राजनीति के पाटों के बीच पिसती बेचारी जनता ही है

राजनीति के पाटों के बीच पिसती बेचारी जनता ही है
It is the poor people who are crushed between the stones of politics.

एक दोस्त ने पूछा कि आखिर मैं कब राजनीति में कदम रखूँगा? मुझे विश्वास है कि मेरे जवाब को सुनकर उसे संतुष्टि जरूर मिली होगी और उसे समझ आ गया होगा, ‘यह राजनीति क्यों मेरे काम की नहीं।’

जब उसने कहा, “तुम भी लड़ो और जीतो”

तो मैंने भी कह डाला कि

कोई लड़कर जीतता है और कोई प्यार से जीतता है। मैं प्यार से जीतने में विश्वास रखता हूँ, क्योंकि लड़कर जीतना सिर्फ राजनीतिज्ञों को आता है, इंसानों को नहीं और साहब मैं राजनीतिज्ञ बनना नहीं चाहता। हाँ साहब, मैं राजनीतिज्ञ बनना ही नहीं चाहता, क्योंकि सत्ता के लोभ में राजनीतिज्ञ अपने ईमान से भी समझौता कर लेते हैं, लेकिन मुझे समझौता करना नहीं आता और इसीलिए इस कुर्सी पर बैठने से मुझे गुरेज है।

मैंने देखा है, सत्ता की लालच में लोगों को मुखौटा पहने हुए। देखा है कि कैसे इस तख्त पर चढ़ते ही शख्सियत मिट जाती है, और यही वजह है इस कुर्सी को मेरे इनकार की, क्योंकि अब तक कोई ऐसी कुर्सी बनी नहीं जो मेरी शख्सियत को मिटा सके।

चूँकि परम मित्र था, तो इतनी जल्दी भला वह भी कैसे मान जाता इसलिए उसने भी कह डाला, “राजनीति में नए चेहरों की तलाश है।”

तो मैंने भी उससे कहा कि हाँ दोस्त, यह सच है कि राजनीति में हमेशा नए चेहरों की तलाश होती है। लेकिन राजनीति में केवल चेहरे ही बदलते हैं, कैरेक्टर हमेशा समान ही बने रहते हैं। यदि कोई नया कैरेक्टर आता है, तो वह गद्दी पर बैठने से पहले ही उखाड़ बाहर फेंक दिया जाता है, और इसीलिए मैं ऐसी राजनीति से दूरी बनाए रखने में विश्वास करता हूँ।

क्योंकि ऐ दोस्त, यह राजनीति, चक्की के दो पाटों के समान है। पक्ष-विपक्ष की लड़ाई में पिसती हमेशा बेचारी जनता ही है। जी हाँ साहब, जनता के वोटों ने सत्ता की कुर्सी पर चाहे जिसे भी बैठाया हो, बलि का बकरा हर हाल में केवल उसे ही बनना है।

इसलिए मैं कहता हूँ कि चाहे इस देश में राजा कौरव हो या पांडव, द्रौपदी हमेशा जनता ही रहेगी। कौरवों के राज में चीरहरण के काम आएगी और राज हुआ पांडवों का, तो जुए में हारती चली जाएगी। चाहे राज रावण करे या फिर राम, सीता बेचारी जनता ही बनी रहेगी। जो हुआ रावण का राज, तो वनवास से चोरी कर ली जाएगी और जब आएगा राम राज तो अग्निपरीक्षा के बाद दोबारा वनवास भेज दी जाएगी। हाँ दोस्त, यही सच है कि जब राज करता है मुस्लिम राजा, तो प्रजा के मुद्दे दफना दिए जाते हैं और जब आती है हिन्दू राजा की बारी, तो मुद्दे अग्नि में स्वाहा कर दिए जाते हैं।

तो यही कह रहा था मैं कि सत्ता पर बैठते साथ लोगों का ज़मीर मर जाता है। लेकिन अब तक कोई भी ऐसी कुर्सी नहीं बनी, जो मेरे ज़मीर को मिटा दे, और इसीलिए मैं इस कुर्सी पर बैठने के बजाए हमेशा ही इसे किनारे खिसका देता हूँ और फिर मुस्कुराकर कह देता हूँ कि यह राजनीति मेरे काम की नहीं।

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