इंदौर का ऐतिहासिक खजूरी बाजार, जहां खजूर नहीं.. कॉपी-किताबें मिलती हैं
20 वीं सदी से ही इंदौर शिक्षा का अच्छा खासा गढ़ बनने लगा था। साथ ही, साहित्य और कला भी पनपने लगी थी। राजबाड़ा के पीछे स्थित एक बाजार विकसित होने लगा, जिसका नाम पड़ा खजूरी बाजार। यह शुरू से ही बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए पढ़ने-लिखने की चीजों का मुख्य बाजार रहा है।
पेन–पेंसिल, खाते–बही या डायरी कैंलेंडर दुर्लभ साहित्य सब मिलेगा
न जाने कितनी पीढ़ियां खजूरी बाजार की परिक्रमा करके कहां पहुंच गईं। आज के स्थापित डॉक्टर्स, इंजीनीयर्स, शिक्षक, कलाकार और साहित्यकार सभी खजूरी बाजार के मुरीद रहे हैं। आज ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में भी यह बाजार सीना ताने खड़ा है। मजाल है कि इसके रौब में कोई अंतर आया हो।
300 से अधिक दुकानें और डीलर, पब्लिकेशन हउस, जानिए कैसे पड़ा नाम
इसमें 2 मत हैं कि एक तो यह कि यहां बहुत से खजूर के पेड़ थे। खजूर बिका करते थे। दूसरा यह की खजूरी नामक जागीर जो कि होलकर राज्य के प्रतिष्ठित जागीरदार घराने के राव राजा जसवंत सिंह की थी। वे इस मोहल्ले में रहते थे। उन्हीं की जागीर खजूरी के कारण उन्हें खजूरी वाले कहा जाता था। उन्हीं के इस नाम पर इस सड़क का नाम खजूरी बाजार रखा गया होगा। इतिहास में इस नामकरण का अभिलेख मौजूद नहीं है। यह राजबाड़ा के पीछे से शुरू होकर एमजी रोड के साथ गोराकुंड मंदिर तक है।
खजूरी बाजार की पहली दुकान
सबसे पहली दुकान जब यहां खुली, तो वो थी स्वरूप ब्रदर्स की जहां पेम-पट्टी, कोपी किताबें, खाता बही, पेन स्याही मिला करते थे। इसके बाद दीनानाथ बुक डिपो (आधी कीमत की दुकान ) , भैया स्टोर्स, नवयुग साहित्य सदन, रघुनाथ बुक डिपो …इसे किताबों का मोहल्ला भी कहा जाता था। कुछ तो इनमें से अभी भी कार्यरत हैं। सबसे पहले समाचारपत्र वितरक दुलीचंद जैन साहब की दुकान भी में यशोदा माता मंदिर के पास हुआ करती थी। स्वरूप प्रकाशन की तीसरी पीढ़ी के प्रवीण जैन के अनुसार जब दादाजी ने यहं दुकान खोली थी, तो पहली से आठवीं तक की सभी विषयों की किताबें उन्हीं के यहां उपलब्ध होती थीं !
उन्हीं के प्रकाशन के नाम से प्रसिद्ध थी, फिर 70 के दशक में मध्यप्रदेश शिक्षा मंडल की किताबें आईं। उस समय सिर्फ राइटर्स और पब्लिकेशन के नाम से किताबें ढूंढी जाती थीं। अब ऐसा नहीं होता।! ऑनलाइन मार्केट ने किताबों के बाज़ार को ग्रहण लगा दिया है! महादेवी वर्मा, निराला, अमृतलाल नागर, सुमन जैसी हस्तियां इंदौर आने पर खजूरी बाजार जरूर जाती थीं।
सबसे प्रसिद्ध सेकंड हैंड बुक्स का एक्सचेंज मार्केट
सेकंड हैंड किताबों से पढ़कर कितने ही मध्यम या निम्न आय वर्ग के परिवार के बच्चों में पढ़ाई की। फर्स्ट क्लास ऑफिसर, डॉक्टर और इंजीनियर निकले हैं। खजूरी बाजार में घुसते ही पहली गली में दायें मुड़ते ही सेकंड हेंड किताबों का मेला सा लगता है। छोटी छोटी दुकानें और उनमें हर सब्जेक्ट, लेखक और क्लास की पुस्तकों का विशाल भण्डार। किसी किसी के पास तो 2 से 3 लाख किताबें हैं।
आप मूल कीमत से 40 % से 50 % तक में इसे खरीदें या इश्यू करा लें। बड़ी बात यह की वापस करने पर दी गई कीमत के आधे पैसे भी मिलते थे। जैन बुक के नितेश भाई जैसे कई लोग आज भी ज़रूरतमंद स्टूडेंट को उधार या मुफ्त किताबें देकर इसकी शोभा बरकरार रखे हैं।
सन्डे स्पेशल मार्केट
रविवार का दिन विशेष होता है। इस दिन मुख्य दुकानें तो बंद रहती है। मगर, बाहर फुटपाथ पर पुरानी किताबों के विक्रेता किताबें बेचते हैं। वो भी औने पौने दामों में इसके अतिरिक्त अगर आपको कोई भी पुरानी किताब चाहिए, तो आप टाइटल लिखवा दें। अगले हफ्ते वह भी मिल जायेगी। रविवार के दिन यह फुटपाथ पर लगी। सुबह से लेकर अंधेरा होने तक रहती है। इसमें हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, फ़ारसी और ब्रेल में लिखी पुस्तकें भी मिल जाती है। कागजी, फ्रेमिंग आर्ट्स और स्टेशनरी के थोक व्यापारी यहां हैं। मध्यप्रदेश के सबसे बड़े शिक्षा सामग्री का बाजार है हमारा खजूरी बाजार।
भावनात्मक रिश्ता !
आज भी जब परिवार के साथ बड़े इस बाजार में आते हैं, तो गर्व से बताते हैं की स्कूल या कॉलेज टाइम पर उन्होंने यहां से किताबें लेकर पढ़ाई की है। उनके रिश्ते इन बुक सेलर्स से आज भी है।आज भी वे किताबों में लिखे लेटर्स और अपनी कड़की के दिनों के संघर्ष को याद कर रोमांचित हो जाते है। इस ऑनलाइन हुई जिंदगी ने जरूर कंप्यूटर और मोबाइल से नई पीढ़ी को उनके घर में ही कंटेंट उपलब्ध कराया है। खजूरी बाजार जैसे ऐतिहासिक बाजार में मिलती किताबों, उनकी जिल्द , पन्नों की महक, उनमें दबे गुलाबों का मिलना आज भी बदस्तूर जारी है।