इंदरगढ़/भांडेर बाढ़ के जख्म:पॉलिथीन के टेंट में रह रहे बाढ़ पीड़ित बोले- छह छह हजार के पुट्ठा पकरा गए, खातन में एक रुपया नई आओ, ऐसे कब तक जीवन कटै…
- आसपास से लोग जो खाने के लिए दे जाते हैं उसी पर निर्भर हैं ग्रामीण
- इंंदरगढ़ के पाली व अंडोरा और भांडेर के ढीमरपुरा गांव में बाढ़ आने के बाद एक महीने बाद भी हालात बदतर
- घर टूटे, अब पॉलिथीन की झोपड़ी में जीवन… बदहाली ऐसी कि राशन के लिए भी दानदाताओं पर निर्भर
कछु दिना पहले हमें छह-छह हजार रुपए के पुट्ठा (प्रतीकात्मक चेक) मिले थे। तब से रोजीना पासबुक लेकें बैंक जात रुपईया चेक करावे लेकिन अबे तक रुपईया खाते में नईं आए। मकान टूट गए, सरकार की राशि कबे मिले कछु पतो नईयां। पैसा मिल जाते तो हम रैवे के लानें ठोर बना लेते अपने गांव में। कछु काम धंधों देखते लेकिन इते हाथ पे हाथ धरे बैठे। सरकार खाबे पीबे तक के लाने नई दे रई। आसपास के गांव के लाेग और कछु दानदाता दे जात, बई से बच्चन को और हमाओ पेट भर रओ। यह कहना है बाढ़ से बर्बाद हुए पाली गांव के अशोक केवट का।
सिंध नदी में आई बाढ़ से मची तबाही को एक महीना होने वाला है। इस एक महीने में बाढ़ प्रभावित गांवों में कुछ नहीं बदला। सैकड़ों ग्रामीणों को गांव से बाहर निकालकर बाढ़ से तो बचा लिया गया। बाढ़ पीड़ित अभी भी इसी चिंता में हैं कि अब न जाने कैसे गृहस्थी बसेगी। बुधवार को दैनिक भास्कर टीम ने बाढ़ प्रभावित इंदरगढ़ क्षेत्र के ग्राम पाली व अंडोरा और भांडेर के ढीमरपुरा गांव में पहुंचकर हालात देखे। यहां एक महीने बाद भी लोगों का जीवन पटरी पर नहीं लौटा है।
पाली गांव: ग्रामीण बोले- पूरो मकान गिर गओ, राेजीना सांप निकर रये…
पाली गांव में झोपड़ी बनाकर रह रहे लोगों से भास्कर टीम ने बात की तो बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि यहां 80 परिवार प्रभावित हैं। इनमें से 26 लोगों को ही आवास बनाने के लिए सरकार से राशि दी गई। हालांकि यह राशि किस-किस को मिली, यह कोई नहीं बता सका। पेड़ के नीचे छप्पर बनाकर रह रहे अशोक के परिजन ने बताया कि उन्हें छह हजार रुपइया को जो पुठ्ठा (प्रतीक चेक) दे गए थे, लेकिन रुपया एकऊ नहीं आओ। रोजीना खाते में चेक करा रये। रामसुख रावत रुआंसी हालत में कहते हैं- पूराे मकान गिर गओ और जा झोपड़ पट्टी में दो बच्चन के संगे रे रये। रोजीना सांप निकर रये। कबें खा जाएं पतो नईयां। शासन की तरफ से एकऊ पैसा नई मिलो। राहत सामग्री भी नई आई। दानदाता दे रए उनसे पेट भर रओ। लक्ष्मण केवट बताते हैं कि हमारे पिता रतीराम केवट के नाम पर परिवार आईडी है जिसमें हम चार भाइयों के परिवार भी शामिल हैं लेकिन न तो पिताजी के खाते में एक रुपया आया न हम भाइयों को कुछ मिला। इसी तरह रामरतन केवट परिवार के 11 सदस्य हैं। जमीन भी नहीं है न रोजगार का साधन। यह पूरा परिवार दो कच्ची झोपड़ियों और टीनशेड के नीचे रहकर जीवन गुजार रहा है। अब तक खाते में एक रुपया भी नहीं आया।
अंडोरा गांव: बाढ़ से हमारा सब कुछ खत्म हो गया…
अंडोरा गांव में बुधवार की दोपहर 3 बजे जब भास्कर टीम पहुंची तो यहां भी बदतर हालात मिले। ग्रामीणों ने बताया कि हमारा जितना नुकसान हुआ है, उतने पैसे हमें नहीं मिले। आंगनबाड़ी केंद्र में रह रहीं पुष्पा बघेल बताती हैं कि बाढ़ से गांव में हमारा सब कुछ खत्म हो गया। हमें आंगनबाड़ी केंद्र की पक्की बिल्डिंग तो रहने के लिए मिल गई लेकिन यहां कब तक जिंदगी कटेगी। हमारा लाखों रुपए का नुकसान हो गया और मुआवजा के नाम पर 10 हजार रुपए ही मिले। अब इतने रुपए से पेट भरें कि घर बनाएं। जमुना बाई जाट ने बताया है कि हमारा बाढ़ में घर बह गया है। अब हम दूसरे के मकान में रह रहे हैं। अब तक कुछ मुआवजा नहीं मिला। इसी तरह भगवान दास बघेल बताते हैं कि मकान की हालत ऐसी कि न जाने कब गिर जाए। अगर उसमें रहने चले गए और गिर गया तो कोई जिंदा नहीं बचेगा। किराए से मकान लेकर रह रहे हैं। सर्वे में भूसा घर लिख दिया। भास्कर संवाददाता ने पटवारी नीरज शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि 98 लोगों के खाते में पैसे डाले जा चुके हैं। जिसका पूर्ण नुकसान हुआ है उसके खाते में 95100+11000 और जिनका आंशिक नुकसान हुआ है उनके खाते में 5200+5000 रुपए बैंक खाते में डाले गए हैं।
ढीमरपुरा गांव: खाते में पैसे आए, गांव वाले बोले- ऊंचाई पर जमीन दो, गांव में नहीं रहेंगे
सेंवढ़ा अनुभाग के ढीमरपुरा गांव में 3 अगस्त में आई बाढ़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। 120 परिवार तथा 450 की आबादी वर्तमान में गांव से दूर टीले पर टेंट में रह रही है। गांव के रामहजूर केवट, मिठू केवट सहित अधिकांश लोगों के खातों में मकान क्षतिग्रस्त होने पर आरबीसी (64) के तहत मिलने वाली सहायता राशि आ चुकी है। लगभग एक लाख की राशि मिल जाने के बाद भी ग्रामीण अपने आशियाने नहीं बना पा रहे। कारण ढीमरपुरा के लोगों ने प्रशासन से नदी से दूर, ऐसे स्थान पर जमीन की मांग की है जहां शिक्षा व रोजगार भी सुलभ हो सके। प्रशासन ने उन्हें जमीन देने का आश्वासन भी दिया था लेकिन अब तक जमीन दी नहीं है। ऐसे में लोग पॉलिथीन के टेंट में ही जिंदगी काट रहे है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उन्हें जमीन नहीं मिलती, वे यहीं रहेंगे। कोई भी अब गांव में मकान बनाने को तैयार नहीं है। जमीन को लेकर नायब तहसीलदार सुनील वर्मा बताते हैं कि जेल के पास सरकारी जमीन आवंटन की प्रक्रिया में है। पटवारियों की हड़ताल के कारण आवंटन नहीं हो सका। शीघ्र ही आवंटन कराने का प्रयास कर रहे हैं।
जो लोग छूट गए वे आवेदन दें
अलग-अलग पात्रता के हिसाब से राशि वितरित की जा रही है। ये आवश्यक नहीं है कि सभी तरह की राहत राशि सभी हितग्राही को दी जाए। पात्रता के अनुसार ही राशि मिल रही है। जो राहत राशि बांटी गई है उसकी सूची बनाकर हर गांव में प्रकाशन कराया गया था और उसके बाद दावा आपत्ति भी लिए गए थे। दावा आपत्ति के निराकरण के बाद राहत राशि का वितरण किया गया है। फिर भी जो लोग छूट गए हैं वे एसडीएम कार्यालय में आवेदन कर दें। उन्हें शासन का लाभ दिलाया जाएगा।
अनुराग निंगवाल, एसडीएम, सेंवढ़ा