पंजाब की 7 हॉट सीटें … बड़े बादल के साथ कैप्टन-सुखबीर भी आउट; सिद्धू-मजीठिया पहली बार हारे, कांग्रेस की दलित पॉलिटिक्स फेल
पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार सभी बड़े चेहरे धराशायी हो गए। आम आदमी पार्टी की सुनामी में 94 साल के प्रकाश सिंह बादल को अपने सियासी जीवन की दूसरी हार का मुंह देखना पड़ा वहीं 80 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अपने राजनीतिक करियर में विधानसभा चुनाव में दूसरी दफा मात खा गए। आज तक कोई चुनाव नहीं हारने वाले चरणजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिद्धू और बिक्रम सिंह मजीठिया का रिकॉर्ड भी टूट गया।
चन्नी जहां दोनों सीटों से हार गए वहीं उनके 80% मंत्री भी नहीं जीत पाए। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल भी जलालाबाद से हार गए। बहन मालविका सूद को आगे कर राजनीति में पैठ जमाने का प्रयास कर रहे बॉलीवुड स्टार सोनू सूद को भी लोगों ने नकार दिया। चन्नी की हार के साथ ही पंजाब में कांग्रेस की दलित पॉलिटिक्स भी फेल हो गई।
पंजाब में चली बदलाव की लहर से आम आदमी पार्टी को मिली बंपर जीत के बाद पार्टी के 2 बार के सांसद और CM चेहरे भगवंत मान के घर जश्न का माहौल है।
हॉट सीट 1 : लंबी – बड़े बादल अपना आखिरी चुनाव हारे
- मुकाबला किसके बीच : अकाली दल और AAP
देश के सबसे बुजुर्ग कैंडिडेट कहे जा रहे 94 साल के प्रकाश सिंह बादल अपने सियासी जीवन में दूसरा चुनाव हारे हैं। इससे पहले वह 1967 में अपना पहला ही चुनाव गिदड़बाहा सीट पर 57 वोट से हार गए थे। इस बार उन्हें AAP के गुरमीत सिंह खुडियां ने हराया। 13 राउंड की काउंटिंग में खुडियां को 65717 वोट मिले वहीं शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को 54360 वोट मिले।
क्यों अहम रही सीट : लंबी सीट से प्रकाश सिंह बादल लगातार 5 बार जीत चुके हैं। उन्होंने इस इलाके में विकास के खूब काम करवाए हैं। इन चुनाव नतीजों से पहले तक लंबी से बादल को अजेय माना जाता रहा है।
अब तक के चुनाव : लंबी सीट पर अब तक हुए 13 चुनाव में 8 बार अकाली दल जीता है। 3 बार कांग्रेस और 2 बार CPI जीती है।
असर क्या होगा : पांच बार के सीएम प्रकाश सिंह बादल का यह संभवत: आखिरी चुनाव रहा और इस हार के साथ उनका राजनीतिक करियर एक तरह से खत्म हो गया है। वैसे भी वह इस चुनाव में ज्यादा एक्टिव नहीं दिखे और खुद भी आगे चुनाव नहीं लड़ने की बात कह चुके हैं। शिरोमणि अकाली दल को पंजाब की सत्ता तक पहुंचाने में प्रकाश सिंह बादल का बड़ा हाथ रहा है। उनकी हार के बाद पंजाब में पार्टी अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी।
हॉट सीट 2 : पटियाला – कैप्टन की सियासत का अंत
- मुकाबला किसके बीच : BJP+ और AAP
कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला अर्बन सीट से चुनाव हार गए। उन्हें आम आदमी पार्टी के अजीत पाल सिंह कोहली ने 19699 वोटों से हराया। कोहली को कुल 47706 वोट मिले वहीं कैप्टन को 28007 वोट मिले।
क्यों अहम रही सीट : कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए पटियाला अर्बन हमेशा सुरक्षित सीट रही। इस बार वह कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे और हार गए। अब अजीत सिंह कोहली पटियाला के नए MLA हैं।
अब तक के चुनाव : पटियाला अर्बन सीट पर हुए 19 चुनाव में 11 बार कांग्रेस जीती। 2002 से कैप्टन यहां के MLA थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर से सांसद चुने जाने पर उन्होंने सीट छोड़ी तो उपचुनाव में उनकी पत्नी परनीत कौर जीतीं।
असर क्या होगा : कैप्टन उम्र के इस पड़ाव में पंजाब की राजनीति पर एक बार फिर अपनी पकड़ साबित करना चाहते थे लेकिन हार के बाद कैप्टन की 4 दशक की सियासी समझ और साख खत्म हो गई है।
हॉट सीट 3 : जलालाबाद – सुखबीर के सामने पार्टी को जिंदा रखने की चुनौती
- मुकाबला किसके बीच : AAP, अकाली दल और कांग्रेस
शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल खुद जलालाबाद सीट से चुनाव हार गए। वर्ष 2009 के बाद 2 बार पंजाब का डिप्टी सीएम रह चुके सुखबीर को AAP के नए चेहरे जगदीप कंबोज ने 30374 मतों से हराया। 18 राउंड की काउंटिंग के बाद सुखबीर को 59934 तो AAP के जगदीप को 90308 वोट मिले।
क्यों अहम रही सीट : भारत-पाकिस्तान इंटरनेशनल बॉर्डर से लगते फाजिल्का जिले के जलालाबाद हलके से सुखबीर तीसरी बार विधानसभा चुनाव लड़ने उतरे थे। यहां शुरू से सुखबीर मजबूत माने जा रहे थे। सुखबीर भी अपनी जीत को लेकर काफी हद तक कॉन्फिडेंट थे इसलिए वह यहां ज्यादा प्रचार करने नहीं आए।
अब तक के चुनाव : 1967 में बनी जलालाबाद सीट पर 2022 से पहले तक 2 उपचुनाव समेत 14 बार इलेक्शन हुआ। इनमें 5-5 बार अकाली दल व कांग्रेस और 4 बार CPI को जीत मिली है।
असर क्या होगा : इलाके में लगातार विकास के बावजूद बदलाव की लहर में सुखबीर हार गए। सुखबीर के सामने इस बार एक तरह से अकाली दल का अस्तित्व बचाने की लड़ाई थी। इस हार से सुखबीर के सामने पार्टी के अंदर खुद को फिर से स्थापित करने की चुनौती खड़ी हो सकती है। अकाली दल का BJP से अलग होने के बाद यह पहला चुनाव था। अब बेअदबी और ड्रग्स मामलों के कारण उनकी मुश्किलें भी बढ़ सकती है।
हॉट सीट 4 : अमृतसर ईस्ट – सिद्धू और मजीठिया दोनों चित्त
- मुकाबला किसके बीच : AAP, कांग्रेस और अकाली दल
अमृतसर ईस्ट सीट पर शुरुआती राउंड से ही आम आदमी पार्टी की जीवनजोत कौर ने लीड बना ली जो आखिर तक कायम रही। जीवनजोत कौर को 39520 वोट मिले। यहां नवजोत सिद्धू 32807 वोट लेकर दूसरे नंबर पर और अकाली दल के बिक्रम मजीठिया 23112 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे।
क्यों अहम रही सीट : कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने की वजह नवजोत सिद्धू रहे। दूसरी ओर ड्रग मामले में FIR दर्ज होने के बाद अकाली नेता बिक्रम मजीठिया ने सिद्धू को उनके ‘घर’ में घुसकर चुनौती दी। इन दोनों के आमने-सामने होने से यह सीट हॉट सीट बन गई वहीं जीवनजोत कौर का प्रचार लोप्रोफाइल रहा।
अब तक के चुनाव : यह कांग्रेस की परंपरागत सीट रही। सिद्धू बतौर सांसद और विधायक 18 साल से इसका प्रतिनिधित्व करते रहे। हालांकि इस बार उनके खिलाफ यहां खासी नाराजगी देखी गई।
असर क्या होगा : सिद्धू का सबकुछ इस चुनाव में दांव पर था। उनके काम करने के तरीके से कांग्रेस के ही कई नेता नाराज थे और अब उनकी कांग्रेस में मुश्किलें बढ़ेंगी। वहीं बिक्रम मजीठिया की हार को सीधे बादल परिवार की हार के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में अकाली दल में भी उनके खिलाफ बगावती सुर उठ सकते हैं।
हॉट सीट 5 : भदौड़ – चन्नी न खुद जीत पाए और न पार्टी को मालवा में जीता पाए
- मुकाबला किसके बीच : कांग्रेस और AAP
भदौड़ सीट पर AAP के लाभ सिंह उगोके ने एकतरफा जीत दर्ज की। लाभ सिंह उगोके ने पहले राउंड से ही जो लीड बनाई, वह समय के साथ बढ़ती चली गई। उगोके को यहां कुल 63514 वोट मिले और वह 37220 वोट से जीत गए। यहां चरणजीत सिंह चन्नी को महज 26294 और अकाली दल के सतनाम सिंह राही को 21065 वोट मिले।
क्यों अहम रही सीट : पंजाब की 117 में से 69 सीटें मालवा रीजन में आती हैं। कांग्रेस ने इस एरिया को साधने के लिए अपने CM चेहरे चन्नी पर दांव खेला। कैप्टन के जाने के बाद, पहली बार था जब कांग्रेस ने न CM मालवा से बनाया और न प्रदेशाध्यक्ष। हाईकमान ने अपनी इसी ‘चूक’ को सुधारने के लिए चन्नी को दोआबा से यहां भेजा मगर लोगों ने इसे नकार दिया।
अब तक के चुनाव : 1967 में बनी भदौड़ सीट पर 12 में से 7 चुनाव अकाली दल ने जीते। 2017 में यहां AAP के पीरमल सिंह जीते जो बाद में कांग्रेसी हो गए।
असर क्या होगा : चन्नी कांग्रेस ही नहीं, पंजाब के सभी सियासी दलों में इकलौते ऐसे नेता रहे जिन्होंने 2 सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों ही सीटों से हार गए। अब मालवा की अनदेखी करने वाले कांग्रेस नेतृत्व पर तो सवाल उठेंगे ही, कांग्रेस में चन्नी की घेरेबंदी भी तेज होगी।
हॉट सीट 6 : धूरी – रिकॉर्ड वोटों से जीते भगवंत
- मुकाबला किसके बीच : AAP और कांग्रेस
धूरी सीट पर आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरे भगवंत मान ने रिकॉर्ड अंतर से जीत दर्ज की। मान को यहां कुल 82023 वोट मिले। कांग्रेस के दलवीर गोल्डी 24306 वोट के साथ दूसरे और अकाली दल के प्रकाश चंद गर्ग 6959 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
क्यों अहम रही सीट : धूरी सीट भगवंत मान के संसदीय हलके संगरूर में आती है। भगवंत इससे पहले जलालाबाद और लहरा से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। यहां उनकी टक्कर कांग्रेस के दलवीर गोल्डी से है।
अब तक के चुनाव : 1957 से अब तक धूरी सीट पर हुए 14 चुनाव में से 6 बार कांग्रेस जीती। अकाली दल और CPI कैंडिडेट भी 3-3 बार जीते, 2 बार वोटरों ने निर्दलीय को जिताया। पिछले 2 चुनाव से यहां कांग्रेस का MLA था।
असर क्या होगा : भगवंत मान के लिए यह चुनाव बेहद अहम था। पार्टी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद अब भगवंत मान को सीएम बनकर डिलीवर करना होगा। उन पर लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव रहेगा।
हॉट सीट 7 : मोगा – पॉलिटिक्स में सोनू सूद की लॉन्चिंग फेल
- मुकाबला किसके बीच : कांग्रेस, AAP और अकाली+
मोगा विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी की डॉ. अमनदीप कौर 58813 वोटों के साथ पहले नंबर पर रही और उन्होंने कांग्रेस कैंडिडेट मालविका सूद को 20668 वोटों से हराया। बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद की बहन मालविका सूद को 38125 वोट मिले। अकाली दल के बरजिंदर सिंह मक्खन बराड़ 28213 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
क्यों अहम रही सीट : बॉलीवुड स्टार सोनू सूद की बहन मालविका ने कांग्रेस के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा। सोनू सूद के चलते ही कांग्रेस ने अपने सिटिंग MLA हरजोत कमल का टिकट काटा। सोनू ने बहन के लिए फिल्मों की शूटिंग छोड़कर दिन-रात प्रचार किया।
अब तक के चुनाव : मोगा सीट पर अब तक 15 चुनाव हुए और 12 बार कांग्रेस जीती। 3 बार अकाली दल को कामयाबी मिली। 2017 में कांग्रेस के टिकट पर हरजोत कमल 1,764 वोट से जीते थे।
असर क्या होगा : सोनू सूद अपनी बहन मालविका के साथ ही इनडायरेक्ट रूप से राजनीति में एंट्री लेने की तैयारी में थे। मालविका के चुनाव हारने से सोनू का सियासी कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म होता दिख रहा है।