भिंड में अपराध का नया ट्रेंड:कमाई ज्यादा और सजा कम होती है, इसलिए अवैध हथियार छोड़ बनाने लगे शराब
- 5 माह में आर्म्स एक्ट से 4 गुना ज्यादा दर्ज हुए आबकारी मामले
चंबल के भिंड जिले में अपराध का ट्रेंड बदल रहा है। अब अवैध हथियार की खरीद-फराेख्त के बजाए अवैध शराब की फैक्टरियां ज्यादा चल रही हैं। वजह साफ है, देशी कट्टे बेचने के लिए ग्राहक ढूंढने होते थे और शराब के लिए हर गांव में ग्राहक हैं।
अवैध शराब की बिक्री पर माफिया कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाता है और पकड़े जाने पर सजा भी कम। लेकिन अवैध हथियार के मामले में मुनाफा भी कम और सजा भी ज्यादा है। यही कारण है कि अब ग्रामीण इलाकों के लोग देशी कट्टों की बिक्री के बजाए अवैध शराब के गोरखधंधे में ज्यादा लिप्त पाए जा रहे हैं। पिछले पांच माह में आर्म्स एक्ट के 84 मामले दर्ज हुए जबकि अवैध शराब के 354 केस दर्ज हुए। यानी आर्म्स एक्ट की तुलना में चार गुना से अधिक आबकारी एक्ट के मामले जिले के थानों में दर्ज हुए हैं।
पांच साल पहले मेहगांव, गोरमी और देहात थाना क्षेत्र के कई गांव अवैध हथियारों के लिए बदनाम थे। इन गांवों में बिहार, उप्र से कट्टे मंगाकर पड़ोसी जिलों तक बेचे जाते थे। कुछ गांव में लोग बनाने भी लगे थे। लेकिन अब अवैध हथियारों की जगह शराब ने ले ली है। हाल ही में मेहगांव इलाके में आधा दर्जन से ज्यादा अवैध शराब की बड़ी फैक्टरियां पकड़ी जा चुकी हैं, लेकिन फिर भी यह अवैध धंधा बंद नहीं हो पा रहा।
अवैध शराब का काराेबार बढ़ने के तीन बड़े कारण
- मुनाफा: जिले में ज्यादातर देशी तमंचे यूपी, बिहार से आते हैं। एक देशी तमंचा बेचने पर बमुश्किल 500 से 700 रु. का मुनाफा होता है। जबकि एक पेटी शराब बनाकर बेचने में ढाई से तीन हजार रु. का लाभ कमा लेते है।
- खतरा: देशी तमंचा बेचने के बाद यदि खरीदार पकड़ा जाता है तो वह पुलिस को बेचने वाले का नाम बता देता है, इससे खतरा ज्यादा रहता है। जबकि शराब का शौकीन खाली क्वार्टर फेंककर सबूत नष्ट कर देता है।
- सजा: एडीपीओ इंद्रेश कुमार प्रधान के अनुसार बड़ी संख्या में अवैध हथियार पकड़े जाने पर आर्म्स एक्ट में पहले तीन साल की सजा का प्रावधान था, जो अब बढ़कर 7 साल हो गई है। बड़ी मात्रा में अवैध शराब पकड़े जाने पर अधिकतम 5 साल और 49(ए) में 4 माह से 4 साल तक की सजा है।