बमबारी के बीच फंसे स्टूडेंट्स …. छात्र बोले- ‘इजिप्ट, नाइजीरिया की सरकारें अपने छात्रों को बचाने आ रहीं, भारत सरकार कब आएगी?’
यूक्रेन में अपनी आंखों के सामने इजिप्ट और नाइजीरियन स्टूडेंट्स को निकाले जाने का प्रयास तेज होता देखकर सूमी स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के भारतीय स्टूडेंट्स में बौखलाहट बढ़ने लगी है। स्टूडेंट्स एक ही सवाल बार-बार कर रहे हैं कि दूसरे देश जब अपने स्टूडेंट्स के लिए सामने आ रहे हैं तो हमारी सरकार पीछे क्यों हैं।
स्टूडेंट्स मानसिक ही नहीं, शारीरिक तौर पर भी कमजोर होने लगे हैं। रात के वक्त जब स्टूडेंट बंकर से निकल कर हॉस्टल के कमरे में बैठे थे, तभी ऐसा धमाका हुआ कि रात में ही दिन सा हो गया था। हाल ये था कि हॉस्टल की बिल्डिंग भी थरथरा उठी थी। किसी तरह जान बचाकर बंकर में भागे छात्रों की उम्मीद ही नहीं, अब आंखों के आंसू भी सूखने लगे हैं।
कुछ ऐसा ही हाल भास्कर से लाइव इंटरव्यू में सूमी के बंकर में छिपे बैठे छात्रों ने बयां किया। हमने बिहार के राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले शशांक, मोतिहारी के रहने वाले मोहम्मद महताब रजा, पुडुचेरी के शेषाधि गोविंद से वीडियो कॉल पर बात की है, वीडियो आप ऊपर इमेज पर क्लिक करके देख सकते हैं। और हमारे सवाल-जवाब यहां पढ़ सकते हैं-
सवाल: क्या आपसे इंडियन एम्बेसी ने संपर्क करने की कोशिश की? क्या कहा है उन्होंने?
जवाब: इंडियन एम्बेसी ने हमसे कॉन्टैक्ट तो किया है, लेकिन काम कुछ नहीं हो रहा, सिर्फ बात हो रही है। हम पिछले 12 दिन से यहां फंसे हुए हैं। धमाके, गोलीबारी हो रही है, एक पल के लिए चैन की नींद नहीं लगी है। पीने के लिए पानी नहीं है, खाने के लिए खाना नहीं है और अब इलेक्ट्रिसिटी भी नहीं है। रात में हम अंधेरे में खाना खा रहे हैं।
सवाल: आपके साथ हॉस्टल में रह रहे दूसरे देश के लोगों का क्या हाल है?
जवाब: हमारे हॉस्टल में इजिप्ट, नाइजीरिया जैसे देशों के छात्र रहते हैं। उनकी सरकारें आज उन्हें यहां से निकाल कर ले जा रही हैं। हमें अब तक एम्बेसी ने कुछ नहीं बताया है कि हमारा क्या होना है।
सवाल: भारत सरकार से क्या गुजारिश करना चाहते हैं?
जवाब: एम्बेसी से हमारी बहुत बातचीत हुई है, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। हमें यहां से निकालने के लिए अब तक कुछ नहीं हुआ है। 12 दिन से बातचीत चल रही है और सिर्फ बातचीत ही चल रही है। हर दिन हमें यही लग रहा है कि हम कब मर जाएंगे। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि हमें कैसे भी यहां से निकाला जाए।
सवाल: आप वॉर के बीच में फंसे हुए हैं, आपका दिन कैसे बीतता है?
जवाब: सुबह उठने के साथ ही हमारी जंग शुरू हो जाती है। हम सबको वॉशरूम जाना होता है, लेकिन बिना पानी के कैसे जाएंगे। इस वक्त जब मैं आपसे बात कर रहा हूं, मैं हमारे हॉस्टल के पास बने बंकर में मौजूद हूं। थोड़ी देर पहले सायरन की आवाज आई और हम सब कुछ अपने हॉस्टल रूम से बंकर की तरफ भागे। सायरन बजने के बाद बम बरसाए जाते हैं, इसलिए हमें बंकर की तरफ भागना होता है। और ऐसा दिन में कई-कई बार होता है। लगातार धमाके और जान जाने के डर ने हमारे अंदर खौफ भर दिया है। लगातार 11 दिन से खौफनाक जिंदगी जी रहे हैं, किसी भी पल जान जा सकती है।
इस वक्त मेरे साथी डिनर कर रहे हैं। और डिनर के नाम पर हमारे पास दिन का बचा हुआ चावल और ब्रेड हैं। हम यही खाने को मजबूर हैं। एक थाली चावल हैं और इसमें तीन लोगों को पेट भरना है।
सवाल: युद्ध के हालातों के बीच आपके खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरतों का क्या हाल है?
जवाब: ये समझ लीजिए कि कोई जरूरत पूरी नहीं हो रही। पानी की सप्लाई बंद हो गई है, बर्फ गलाकर पानी पी रहे हैं। खाने के नाम पर सिर्फ चावल और ब्रेड ही खा रहे हैं, वो भी बड़ी मुश्किल से ही जुट पा रहा है। अब इलेक्ट्रिसिटी भी नहीं रहती है तो रात में बहुत दिक्कत हो रही है।
जब हमारे हॉस्टल के ऊपर से प्लेन गुजरता है और एयर स्ट्राइक करता है तो ऐसा लगता है कि हमारे हॉस्टल पर ही न गिर जाए। रात में जब ब्लास्ट होते हैं तो इतनी रोशनी होती है कि दिन हो जाता है। ऐसे मौकों पर रोना आता है। हम ये सब घर वालों को नहीं बताते, क्योंकि हम खुद पैनिक में हैं, उन्हें मेंटल स्ट्रेस नहीं देना चाहते हैं।