बंगाल में मध्यप्रदेश के इन 4 दिग्गजों पर बीजेपी ने क्यों लगाया दांव?, जानिए परदे के पीछे की कहानी

हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश के इन 4 दिग्गजों को स्टार प्रचारक बनाकर ‘बंगाल फतह अभियान’ में शामिल किया गया है….

भोपाल: पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. इसी बीच बीजेपी ने मंगलवार को पहले चरण के लिए अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 40 नामों को जगह मिली है. इस लिस्ट में मध्यप्रदेश भाजपा के चार दिग्गज नेताओं को भी जगह दी गई है. इनमें पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे दिग्गजों का नाम है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस लिस्ट में राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को जगह नहीं मिली है. बता दें कि मध्यप्रदेश की सत्ता में बीजेपी की वापसी कराने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अहम भूमिका रही है.

बीजेपी ने बंगाल चुनाव के लिए स्‍टार प्रचारकों की जो लिस्ट जारी की है उसमें में मध्यप्रदेश के जिन 4 नेताओं को जगह दी गई है. उसके पीछे बीजेपी का खास रणनीति हो सकती है. हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश के इन 4 दिग्गजों को स्टार प्रचारक बनाकर ‘बंगाल फतह अभियान’ में शामिल किया गया है….

यहां समझिए परदे के पीछे की कहानी

1. कैलाश विजयवर्गीय

पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की आक्रामकता के जवाब में अमित शाह ने कैलाश को मोर्चे पर लगाया हुआ है. कैलाश विजयवर्गीय लंबे समय से पश्चिम बंगाल के पार्टी प्रभारी हैं. उन्हें अमित शाह का करीबी माना जाता है. विजयवर्गीय की छवि एक आक्रामक नेता की मानी जाती है. साल 2015 में पश्चिम बंगाल प्रभारी की कमान संभालने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने सबसे पहले राज्य में हिंसा में मारे गए और घायल हुए पार्टी कार्यकर्ताओं के घर जाना शुरू किया. इससे कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी लगा कि पार्टी उनके साथ है, जिससे स्थानीय संगठन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हुआ.

क्यों दी गई कैलाश को बड़ी जिम्मेदारी
कैलाश वियवर्गीय ने बंगाल में संगठन को मजबूत करने का काम किया है. साल 2015 में अमित शाह ने उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया और इसके साथ ही पश्चिम बंगाल में पार्टी का प्रभारी बना दिया गया. विजयवर्गीय के नेतृत्व में पार्टी ने बंगाल में बढ़त भी हासिल की है. बताया जाता है कि  साल 2015 के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं को सत्ताधारी टीएमसी के खौफ से बाहर निकाला. इसके बाद एक साल बाद ही मेहनत रंग लाई, जब 2016 के विधानसभा चुनावों में कैलाश विजयवर्गीय की सफलता तीन विधानसभा सीटों के अंकों में तब्दील हो चुकी थी. इससे उनका उत्साह बढ़ा और वे पार्टी का विस्तार करने लगे. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दो सीटों वाली बीजेपी को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अपनी मेहनत से सीधे 18 सीटों पर पहुंचा दिया है. इसके अलावा उन्होंने टीएमसी के बड़े नेताओं को बीजेपी में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई, इन नेताओं में सुभेंदु अधिकारी, राजीव बनर्जी, मिथुन चक्रवर्ती, दिनेश त्रिवेदी, क्रिकेटर अशोक डिंडा. यही वजह है कि बंगाल फतह करने के लिए पार्टी ने कैलाश विजयवर्गीय को बड़ी जिम्मेदारी दी है और वह इसके लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं.

2. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा

एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कद पार्टी में बढ़ा और संगठन में उनकी काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है. नरोत्तम मिश्रा बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीबी भी माने जाते हैं. यही वजह है कि पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है. उन्हें 48 विधानसभा सीटों का प्रभारी बनाया गया है. इसके अलावा मध्यप्रदेश के सियासत में कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा में अच्छी ट्यूनिंग मानी जाती है. दोनों शिवराज कैबिनेट में एक-साथ काम भी कर चुके हैं. कैलाश विजयवर्गीय लंबे समय से केंद्रीय राजनीति में शिफ्ट हो गए हैं. हालांकि बीच-बीच में वह एमपी की राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं. भोपाल दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय चर्चा के लिए नरोत्तम मिश्रा के पास जरूर जाते हैं. दोनों की जोड़ी का फायदा पार्टी को पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी मिलेगा.

3. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

पश्चिम बंगाल के रण में सीएम शिवराज भी बीजेपी के लिए वोट मांगेंगे. एमपी में बतौर चौथी बार सीएम की पारी में शिवराज सिंह चौहान ने अपनी नरम दिल वाली छवि को बदलने के लिए काफी मेहनत की है. लव जिहाद के खिलाफ कानून हो, माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो या फिर इस्लामिक नाम वाले शहरों और ऐतिहासिक स्थलों के नाम बदलने की शुरुआत हो, शिवराज सिंह चौहान ने खुद को बदला है. शायद यही वजह है कि हिंदुत्व के एजेंडे को आगे रखते हुए बीजेपी ने एमपी से बड़े चेहरे के तौर पर सीएम शिवराज को ममता के सामने मैदान में उतारा है, जबकि कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा पहले से ही बंगाल में मोर्चा संभाले हुए हैं.

4. केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते

मध्यप्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता फग्गन सिंह कुलस्ते पार्टी के बड़े आदिवासी नेता माने जाते हैं. लिहाजा बंगाल में आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के लिए पार्टी ने उन्हें बंगाल के सियासी रण में उतारा है. पश्चिम बंगाल की राजनीति में मतुआ संप्रदाय काफी अहम है और बीजेपी आदिवासी और अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय के लोगों पर फोकस कर अपना मिशन-200 पूरा करना चाहती है. पश्चिम बंगाल में साल 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 1.84 करोड़ है और इसमें 50 फीसदी मतुआ संप्रदाय के लोग हैं. उत्तर बंगाल के चाय बागान इलाकों में लोकसभा की दो और विधानसभा की कम से कम एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जहां चाय बागान मज़दूरों के वोटों से ही हार-जीत तय होती है. इसी तरह दक्षिण बंगाल के आदिवासी-बहुल जिलों में लोकसभा की कम से कम चार और विधानसभा की 20 सीटों पर आदिवासी वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. शायद यही वजह है कि बीजेपी ने मध्यप्रदेश की मंडला सीट से छठवीं बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले फग्गन सिंह कुलस्ते को बंगाल में स्टार प्रचारक बनाया है.

बता दें कि पश्चिम बंगाल में कुल 8 चरणों में चुनाव होना है. 294 सीटों पर होने वाले इस चुनाव के नतीजे 2 मई को आएंगे.

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