लोगों ने इस साल गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया मेंटल हेल्थ, ऐप के जरिए शांति ढूंढने की कोशिश, पर असलियत कुछ और ही
कोरोना महामारी के दौरान लोग अपनी फिजिकल हेल्थ के साथ-साथ मेंटल हेल्थ को लेकर भी जागरूक हुए हैं। इस साल दुनिया भर के लोगों ने ‘मेंटल हेल्थ को दुरुस्त कैसे रखें’ विषय को गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया है। इतना ही नहीं लोगों ने ऑनलाइन या मोबाइल एप पर जाकर खुद की टेली काउंसलिंग भी कराई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मेंटल हेल्थ को सुधारने में मोबाइल एप मदद कर सकते हैं?
हेडस्पेस, मूडफिट, फोकसकीपर, काम और टेन पर्सेंट हैपियर जैसे मेंटल हेल्थ एप के यूजर्स में महिलाओं की संख्या अधिक है। मानसा ग्लोबल फाउंडेशन फॉर मेंटल हेल्थ की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता शर्मा बताती हैं कि देश में मेंटल हेल्थ को लेकर अवेयरनेस की भारी कमी है। अगर साइकोलॉजिस्ट के पास जाएंगे तो लोग हमें पागल समझ लेंगे या फिर जिंदगी भर इलाज कराना होगा..जैसी भ्रांतियां लोगों में हैं। लोग डिप्रेशन और एंजाइटी जैसी गंभीर समस्याओं को अवॉइड करते हैं। पता ही नहीं है कि कहां और किस डॉक्टर से इलाज कराना है। इसलिए भी लोग मेंटल हेल्थ एप पर जा रहे हैं।
डॉक्टर आपकी पर्सनैलिटी समझ सकता है, एप नहीं
राजस्थान स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग की प्रो. डॉ. नेहर्षि श्रीवास्तव बताती हैं, ‘ये एप उन लोगों के लिए खासकर महिलाओं के लिए मददगार है, जो साइकोलॉजिस्ट तक नहीं जा पाती हैं। वे लोग सेल्फ ऑब्जर्वेशन कर ऑनलाइन डॉक्टर की मदद ले सकती हैं। मेंटल हेल्थ एप के साथ दिक्कत यह है कि जो भी महिला या पुरुष मानसिक परेशानी से गुजरता है, वो अपनी ज्यादातर चीजें छिपाने की कोशिश करता है, जबकि क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट मरीज की पर्सनैलिटी को समझते हैं, उसने बातचीत कर, गतिविधियों और हावभाव पर नजर रखकर सही प्रॉब्लम डायग्नोज करते हैं। इसके बाद काउंसलिंग, थेरेपी या मेडिसिन देकर उनका इलाज करते हैं।
जांच-परख के बाद ही लें सेशन
डॉ. श्वेता शर्मा कहती हैं कि अगर एप के जरिये साइकोलॉजिस्ट से सेशन ले रहा है तो सबसे पहले डॉक्टर की क्वालिफिकेशन पता करें और आरसीआई का लाइसेंस देखें। उसके बाद ही सेशन लें क्योंकि एप पर मौजूद डॉक्टर अगर एक्सपर्ट नहीं है तो वह आपकी परेशानी को ठीक से डायग्नोज नहीं कर पाएगा। जब तक यह पता नहीं होगा कि आखिर समस्या क्या है और किस लेवल पर है, तब तक उसका निदान किया जा सकता। इससे भविष्य में आपकी समस्याएं और बढ़ सकती है।
खुश रहने का देसी फार्मूला है ज्यादा प्रभावी
डॉ. नेहर्षि कहती हैं, खुश रहने के लिए लोगों से मिलना, बात करना, मोटिवेशनल लोगों को सुनना आदि यानी कि अपना देसी फार्मूला ज्यादा कारगर है। दिल और दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए इमोशंस की जरूरत होती है, जबकि एप पर टेक्निकल सॉल्यूशन होता है। एक गलत जानकारी पूरा ऑब्जर्वेशन पलट देती है, जोकि सेहत के लिए ठीक नहीं। बेहतर होगा कि मेंटल हेल्थ संबंधी परेशानियों से गुजरने वाला व्यक्ति डॉक्टर से व्यक्तिगत रूप से मिले।
थेरेपी देने और दवाइयां लिखने के लिए जरूरी है लाइसेंस
कोई भी साइक्रेटिक मानसिक परेशानी से जूझ रहे किसी व्यक्ति को थेरेपी देना या दवाइयां प्रिसक्राइब तभी कर सकता है, जब उसके पास ‘द रीहैबिलटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया’ (आरसीआई) की ओर से लाइसेंस मिला हो। यह लाइसेंस उन्हीं डॉक्टर्स को मिलता है, जिनके पास साइकोलॉजी में पीजी और एमफिल की डिग्री होती है। लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए वे उन साइकोलॉजिस्ट के पास जाते हैं, जिनके विज्ञापन ज्यादा होते हैं या फिर ऑफिस का सेटअप भारी भरकम होता है।
पिछले साल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के बाद उनकी एक साइकोलॉजिस्ट पर केस दर्ज किया गया था क्योंकि मनोचिकित्सक ने दावा किया था कि सुशांत बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित थे। उस पर इंडियन मेडिकल काउंसिल (प्रोफेशनल कंडक्ट एटीकेट एंड एथिक्स) रेगुलेशन-2002 का उल्लंघन का आरोप लगा था। बाद में पता चला था कि साइकोलॉजिस्ट के पास ‘द रीहबिलटैशन काउंसिल ऑफ इंडिया’ (आरसीआई) का लाइसेंस नहीं था।
ये है सरकारी मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन
लॉकडाउन के दौरान लोगों में मानसिक तनाव, गुस्सा और अवसाद बढ़ने की समस्या देखी गई। ऐसे में भारत सरकार ने टोल-फ्री मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन किरण (1800-599-0019) शुरू की, जहां मानसिक परेशानियों से जूझ रहे लोगों को 24×7 काउंसलिंग सेवा दी जाती है।