धनबाद के तुषार ने एक साल पहले हाइड्रोपोनिक फार्मिंग की शुरुआत की, अब सालाना 10 करोड़ टर्नओवर
पिछले कुछ सालों में हाइड्रोपोनिक सिस्टम यानी सॉयललेस फार्मिंग का ट्रेंड बढ़ा है। कमर्शियल लेवल के साथ-साथ पर्सनल लेवल पर भी लोग इसे अपना रहे हैं। धनबाद के रहने वाले तुषार अग्रवाल भी हाइड्रोपोनिक सिस्टम को लेकर काम कर रहे हैं। पिछले साल कोविड के दौरान उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया। वे खुद फार्मिंग करने के साथ ही देशभर में हाइड्रोपोनिक सिस्टम डेवलप करने का काम कर रहे हैं। फिलहाल उनका सालाना टर्नओवर 10 करोड़ रुपए है।
चलिए आज की पॉजिटिव खबर में हम समझते हैं कि हाइड्रोपोनिक फार्मिंग क्या होती है? यह कैसे की जाती है? कैसे तुषार काम करते हैं और उनकी कमाई का मॉडल क्या है…
शुरुआत से ही स्टार्टअप में दिलचस्पी थी
27 साल के तुषार की शुरुआती पढ़ाई लिखाई धनबाद में हुई। इसके बाद बेंगलुरु से उन्होंने BBA की पढ़ाई की। फिर 2018 में अहमदाबाद से MBA की डिग्री ली। चूंकि उन्हें खुद का ही कुछ काम करना था, इसलिए कॉलेज टाइम से ही वे कई स्टार्टअप को लेकर काम करते रहे। किसानों से भी उनका मिलना होता रहा।
इसी दौरान उन्हें हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में दिलचस्पी बढ़ी। इसको लेकर स्टडी और रिसर्च करना शुरू किया। कई किसानों और कंपनियों से कंसल्ट किया। फिर 2020 में अपने दोस्तों के साथ मिलकर राइज हाइड्रोपोनिक्स नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की।
तुषार बताते हैं कि सबसे पहले हमने अहमदाबाद में अपना फार्म डेवलप किया। उसमें हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिये ढेर सारे प्लांट लगाए। कुछ महीने बाद ही सब्जियां निकलने लगीं। यानी शुरुआत में ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला। इसके बाद कुछ लोगों ने इसको लेकर दिलचस्पी दिखाई। वे लोग चाहते थे कि हम लोग उनके लिए भी ऐसा ही फार्म डेवलप करें।
पहले से मार्केटिंग का अनुभव था, जो बिजनेस बढ़ाने में काम आया
तुषार कहते हैं कि जब लोगों की डिमांड बढ़ी तो हमें लगा कि फार्मिंग के साथ-साथ इसमें बिजनेस को लेकर और भी स्कोप है। कई लोग हैं जिन्हें पर्सनल लेवल के साथ ही कमर्शियल लेवल पर हाइड्रोपोनिक सिस्टम में दिलचस्पी है। इसके बाद हमने इसकी मार्केटिंग करनी शुरू की। चूंकि अपने पास पहले से मार्केटिंग का अनुभव था। डिजिटल मीडिया की समझ थी। हमने इसका भरपूर फायदा उठाया। तीन-चार महीने के भीतर ही हमारा स्टार्टअप अच्छा खासा जम क्या। कई बड़े प्रोजेक्ट हमें मिल गए।
कैसे काम करते हैं? क्या है मार्केटिंग मॉडल?
तुषार बताते हैं कि अहमदाबाद और वडोदरा में हमारा खुद का फार्म है। जहां हम हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए बड़े लेवल पर फार्मिंग कर रहे हैं। वहां जो भी प्रोडक्शन होता है, उसे हम मार्केट में सप्लाई करते हैं। इसके साथ ही हम देशभर में कमर्शियल और पर्सनल लेवल पर हाइड्रोपोनिक सिस्टम और पॉलीहाउस इंस्टॉल करते हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार सहित कई राज्यों में हमारी टीम काम कर रही है। एक साल के दौरान हम लोग 30 से बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर चुके हैं। साथ ही 100 के करीब सिस्टम हमने पर्सनल लेवल पर भी डेवलप किया है।
वे बताते हैं कि पर्सनल लेवल पर जो लोग यह सिस्टम इंस्टॉल कराना चाहते हैं, उनके लिए हमने एक किट तैयार की है। उसमें सभी इक्विपमेंट्स, फर्टिलाइजर और सीड्स मौजूद होता है। कस्टमर्स के लिए हम एक वीडियो भी प्रोवाइड करते हैं। ताकि वह खुद से अपने घर में हाइड्रोपोनिक सिस्टम इंस्टॉल कर सके।
इसके अलावा तुषार अब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर भी काम कर रहे हैं। इसके जरिए उन्होंने देश के 15 शहरों में काम फाइनल किया है। जहां वे अपनी कंपनी के बैनर तले हाइटेक फार्म बनवाएंगे। इसका खर्च उस व्यक्ति का होगा जो यह फार्म डेवलप करवाएगा, जबकि उसे मैनेज करने का काम तुषार की टीम करेगी। फिलहाल तुषार की टीम में करीब 100 लोग काम करते हैं।
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग क्या होती है?
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग यानी सॉयललेस फार्मिंग। इसके लिए जमीन की जरूरत नहीं होती है। जमीन की जगह पाइप या स्टैंड में प्लांटिंग की जाती है। इसकी पूरी प्रोसेस और तकनीक ऐसी होती है कि प्लांट के डेवलपमेंट के लिए जरूरी चीजें वॉटर मीडियम के जरिए मुहैया कराई जा सकें। आमतौर पर कोकोपीट यानी नारियल के वेस्ट से तैयार नेचुरल फाइबर का इस्तेमाल मिट्टी की जगह किया जाता है। कई बार कंकर और पत्थर का भी इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद पानी के जरिए जरूरी मिनरल्स प्लांट तक पहुंचाया जाता है। इससे कम वक्त में ज्यादा प्रोडक्शन होता है।
ऑफिस में बैठकर भी कर सकते हैं कंट्रोल
इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि इसके लिए पानी की जरूरत बहुत कम होती है। सामान्य खेती के मुकाबले इसमें 30% ही पानी की जरूरत होती है। ऐसी खेती में चाहे गर्मी हो या ठंड सिंचाई के टेंशन से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही इसे ऑटोमेटिक कंट्रोल सिस्टम के जरिए ऑफिस में बैठकर भी पौधों की देखभाल की जा सकती है। एक स्विच के जरिए पौधों में पानी और जरूरी मिनरल्स पहुंचाया जा सकता है। इससे लेबर कॉस्ट भी बचता है और सिंचाई का खर्च भी। साथ ही बहुत अधिक स्पेस की अनिवार्यता भी खत्म हो जाती है। यही वजह है कि इस तरह की फार्मिंग की अब डिमांड बढ़ रही है।
कहां से ले सकते हैं हाइड्रोपोनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग?
देश में कई जगहों पर हाइड्रोपोनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इस संबंध में जानकारी ले सकते हैं। इसके साथ ही कई प्रोफेशनल्स भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। 2 से 5 दिन का इसका कोर्स होता है। खुद तुषार भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। अब तक वे ऑफलाइन और ऑनलाइन लेवल पर 25 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। बाकी आप अपने लोकेशन के हिसाब से गूगल की मदद से संबंधित संस्थान के बारे में जानकारी ले सकते हैं। आजकल कई ऑनलाइन कोर्स और वीडियो इंटरनेट पर इससे रिलेटेड उपलब्ध हैं।
आप हाइड्रोपोनिक फार्मिंग करना चाहें तो क्या खर्चा आएगा, कितना मुनाफा हो सकता है?
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग पर्सनल और कमर्शियल लेवल, दोनों ही तरह से की जा सकती है। अगर आप अपने घर की जरूरत की सब्जियों के लिए हाइड्रोपोनिक सिस्टम इंस्टॉल कराना चाहते हैं तो लागत काफी कम आएगी। आप अपने छत पर 10 से 15 हजार रुपए में यह सिस्टम इंस्टॉल करा सकते हैं। इसके लिए मार्केट में सेटअप भी मिल जाता है। आप चाहें तो एक्सपर्ट के जरिए इसे अपने घर में इंस्टॉल करा सकते हैं या फिर खुद भी लर्निंग वीडियो देखकर कर सकते हैं।
वहीं अगर आप कॉमर्शियल लेवल पर खेती करना चाहते हैं तो आपकी लागत बढ़ जाएगी। 10 लाख से लेकर 20 लाख तक का खर्चा आ सकता है। हां इसको लेकर 30% से लेकर 50% तक सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिलती है। इसके लिए आपको अलग वैराइटी के प्लांट लगाने होंगे। साथ ही टेंपरेचर मेंटेन करने के लिए पॉली हाउस लगाना होगा। आप बैंक से लोन लेकर भी पॉली हाउस लगवा सकते हैं।