महिला लीडर्स रसोई की वो चम्मच हैं, जिनसे सूप पीने के साथ जरूरत पड़ने पर पजामे में नाड़ा भी डाला जा सके
करीब 9 साल पुरानी ये कहानी फ्रांसीसी संसद की है। नेशनल असेंबली में बोलने के लिए एक नई-नकोरी महिला सांसद खड़ी हुई। सिसील डफलॉट नाम की ये MP कुछ बोलतीं, इससे पहले ही सदन में सीटियां गूंजने लगीं। आवारागर्द सीटियां। होंठ गोल करके बजती वो सीटी, जो गली के शोहदों की पहचान है। असल में सांसद ने सूट-ट्राउजर की बजाय फूलदार छापे वाली फ्रॉक पहनी थी। पेरिस की क्यारियों से मेल खाती नीले फूलों वाली फ्रॉक का कसूर ये था कि वो घुटनों तक थी और गले से नीचे हल्के उभार दिख रहे थे।
कपड़ों की भूलभुलैया में सांसद अपनी जगह भूल गए। ओहदा भूल गए। उन्हें याद रही तो बस वो स्त्री, जिसकी देह ही उसकी पहचान है। स्त्री, जो सुंदर होती है या बदसूरत। स्त्री, जो वजनी होती है, या फिर नपी-तुली। स्त्री, जिसका स्त्रीधर्म पुरुष आंखों को तरावट देना है। साल 2021 के नवंबर में भारत में भी ऐसा ही हादसा घटा। शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने महिला सांसदों के साथ एक तस्वीर ट्वीट की, जिसके साथ लिखा हुआ था- ‘कौन कहता है कि लोकसभा काम करने के लिए आकर्षक जगह नहीं?’
तस्वीर मासूम है, लेकिन छोटे से कैप्शन ने फोटो के मायने बदल दिए। बेहद सहज लगते इस कैप्शन को डीकोड करें तो समझ आता है कि संसद में महिलाओं का होना ठीक वैसा ही है, जैसे सर्कस में जोकर का होना। जोकर हंसता है, लोग हंसते हैं। जोकर रोता है, लोग हंसते हैं। जोकर का काम देखनेवालों का मनोरंजन है, और महिला नेताओं का काम पुरुष नेताओं का मनोरंजन।
महिला नेता वैसे मल्टीपरपस होती हैं। वो अपने साथी नेताओं का ही दिल नहीं बहलातीं, बल्कि चुनाव प्रचार में चुंबक का भी काम करती हैं। यही वजह है कि प्रचार के दौरान महिला नेताओं की टोलियां भर-भरकर भेजा जाती हैं। माथे पर छोटा-सा अंचरा डालकर और चौड़ी मुस्कान के साथ अक्सर अपनी बजाय वे किसी न किसी पुरुष नेता के लिए वोट मांगती दिख जाती हैं। कुछ समय पहले BJP नेता विनय कटियार का एक बयान चर्चा में था, जब उन्होंने प्रियंका गांधी को कम खूबसूरत बताते हुए कह डाला था कि स्मृति ईरानी ज्यादा भीड़ बटोर सकती हैं।
बचकाने बयानों की ये महासेल दुनिया के हर हिस्से में दिखती है। इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बेर्लुस्कोनी ने राइट और लेफ्ट विंग महिला नेताओं का जिक्र आने पर गला खंखारते हुए कहा- लेफ्ट के पास कोई स्वाद नहीं, यहां तक कि खूबसूरत महिला नेताओं के मामले में भी वो कंगाल हैं। बेर्लुस्कोनी यहीं पर नहीं रुके, बल्कि लगातार ऊलजुलूल बयान देते रहे।
कई मौकों पर उन्होंने महिला नेताओं की जरूरत पर बात की। उनका कहना था कि संसद के पास दिमाग तो पहले से भरा हुआ है, लेकिन औरतों से होने से थोड़ी सुंदरता भी आ जाती है। गंभीर बहस के बीच महिला नेताओं की तरफ ताक लेने से ब्रेक भी मिल जाता है और ताजगी भी आ जाती है।
पड़ोसी देश श्रीलंका के हाल भी अलग नहीं। वहां एक की वरिष्ठ महिला नेता रोजी सेनानायके जब भी सवाल पूछतीं, कोई न कोई पुरुष सांसद बौराई हुई टिप्पणी कर बैठता। असल में सेनानायके एक समय पर मिस वर्ल्ड रह चुकी थीं। भूरी-नीली आंखों और मजबूत कंधों वाली ये नेता अब सफेद साड़ी में रहती हैं और बेहद सधे हुए लहजे में अपनी बात रखती हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
श्रीलंकाई नेताओं को वही रोजी याद है, मिस वर्ल्ड की स्टेज पर कैट वॉक कर रही थी। या फिर जिसने बिकनी में पोज दिए थे। तभी तो कुमार वेलगामा नाम के सांसद ने जब उनके सवाल का जवाब देने की बजाय उन पर अश्लील टिप्पणी कर डाली, तो भी समुद्रों से घिरे इस देश में कोई सैलाब नहीं आया।
महिला नेताओं पर अश्लील बयानों को इकट्ठा किया जाए तो कचड़े का ऐसा पहाड़ खड़ा होगा, जिसकी ऊंचाई एवरेस्ट से भी ज्यादा हो, और जिसकी गंध हर खुशबू को लील जाए।
UK की राइट विंग पार्टी यूके इंडिपेंडेंट पार्टी ने एक ट्वीट करते हुए अपने यहां की सीनियर महिला लीडर निकोला स्ट्रजिऑन का मुंह बंद करने की बात कही। ट्वीट में आगे लिखा था- साथ में इस महिला के पैर भी बांध दिए जाएं ताकि वो बच्चों को जन्म न दे सके। इतने हिंसक बयान के बाद भी कार्रवाई के नाम पर इतना ही हुआ कि ट्वीट डिलीट कर दिया गया।
ट्वीट तो गायब हो गया, लेकिन नेताओं के दिमाग में गंदगी बनी रही। ये वैसा ही है, जैसे घर बुहारते हुए कचरा सोफे के नीचे सरका दें और घर को साफ मान लें। तो कचरा सरक रहा है, कभी काउच तो कभी बिस्तर के नीचे। हवा तेज होने पर कचरा लुढ़ककर सामने भी आ जाता है। जैसे इस बार थरूर के फोटो कैप्शन में दिखा।
ये पहली दफा नहीं, और न ही आखिरी दफा है। पुरुषों के लिए महिला लीडर्स रसोई का वो चम्मच हैं, जिनसे सूप भी पिया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर पजामे में इजारबंद (नाड़ा) भी डाला जा सके। मौका पड़े तो शैतान बच्चे की हल्की-फुल्की पिटाई भी हो सकती है। इससे ज्यादा चम्मच किसी काम का नहीं। किचन के हर बर्तन का हिसाब रखने वाली गृहिणी भी चम्मच की गिनती शायद ही रखे। यही हाल महिला नेताओं का है।
वे पुरुष नेताओं के बीच शो-पीस की तरह रखी जा सकती हैं। महिला मुद्दों पर उनसे अभिनय करवाया जा सकता है। और चुनाव में वोट मांगा जा सकता है। इससे ज्यादा राजनीति में उनका कोई काम नहीं। किचन पॉलिटिक्स के लिए कुख्यात औरतें नेशनल पॉलिटिक्स नहीं कर सकतीं।
बीते महीने की बात है, जब 85 मिनटों के लिए कमला हैरिस के पास अमेरिकी राष्ट्रपति की ताकत रही। दरअसल राष्ट्रपति जो बाइडन तब एक रुटीन सर्जरी में थे। उनकी बेहोशी के दौरान कमला ने देश संभाला। ये डेढ़ घंटे बदलाव का बिगुल है। एक बेहोशी ने कमला को देश संभालने का मौका दिया। एक बेहोशी टूटेगी, तो दुनियाभर की कमलाएं अपने-अपने मुल्क संवार सकेंगी।