जानें आरक्षण को संविधान में क्या सोचकर दी गई थी जगह, मौजूदा समय में क्या है हालात
आज सच्चाई भी यही है कि आरक्षण एक ऐसी मलाई है जिसे हर जाति के लोग खाना चाहते हैं. इस बैसाखी के सहारे जीवन स्तर संवारना चाहते हैं.
महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए संविधान पीठ ने माना है कि 102वें संविधान संशोधन के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है. ऐसे में इस संशोधन की वैधता और उसके असर पर भी विचार ज़रूरी है. जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि मामले का सभी राज्यों पर असर पड़ेगा. ऐसे में उनका पक्ष जानना जरूरी है.अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 15 मार्च से विस्तार से सुनवाई शुरू होगी अब हम आपको बताते हैं कि संविधान में आरक्षण को जगह क्या सोच कर दी गई थी और मौजूदा समय में उसका आधार क्या है?
अभी देश में आरक्षण का प्रावधान इस तरह है. 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया जाता है. जबकि अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसद आरक्षण है. वहीं, 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी कि ओबीसी को दिया जाता है. इनको अगर जोड़ दें तो कुल आरक्षण 49.5 फीसदी होता है. लेकिन इसके अलावा 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को मिल रहा है. वहीं राज्य की अलग-अलग सरकारें अपने यहां की आबादी के लिहाज से एससी, एसटी और ओबीसी के बीच आरक्षण का वर्गीकरण करके दे रही हैं.
क्या कहा था डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने
जबकि सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि आरक्षण का दायरा 50 फीसदी को ना लांघे. लेकिन गाहे-बगाहे आरक्षण की नई मांग को लेकर सड़क से संसद और अदालत तक संघर्ष दिखता रहता है.कारण ये है कि संविधान में आरक्षण की व्यवस्था जिस मकसद से की गई थी वो अब राजनीति की भेंट चढ़ी दिखती है.यही वजह है कि आरक्षण का समय समाप्त होने के बाद भी वी पी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें न सिर्फ अपनी मर्जी से कराईं, बल्कि उन्हें लागू भी किया जिसके खिलाफ काफी हंगामा और प्रदर्शन भी हुआ और कुछ युवाओं की जान तक चली गई थी.
अब हम आपको डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का एक बयान सुनवाते जो उन्होंने संविधान निर्माण के बाद कही थी डॉ अंबेडकर ने कहा था कि 10 साल में ये समीक्षा होनी चाहिए कि जिन्हें आरक्षण दिया गया उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ या नहीं? यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए.
मतलब खुद संविधान निर्माता ने संविधान बनाते वक्त उसमें आरक्षण की स्थाई व्यवस्था नहीं की थी. इसके पीछे उन्होंने वजह बताई थी कि आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे पूरी जिंदगी काट दी जाए ये विकसित होने का हथियार मात्र है. महात्मा गांधी ने हरिजन पत्रिका के 12 दिसंबर 1936 के संस्करण में लिखा था. धर्म के आधार पर दलित समाज को आरक्षण देना अनुचित होगा.आरक्षण का धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है सरकारी मदद केवल उन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए जो सामाजिक स्तर पर पिछड़ा हुआ हो.
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की राय
अब हम आपको सुनवाते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की राय आरक्षण को लेकर क्या थी.नेहरू ने 26 मई 1949 को असेंबली में भाषण देते हुए कहा था- अगर हम किसी अल्पसंख्यक वर्ग को आरक्षण देंगे तो उससे समाज में असंतुलन बढ़ेगा..ऐसा आरक्षण देने से भाई-भाई के बीच दरार पैदा हो जाएगी.
आज सच्चाई भी यही है कि आरक्षण एक ऐसी मलाई है जिसे हर जाति के लोग खाना चाहते हैं. इस बैसाखी के सहारे जीवन स्तर संवारना चाहते हैं..लेकिन आरक्षण की अवधारणा के उलट वास्तविकता ये भी है कि जातिगत आरक्षण का सारा लाभ ऐसे वर्ग को मिल रहा है जिनके पास सब कुछ है और जिन्हें आरक्षण की कोई जरूरत नहीं है. करोड़पति, अरबपति होने के बावजूद उनके बच्चे भी आरक्षण सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं.
इसीलिए अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से पूछा है कि क्या आरक्षण की मौजूदा सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक किया जा सकता है? और सियासतदां भी कहने लगे हैं कि अब जातिगत आधारित जनगणना होनी चाहिए ताकि जाति आधारित आरक्षण का मूल्यांकन किया जा सके.
ये निकला आरक्षण का नतीजा
पिछले कुछ सालों से आप बाजार में टीशर्ट्स या पोस्टर्स में लिखा देखते हैं कि I was born intelligent but reservation ruined me.इसका मतलब ये हुआ कि मैं विलक्षण पैदा हुआ था लेकिन आरक्षण ने मुझे बर्बाद कर दिया लाजिमी है कि ऐसा कहने वाले लोग general category के ही होंगे.
यहां आपको एक बार फिर बता दें कि संविधान में आरक्षण के प्रावधान के पीछे सोच भी यही थी कि इससे असमानता दूर होगी. लेकिन जब आप ऐसे आंकड़े देखते हैं तो आपको लगता है कि इससे असमानता बढ़ी है क्योंकि आरक्षण का नतीजा ये है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग सरकारी नौकरियों में जगह तो बना लेते हैं, लेकिन प्राइवेट जॉब में इनकी भागीदारी कम होती है.ओबीसी और general category के लोग निजी नौकरियों में ज्यादा कामयाब होते हैं क्योंकि आम तौर पर प्राइवेट जॉब में आरक्षण का बैरियर नहीं लगा होता है.