रानी मणिमाला के जौहर की कहानी … चंदेरी में 494 साल पहले 1600 क्षत्राणियों के साथ अग्निकुंड में कूदी थीं, रानी का जौहर देख घबरा गया था बाबर
494 साल पहले 27 जनवरी 1528 की वह रात, जो ऐतिहासिक नगरी चंदेरी के इतिहास में दर्ज है। उस काली रात में बाबर की नजर चंदेरी के रियासत पर पड़ी थी। अलसुबह किले के मुख्यद्वार पर ही भीषण युद्ध हुआ। चंदेरी के राजा मेदनी राय दुश्मनों की गर्दन काटते-काटते वीरगति को प्राप्त हो गए। राजा नहीं रहे औैर बाबर सेना के साथ किले के भीतर प्रवेश कर रहा है… यह सुन रानी मणिमाला ने 1600 क्षत्राणियों के साथ जौहर का निर्णय लिया।
जौहर की याद में बनाया वहां स्मारक
महल के भीतर ही कुंड में आग धधकी और एक-एक कर रानी मणिमाला के बाद क्षत्राणियां आग में कूदती चली गईं। 494 साल पहले हुए इस जौहर को देख बाबर भी घबरा गया था। बाबर की चौथी बीबी दिलावर बेगम तो बेहोश हो गई थी। जौहर की याद में वहां पर एक स्मारक बनाया गया। हर साल इस बलिदान को याद करने 29 जनवरी को कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
क्या हुआ था उस दिन?
27 जनवरी 1528 की रात अंतिम पहर बीतने वाला था कि अचानक प्रहरियों को उत्तर दिशा की ओर से धूल का बवंडर चंदेरी की ओर बढ़ता दिखाई दिया। धीरे-धीरे घोड़ों की टाप तेज होती गईं और धूल का गुबार दुर्ग को घेर चुका था। मंत्रियों ने महाराज मेदिनी राय को सूचना दी कि बाबर चंदेरी के किले के पास तक तोपों से लैस सेना के साथ पहुंच चुका है। कुछ देर बाद एक प्रहरी राजा के पास बाबर का पत्र लेकर पहुंचता है।
खानवा युद्ध में राजपूतों को हराने के बाद बाबर चंदेरी को कब्जे में करने के इरादे से यहां पहुंचा था। उसने लेटर में दुर्ग उसे सौंपकर उसके साथ आने को कहा। हालांकि राजा ने इनकार कर दिया। बाबर ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी देते हुए आक्रमण कर दिया। राजा ने राणा सांगा के पास मदद मांगते हुए एक पत्र भेजा और सेना के साथ युद्ध के मैदान में कूद पड़े। बाबर और मेदिनी राय के बीच भीषण युद्ध हुआ।
1600 से अधिक वीरांगनाओं के साथ आग में कूदीं रानी
28 जनवरी 1528 युद्ध के मैदान में राजा मेदिनी राय वीर गति को प्राप्त हो गए। दिन ढलते रानी मणिमाला के पास सूचना आई की, राजा अब नहीं रहे। उन्हें यह भी पता चला कि दुश्मन दुर्ग पर कब्जा करने के लिए किसी भी वक्त महल में प्रवेश कर सकता है। राजा की मौत की खबर सुनकर और शत्रु से बचने के लिए रानी ने जौहर का फैसला लिया। महल के भीतर ही कुंड में जौहर करने के लिए आग जलाई गई। रानी मणिमाला 1600 से अधिक वीरांगनाओं के साथ जौहर कुंड के पास पहुंची और सभी एक-एक कर कूद गईं।
बाबर की चौथी बेगम वहां का मंजर देख बेहोश
युद्ध में सैकड़ों सैनिक मारे गए। यहां सिर्फ खून ही खून नजर आ रहा था। यहां इतना खून जमा हुआ कि इस स्थान को खूनी दरवाजा कहा गया। रानी के जौहर की खबर बाबर तक पहुंची तो वह तत्काल खून से सनी तलवार लेकर महल में दाखिल हुआ। जौहर कुंड तक पहुंचने के बाद बाबर ने यहां का जो मंजर देखा, उससे वह घबरा गया। कहा जाता है कि उसकी चौथी बेगम दिलाबर भी मौके पर पहुंची और जौहर देखकर बेहोश हो गई। 494 साल पहले जिस जगह पर यह जौहर हुआ आज भी वहां के पत्थर का कलर काला है।
15 कोस दूर तक दिखी धधक रही जौहर की आग
रानी के जौहर की खबर आग की तरह राज्य में फैल चुकी थी। जौहर की धधकती आग 15 कोस दूर तक नजर आ रही थी। जौहर का पता चलते ही सुदूर अंचल की प्रजा भी किले की ओर भागी। ग्वालियर घराने ने रानी मणिमाला के जौहर की याद में यहां पर एक स्मारक बनवाया। स्मारक के पास स्थित कुंड के पास लगे नागफनी के पौधों के कांटों की चुभन आज भी जौहर की याद दिलाते हैं।