सरकारी अस्पतालों की सेहत खराब …. 10 महीने में जेपी, एम्स और सुल्तानिया के13 डॉक्टरों ने छोड़ी नौकरी

राजधानी के सरकारी अस्पतालों में पिछले 10 महीने में 13 से ज्यादा डॉक्टर्स नौकरी छोड़ चुके हैं। सबसे ज्यादा 7 डॉक्टर्स ने सुल्तानिया अस्पताल से नौकरी छोड़ी है। इसी तरह जेपी अस्पताल से 4 डॉक्टर्स वीआरएस ले चुके हैं। एम्स भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी 2 सीनियर फैकल्टी इस्तीफा दे चुके है। जेपी अस्पताल में 125 डॉक्टर्स के पद हैं, लेकिन इसमें से 56 खाली हैं।

डॉक्टर्स ने बताया कि सुल्तानिया ऐसा अस्पताल है, जहां प्रदेश में सबसे ज्यादा रोज 60 से 80 डिलीवरी होती हैं। गंभीर से गंभीर मामलों को यहां के विशेषज्ञ डॉक्टर्स देखकर इलाज करते हैं। बावजूद इसके छोटे-छोटे मामलों में डॉक्टर्स को शर्मिंदा किया जाता है।

छोटी सी भी गलती डॉक्टर्स को बड़ी मुसीबत में डाल देती है। ऊपर से प्रशासनिक दबाव अलग से बना रहता है। इन सभी कारणों के बीच नौकरी करना आसान नहीं है, इसलिए अब ज्यादातर डॉक्टर्स प्राइवेट अस्पतालों की तरफ नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। स्थिति ये है कि भोपाल समेत प्रदेशभर के मेडिकल कॉलेजों में 3000 डॉक्टर्स की जरूरत है और 1 हजार पद खाली पड़े हुए हैं।

सुल्तानिया से सबसे ज्यादा छोड़ रहे नौकरी

  • सुल्तानिया- डॉ. जया पटेल, डॉ. वरुणा पाठक,डॉ. जूही अग्रवाल नोटिस पर, डॉ. वैशाली चौरसिया, डॉ. सुश्रुता श्रीवास्तव, डॉ. प्रीति वर्मा, डॉ. शिवानी बादल।
  • एम्स भोपाल- न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट डॉ. नीरेंद्र कुमार राय, कॉर्डियाेलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ. गौरव खंडेलवाल।
  • जेपी- डॉ. केके अग्रवाल, डॉ. अजय दामले, डॉ. मंजू माथुर, डॉ. दिनेश गर्ग।

प्रभारी अधीक्षक और डीन के भरोसे मेडिकल कॉलेज

प्रदेश के मेडिकल कॉलेज और उनसे संबंध अस्पतालों में डॉक्टर और विशेषज्ञ डॉक्टरों समेत अस्पताल अधीक्षक और कॉलेज डीन जैसे महत्वपूर्ण पद भी खाली हैं। आलम यह है कि स्वीकृत पद 2890 में से महज 2027 पद भी भरे हुए हैं, जबकि, 863 (29.86 प्रतिशत) पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। यह स्थिति तब है, जबकि विभाग से लेकर सरकार महीनों से कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की तैयारियां कर रही है।

इसके तहत अस्पतालों में बेड संख्या और ऑक्सीजन की क्षमता में तो इजाफा किया गया है, लेकिन डॉक्टरों की संख्या नहीं बढ़ाई गई। मौजूदा हालात पर प्रोगेसिव मेडिकल टीचर्स का कहना है कि ये तैयारियां तभी सफल हो सकती हैं, जब डॉक्टरों की संख्या बढ़े। जरूरत तो नए पद स्वीकृत करने की है, लेकिन पहले से मंजूर पदों को ही भर दें तो राहत मिल सकती है।

ये 5 बड़ी वजहें- इंटरनल पॉलिटिक्स जैसे कारणों से हुआ मोह भंग

1. प्रेशर के बीच इलाज करना। 2. राजनीतिक-प्रशासनिक हस्तक्षेप। 3. प्रमोशन पॉलिसी नहीं होना 4. इंटरनल पॉलिटिक्स। 5. काम की कदर नहीं होना।

प्रमोशन पॉलिसी अच्छी नहीं

प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के सेवा भर्ती नियम सबसे घटिया है। दिनों दिन प्रशासकीय और राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है। अच्छे कार्य की शासन में कोई कद्र नहीं है। ये ही सब कारणों से डॉक्टर्स नौकरी छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। प्रमोशन पॉलिसी भी अच्छी नहीं है।
-डॉ. राकेश मालवीय, अध्यक्ष, मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन

हम नहीं चाहते कोई साथ छोड़े

डीन ने इस्तीफा और नोटिस देने वाले डॉक्टर्स से बात की है। हम पता लगा रहे हैं कि ऐसा प्रबंधन के मुद्दों के कारण तो नहीं हो रहा। हम नहीं चाहते कि ‘हम’ की वजह से कोई हमारा साथ छोड़े। हम यह चाहते हैं कि डॉक्टर्स को एक अच्छा वातावरण मिले, ताकि काम करने में कोई दिक्कत न आए। – गुलशन बामरा, संभागायुक्त

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