स कॉर्डियोलॉजी डिपॉर्टमेंट के पूर्व निदेशकब्लैक कॉफी दिल सहित शरीर के कई हिस्सों के लिए काफी फायदेमंद हैं। इनमें बड़ी मात्रा में एंटी ऑक्सिडेंट होते हैं हो शरीर के अंगों की एजिंग की प्रक्रिया को रोकते हैं। ये अंगों में इंफ्लेमेशन को भी रोकते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि कॉफी बिना चीन और दूध के पी जाए और सीमित मात्रा में पी जाए तो ही फायदेमंद है।
एक डॉक्टर और शोधकर्ता के तौर पर मैं मानता हूं कि बुजुर्गों के लिए कॉफी को लेकर जो नए रिसर्च सामने आए हैं, वे काफी दिलचस्प और उम्मीद देने वाले हैं। कई बड़े अध्ययन बताते हैं कि अगर रोज़ाना सीमित मात्रा में कॉफी पी जाए, तो दिमागी कमजोरी, दिल की बीमारी, पार्किंसन और यहां तक कि टाइप 2 डायबिटीज का खतरा भी कम हो सकता है। कॉफी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और सूजन कम करने वाले तत्व शायद इन फायदों की वजह हैं। लेकिन हर किसी पर इसका असर एक जैसा नहीं होता। बुजुर्गों को अक्सर हाई ब्लड प्रेशर, हड्डियों की कमजोरी या नींद की समस्या जैसी परेशानियां रहती हैं, इसलिए कॉफी कितनी और किस तरह पीनी है, यह उनकी सेहत पर निर्भर करता है। ब्लैक कॉफी यानी बिना चीनी और क्रीम वाली कॉफी सबसे बेहतर मानी जाती है। और अगर किसी को कैफीन से दिक्कत होती है, तो डिकैफ कॉफी एक अच्छा विकल्प है। मैं अपने मरीजों से कहता हूं कि अगर वो नियमित दवाएं ले रहे हैं, तो कॉफी कितनी पीनी चाहिए, इसके लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें। ज़्यादातर लोगों के लिए दिन में 2 से तीन कप कॉफी सुरक्षित होती है, लेकिन जिन्हें बेचैनी, नींद न आना या हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो, उन्हें मात्रा कम करनी चाहिए।
कुल मिलाकर, कॉफी से फायदे लेने हैं तो सबसे ज़रूरी है संतुलन रखना, डॉक्टर की सलाह लेना और अपने शरीर की सुनना। तभी कॉफी का मज़ा भी मिलेगा और सेहत भी बनी रहेगी।
डा. पवन कुमार गोयल, फोर्टिस अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के सीनियर डायरेक्टरक्या बुजुर्गों में कॉफी पीने से याददाश्त कमजोर होने और दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है? इस पर किए गए शोध कितने भरोसेमंद हैं?
बुजुर्गों में कॉफी पीने से याददाश्त कमजोर होने और दिल की बीमारियों का खतरा कम होने के जो दावे किए जा रहे हैं, वे कई दीर्घकालिक और अवलोकनात्मक शोधों से समर्थित हैं। हालांकि, इनमें कुछ सीमाएं भी हैं। कई होर्ट अध्ययन और मेटा-एनालिसिस यह संकेत देते हैं कि रोजाना 3-5 कप कॉफी पीने से बुजुर्गों में याददाश्त कमजोर होने, अल्ज़ाइमर और अन्य डिमेंशिया संबंधी रोगों का खतरा कम हो सकता है। यह सुरक्षा एक यू-आकार के पैटर्न में देखी गई है, यानी न तो बहुत कम और न ही बहुत अधिक, बल्कि मध्यम मात्रा में कॉफी पीने से अधिक लाभ होता है। कॉफी में मौजूद कैफीन, एंटीऑक्सिडेंट और सूजन-रोधी तत्व दिमाग में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, सूजन और अमाइलॉयड बिल्डअप को कम कर सकते हैं। यह इस लाभ का संभावित कारण माना जा रहा है। AIBL जैसे कई दीर्घकालिक अध्ययन बताते हैं कि जो लोग ज्यादा कॉफी पीते हैं, उनमें वर्षों बाद भी मानसिक गिरावट कम होती है और ब्रेन में अमाइलॉयड कम जमता है। हालांकि, यह शोध ज्यादातर अवलोकन आधारित हैं, जिससे यह साफ नहीं होता कि कॉफी ही सीधा कारण है या इसके पीछे कुछ और (जैसे स्वस्थ जीवनशैली) वजहें भी हो सकती हैं।
कई बड़े अध्ययनों और मेटा-विश्लेषणों से पता चला है कि मध्यम मात्रा में कॉफी पीने वालों में दिल की बीमारियों और उससे होने वाली मौतों का खतरा कम होता है, खासतौर पर महिलाओं में। 3-5 कप प्रतिदिन पीने वालों में दिल की बीमारियों से मौत का खतरा लगभग 21% तक कम देखा गया है। हालांकि, यह प्रभाव व्यक्ति के शरीर की प्रतिक्रिया (जैसे जेनेटिक्स, पुरानी बीमारियां, दवाइयों के साथ संपर्क) पर भी निर्भर करता है। ज्यादा मात्रा में कॉफी नुकसानदायक भी हो सकती है।
क्या बुजुर्गों के लिए किसी खास प्रकार की या विशेष मात्रा में कॉफी स्वास्थ्य लाभ देती है और खतरा नहीं पैदा करती?
बुजुर्गों के लिए कॉफी की सही मात्रा और प्रकार उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
मात्रा: 3-5 कप कॉफी प्रतिदिन (लगभग 400 मि.ग्रा. कैफीन तक) को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है और यह बुजुर्गों में कमजोरी, याददाश्त की गिरावट और कुछ उम्र संबंधी रोगों से बचाव में मदद कर सकती है।
-कैफीन युक्त कॉफी frailty यानी शारीरिक कमजोरी को कम करने में अधिक असरदार पाई गई है, विशेषकर उन लोगों में जो धूम्रपान नहीं करते।
-डिकैफ कॉफी में ये प्रभाव नहीं दिखते, लेकिन नींद की समस्या, दिल की धड़कन तेज होना या पेशाब की समस्या वाले बुजुर्गों के लिए यह बेहतर विकल्प हो सकता है।
-लो-एसिड और लो-कैफीन कॉफी उन बुजुर्गों के लिए उपयुक्त है जिन्हें सामान्य कॉफी से पेट में जलन या बेचैनी होती है। इनमें एंटीऑक्सिडेंट बने रहते हैं लेकिन ये पाचन और दिल पर हल्के पड़ते हैं।
-एडिटिव्स: ब्लैक कॉफी, दूध या चीनी वाली कॉफी पर सीधे तुलना के ज्यादा प्रमाण नहीं हैं, लेकिन बहुत अधिक चीनी या क्रीम से कैलोरी बढ़ सकती है, जो डायबिटीज या मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
बुजुर्गों को उम्र के साथ कई समस्याएं जैसे हाई ब्लड प्रेशर, नींद की कमी या हड्डियों की कमजोरी होती हैं। क्या ऐसे में कॉफी की मात्रा को घटाना चाहिए?
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, कॉफी की मात्रा को स्वास्थ्य समस्याओं को ध्यान में रखकर समायोजित करना चाहिए।
हाई ब्लड प्रेशर
नियमित रूप से कॉफी पीने वालों में ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक पाया गया है। दिन में 3 या उससे अधिक कप पीने वालों में अनियंत्रित हाई बीपी का खतरा अधिक देखा गया है। ऐसे लोगों को कॉफी की मात्रा घटाने या पूरी तरह बंद करने की सलाह दी जाती है।
नींद से जुड़ी समस्याएं
कैफीन नींद की गुणवत्ता और अवधि को प्रभावित करता है, खासतौर पर बुजुर्गों और डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों में। दोपहर और शाम को कॉफी छोड़ने से नींद में सुधार देखा गया है। हालांकि, कुछ बुजुर्ग महिलाओं में पाया गया कि कॉफी बंद करने के बाद नींद की शिकायतें बढ़ गईं। इसलिए, यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। सामान्य सलाह यही है कि कॉफी सुबह ही पी जाए और मात्रा सीमित रखी जाए।
हड्डियों की कमजोरी
300 मिग्रा. से अधिक कैफीन रोजाना लेने से बुजुर्ग महिलाओं की रीढ़ की हड्डियों में तेजी से कमजोरी देखी गई है। पहले से कमजोर हड्डियों वाले लोगों के लिए यह खास चिंता का विषय है। बुजुर्गों के लिए दिन में 50-100 मि.ग्रा. कैफीन (लगभग एक कप कॉफी) तक सीमित रखना बेहतर है, खासकर हाई बीपी या हड्डियों की कमजोरी वाले लोगों के लिए। कॉफी सुबह पी जाए ताकि नींद पर असर न हो। अपनी सहनशक्ति के अनुसार मात्रा तय करें।
जो बुजुर्ग नियमित रूप से कॉफी पीते हैं और पहले से दवाओं पर हैं या किसी पुरानी बीमारी से जूझ रहे हैं, उनके लिए क्या सावधानियां जरूरी हैं?
ऐसे बुजुर्गों को निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए:
-कैफीन की मात्रा सीमित करें।
-स्वास्थ्य स्थितियों जैसे हाई ब्लड प्रेशर, हड्डियों की कमजोरी, बार-बार पेशाब की शिकायत आदि को ध्यान में रखते हुए कैफीन सीमित रखें।
-सामान्यतः दिनभर में 400 मि.ग्रा. से कम कैफीन लेना चाहिए, लेकिन बुजुर्गों में यह मात्रा और कम हो सकती है।
दवाइयों के साथ टकराव से सावधान:
कॉफी कुछ दवाइयों जैसे थायरॉइड मेडिसिन, ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स, फेनोथियाजीन की अवशोषण दर को 55% तक घटा सकती है। इन दवाओं को लेने से एक घंटा पहले और दो घंटे बाद तक कॉफी न लें। कुछ दवाइयों के असर को कॉफी बढ़ा सकती है जैसे अस्थमा की दवाएं या उत्तेजक दवाएं इससे घबराहट या दिल की धड़कन बढ़ सकती है। रक्त पतला करने वाली दवाएं, डायबिटीज की दवाएं और लिवर में मेटाबोलाइज़ होने वाली दवाओं पर भी कॉफी का असर हो सकता है।
पुरानी बीमारियों में सावधानी:
दिल की बीमारी वालों में अनियमित दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर बढ़ने का खतरा रहता है।
कॉफी यूरिन से कैल्शियम का नुकसान बढ़ाती है, जिससे हड्डियों की कमजोरी बढ़ सकती है। ऐसे मरीजों को 300 मि.ग्रा. से कम कैफीन लेने की सलाह दी जाती है।
गैस्ट्रिक समस्याओं (एसिडिटी, अल्सर, IBS) को कॉफी बढ़ा सकती है।
बार-बार पेशाब आने की समस्या में कॉफी से बचना चाहिए।
नींद में खलल से बचाव:
उम्र के साथ कैफीन का मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है, इसलिए कॉफी शरीर में लंबे समय तक रहती है। दिन में देर से पीने पर नींद में खलल आ सकता है। सुबह कॉफी लेना ही बेहतर है।
डिहाइड्रेशन से बचें:
कॉफी हल्का मूत्रवर्धक है, इसलिए यह पानी की जगह नहीं ले सकती। बुजुर्गों को पूरे दिन भरपूर पानी पीना चाहिए।
डिकैफ कॉफी पर विचार करें:
अत्यधिक संवेदनशील, दवा ले रहे या पुरानी बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्गों के लिए डिकैफ कॉफी बेहतर विकल्प हो सकती है।
कैफीन की लत और वापसी के लक्षण:
कॉफी की मात्रा धीरे-धीरे घटाएं ताकि सिरदर्द, चिड़चिड़ापन जैसे वापसी लक्षण न हों।
जले या बहुत भूने भोजन के साथ कॉफी न लें:
ऐसे खाद्य पदार्थों के साथ कॉफी लेने से हानिकारक तत्वों के अवशोषण का खतरा बढ़ता है। हल्के भूने या उबले खाद्य पदार्थ बेहतर हैं।
डॉक्टर से परामर्श लें:
कोई भी नई दवा शुरू करने या पुरानी बीमारी के लिए इलाज करते समय कॉफी के सेवन पर डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
डॉ. भूमेश त्यागी, कंसल्टेंट – जनरल मेडिसिन एवं फिजिशियन, शारदा केयर – हेल्थ सिटीक्या कॉफी का सीमित सेवन बुजुर्गों में याद्दाश्त और दिल की बीमारियों से सुरक्षा देता है?
हां, कई बड़े अध्ययनों में यह सामने आया है कि सीमित मात्रा में कॉफी पीना – यानी 3 से 5 कप रोज़ाना दिल की बीमारियों के खतरे को कम कर सकता है। एक बड़े मेटा-विश्लेषण (जिसमें 12 लाख से अधिक लोगों को शामिल किया गया) में पाया गया कि कॉफी का सीमित सेवन दिल की बीमारियों से बचाव करता है, लेकिन अधिक मात्रा में पीने से अतिरिक्त फायदा नहीं होता। कई समीक्षा रिपोर्ट बताती हैं कि 100 से 400 मिलीग्राम कैफीन प्रतिदिन लेने से अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियों का खतरा घट सकता है और बुजुर्गों में याद्दाश्त लंबे समय तक बनी रह सकती है। AIBL नाम की एक दीर्घकालिक स्टडी में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से कॉफी पीते हैं, उनके मस्तिष्क में हानिकारक ‘एमीलॉयड’ प्रोटीन कम जमा होता है और उनकी याद्दाश्त धीमी गति से घटती है। हालांकि, ये सभी अध्ययन ‘ऑब्जर्वेशनल’ हैं यानि इनमें कोई दवा या हस्तक्षेप नहीं किया गया। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कॉफी ही इन लाभों का कारण है। बुजुर्गों के लिए कॉफी एक सहायक जीवनशैली का हिस्सा हो सकती है, लेकिन यह व्यायाम, संतुलित आहार, रक्तचाप नियंत्रण और धूम्रपान छोड़ने जैसी ज़रूरी चीज़ों का विकल्प नहीं बन सकती।
क्या किसी विशेष प्रकार की कॉफी या उसकी मात्रा से अधिक लाभ मिलता है, खासकर बुजुर्गों में?
आदर्श मात्रा: 2 से 4 कप प्रतिदिन (200–400 मिलीग्राम कैफीन) बुजुर्गों के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इससे कमजोरी (frailty) का खतरा और मृत्यु दर घट सकती है।
कॉफी का प्रकार: ब्लैक कॉफी या हल्की दूध वाली कॉफी सबसे अच्छा विकल्प है क्योंकि इनमें एंटीऑक्सिडेंट बने रहते हैं। जिन लोगों को कैफीन से दिक्कत होती है, उनके लिए डिकैफ (कैफीन-मुक्त) भी लाभकारी हो सकती है।
मीठी कॉफी से बचें: बहुत अधिक चीनी या क्रीम डालने से कॉफी के फायदे कम हो जाते हैं। यदि ज़रूरत हो तो कम मात्रा में शुगर या लो-फैट दूध का प्रयोग करें।
फ़िल्टर की गई कॉफी बेहतर: ड्रिप कॉफी (filtered) कैफेस्टॉल जैसे यौगिकों को कम करती है, जो कोलेस्ट्रॉल बढ़ा सकते हैं।
समय का ध्यान रखें: कॉफी सुबह या दोपहर तक ही पिएं ताकि नींद और रक्तचाप पर असर न हो। जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर या दिल की धड़कनों में गड़बड़ी है, वे डिकैफ या हल्की कॉफी चुनें।
बुजुर्गों को अक्सर हाई ब्लड प्रेशर, नींद की समस्या या हड्डियों की कमजोरी होती है तो क्या उम्र के साथ कॉफी की मात्रा में बदलाव ज़रूरी है?
हाई ब्लड प्रेशर: बुजुर्गों में कैफीन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है। 2-3 कप से ज़्यादा कॉफी पीने से बीपी बढ़ सकता है और धड़कनों में गड़बड़ी हो सकती है। ऐसे में सीमित मात्रा या डिकैफ सही रहेगा।
नींद: उम्र बढ़ने पर मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है, जिससे देर शाम की कॉफी नींद को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इसलिए दोपहर के बाद कॉफी से बचें।
हड्डियों की सेहत: 4 कप या उससे कम कॉफी (≤ 400 mg कैफीन) से हड्डियों पर ज़्यादा असर नहीं होता, खासकर जब पर्याप्त कैल्शियम और विटामिन D लिया जाए। हालांकि, ज्यादा मात्रा से हड्डियों की घनत्व (BMD) में हल्की कमी देखी गई है, खासकर पुरुषों में।
फ्रैक्चर का खतरा: ज्यादा कॉफी पीने से BMD थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन इससे फ्रैक्चर (हड्डी टूटने) का खतरा बहुत नहीं बढ़ता।
सुझाव: बुजुर्गों के लिए 1-3 कप प्रतिदिन (≤ 300–400 mg कैफीन), सुबह के समय पीना बेहतर है। साथ में कैल्शियम और विटामिन D की पूर्ति ज़रूरी है। अगर कोई हाई बीपी, नींद या हड्डियों से जुड़ी समस्या है तो डिकैफ या हल्की कॉफी चुनें।
अगर कोई बुजुर्ग नियमित रूप से कॉफी पीता है और साथ में दवाएं भी लेता है या किसी बीमारी से ग्रस्त है, तो क्या एहतियात बरतना चाहिए?
दवा से समय का अंतर: कॉफी कई दवाओं के असर को कम कर सकती है, जैसे थायरॉइड, बीपी, डिप्रेशन, एंटीबायोटिक्स आदि। इसलिए इन दवाओं के पहले या बाद में कम से कम 1-2 घंटे का अंतर रखें।
दिल पर असर: कैफीन बीटा-ब्लॉकर्स या कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स के असर को कम कर सकती है, बीपी बढ़ा सकती है और हार्ट रिदम बिगाड़ सकती है, खासकर हाई बीपी वाले बुजुर्गों में।
डायुरेटिक और पानी की कमी: कैफीन हल्का मूत्रवर्धक है, इसलिए अगर कोई डायुरेटिक दवा ले रहा है तो डिहाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन हो सकता है, इसलिए पर्याप्त पानी पिएं।
ज्यादा उत्तेजना से बचें: कैफीन और अन्य उत्तेजक दवाएं (जैसे अस्थमा या सर्दी की दवाएं) साथ लेने से चिंता, थरथराहट, नींद की कमी और दिल पर दबाव बढ़ सकता है।
व्यक्तिगत सलाह लें: कॉफी की मात्रा और प्रकार व्यक्ति विशेष की स्थिति के अनुसार तय करें। दिन में देर से कॉफी न लें, डिकैफ या हल्की कॉफी चुनें और डॉक्टर से व्यक्तिगत सलाह जरूर लें।