देहदान न होने से परेशानी:जीआरएमसी को 20 माह से दान में नहीं मिली डेड बॉडी, अब छात्रों के आगे पढ़ाई का संकट
गजराराजा मेडिकल कॉलेज (जीआरएमसी) का एनाटोमी विभाग देहदान के संकट से गुजर रहा है। यहां पिछले 20 महीने से कोई डेड बॉडी दान के रूप में नहीं मिली है। इसके चलते यहां पढ़ने वाले छात्रों को मानव शरीर संरचना की व्यवहारिक शिक्षा सिर्फ एक शव के भरोसे चल रही है।
कॉलेज को दान में डेडबॉडी न मिलने का संकट कोरोना काल के साथ शुरू हुआ था। फरवरी 2020 में एनाटोमी विभाग को श्वेता कुलकर्णी की बॉडी दान में मिली थी। एमबीबीएस के प्रथम प्रोफ में शरीर रचना के बारे में मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाया जाता है, जिसके लिए डेडबॉडी की आवश्यकता होती है। अब विभाग के पास सिर्फ एक ही बॉडी बची है।
इसके अलावा चार शव वह हैं जिन पर पहले से ही मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाया जा रहा है तथा अब उसके कुछ ही अंग शेष रह गए हैं। ऐसे में प्रदेश के वे मेडिकल कॉलेज जहां पढ़ाई के लिए पर्याप्त संख्या में बॉडी उपलब्ध हैं, से संपर्क किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक जबलपुर मेडिकल कॉलेज में वर्तमान में 36 शव उपलब्ध हैं। अगर वहां से मदद मिलती है तो जीआरएणसी की समस्या हल हो सकती है।
देहदान को बढ़ावा देने एनाटोमी विभाग ने दिए सुझाव
देहदान को बढ़ावा देने के लिए एनाटोमी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर सक्सैना ने कॉलेज प्रबंधन को कुछ सुझाव दिए हैं-
- देहदान करने वाले परिवार को 11 हजार की प्रोत्साहन राशि दें।
- रक्त संबंधियों काे जेएएच में आजीवन फ्री इलाज मिले।
- परिजनों को प्रशासनिक अधिकारी द्वारा 26 जनवरी या 15 अगस्त के दिन प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाए।
- देहदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने समाजसेवी संस्थाओं की मदद ली जाए।
वर्चुअल डायसेक्टर का प्रस्ताव शासन को भेजा
शव की कमी को देखते हुए जीआरएमसी प्रबंधन ने वर्चुअल डायसेक्टर का प्रस्ताव शासन को जनवरी माह में भेजा था। शवों की कमी को देखते हुए नेशनल मेडिकल कमीशन ने वर्चुअल डायसेक्टर से पढ़ाने की अनुमति दे दी है। शासन ने ग्वालियर के साथ-साथ विदिशा, जबलपुर और इंदौर मेडिकल कॉलेज से वर्चुअल डायजेक्टर के लिए प्रस्ताव मांगे थे। इसकी स्वीकृति भी हो गई है। जल्द ही वर्चुअल डायसेक्टर कॉलेज को मिल सकता है। इसकी कीमत करीब 4 करोड़ रुपए बताई जा रही है।