कांग्रेस की नाक के नीचे से पंजाब ले गई AAP; 10 में से 9 राज्यों में सिर्फ BJP नहीं, क्षेत्रीय दलों से भी मिली चुनौती

आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी कांग्रेस का किला ढहा दिया है। चुनाव में 92 सीटें जीतकर केजरीवाल ने साबित कर दिया है कि उनकी राजनीतिक भूख कांग्रेस का शिकार करके ही पूरी होने वाली है। यह दूसरी बार हुआ है, जब AAP कांग्रेस से सत्ता छीन कर ले गई है। एक बार दिल्ली हार जाने के बाद कांग्रेस दोबारा अभी तक राजधानी में वापसी नहीं कर पाई है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस को छोटे और क्षेत्रीय दलों से अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी हो। आजादी के बाद से कई राज्य ऐसे रहे हैं, जहां एक बार सत्ता से गई कांग्रेस कभी अपने बल पर वापसी नहीं कर पाई।

आज के भास्कर इंडेप्थ में जानते है कि आजादी के बाद से कैसे देश की अंब्रेला पार्टी राज्यों से सिमटते-सिमटते अब केवल दो राज्यों में ही सत्ता में रह गई है? पिछले 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव में किन क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को चुनौती दी है?

1952 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में 21 राज्यों में बनी थी कांग्रेस सरकार
1952 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 21 राज्यों में अपनी सरकार बनाई थी, जो अब घटकर मात्र दो राज्य रह गए हैं। कांग्रेस को पहली बड़ी चुनौती दक्षिण भारत में केरल से मिली थी। 1956 में भाषा के आधार पर कई इलाकों को इकट्ठा कर केरल बनाया गया था। इसके तुरंत बाद 1957 के विधानसभा चुनाव में ईएमएस नंबूदरीपाद के नेतृत्व में वामपंथियों ने सरकार बनाई, जिससे हर कोई हैरान रह गया था।

इस जीत को भारत में वामपंथ की शुरुआत के तौर पर देखा जाने लगा था। हालांकि, तीन सालों में ही सरकार गिर गई और 1960 में हुए चुनाव में फिर से कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन एक बार के सत्ता परिवर्तन ने कम्युनिस्ट पार्टी को नई उम्मीद दी।

इसी के नतीजतन 1967 में केरल में फिर से सात पार्टियों ने गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर फेंक दिया। इसके बाद सत्ता कभी कांग्रेस तो कभी वामपंथियों के हाथ लगती रही है। हालांकि, 2021 के चुनाव के नतीजों में कम्युनिस्ट पार्टी को दोबारा सत्ता मिली तो केरल में कांग्रेस की हालत दिल्ली जैसी होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

देखिए 1952 में किन-किन राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी

1967 का वह दौर जब कांग्रेस को मिली क्षेत्रीय दलों से जोरदार टक्कर
1967 में देश के दो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद चुनाव हुए थे। इस साल हुए चुनाव में कांग्रेस को महज 11 राज्यों में सरकार बनाने में सफलता मिली थी। इसकी मुख्य वजह अनाज की कमी थी। देश की कमजोर अर्थव्यवस्था की वजह से महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। आम लोग कांग्रेस से परेशान थे।

ऐसे में 20 साल से कांग्रेस की सरकार से लोगों का मन भर चुका था और अब वह नए दलों को आजमाना चाहते थे। 1965 की लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया था और भारत के लिए रूस की बेरुखी भी सामने आई थी। ऐसे में कांग्रेस सरकार की विदेश नीति को लेकर भी लोगों में नाराजगी थी।

कांग्रेस की सबसे बड़ी हार उसके गढ़ माने जाने वाले तमिलनाडु यानी मद्रास में हुई थी। यहां द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने 234 विधानसभा सीटों में से 138 पर जीत दर्ज की थी। यहां कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मद्रास के भूतपूर्व मुख्यमंत्री के कामराज भी हार गए थे। इसी तरह बंगाल और उड़ीसा में भी कांग्रेस की हार हुई थी। यूपी में पहली बार चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। उनकी नई पार्टी भारतीय क्रांति दल ने दूसरे छोटे-छोटे दलों के विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई।

अब ग्राफिक्स में देखिए किन राज्यों में 1967 में कांग्रेस की सरकार थी

1980 में 5 राज्यों में क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस की हुई सीधी टक्कर
1971 में इंदिरा की नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की देश के 17 राज्यों में सरकार थी। यह वह वक्त था, जब पाकिस्तान में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था। बांग्लादेश को आजाद कराने में इंदिरा गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

ऐसे में कांग्रेस एक बार फिर से देश में मजबूती से उभर रही थी। तभी 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी। इसके बाद लोगों के मन में इंदिरा के खिलाफ गुस्सा भर गया। 1977 में भले ही जनता पार्टी के हाथों कांग्रेस की हार हुई हो, लेकिन 3 साल बाद ही एक बार फिर से 529 में से 353 सीट जीतकर केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई। हालांकि, 1980 में जब 15 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए तो इंदिरा के नेतृत्व वाली कांग्रेस को केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में करारा झटका लगा।

वहीं, इस चुनाव में केरल में CPI और CPM के अलावा मुस्लिम लीग, केरला कांग्रेस जैकब पार्टी ने कांग्रेस को टक्कर दी। इसी तरह तमिलनाडु और पुडुचेरी में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम, पंजाब में अकाली दल और अरुणाचल में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल ने कांग्रेस को अपनी ताकत दिखा दी।

अब देखिए 1985 में कितने राज्यों में थी कांग्रेस की सरकार

1990 के बाद कई राज्यों में अकेले अपने दम पर कांग्रेस की नहीं हुई वापसी
1990 के बाद बिहार, UP, गुजरात और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में कांग्रेस अकेले अपने दम पर वापसी नहीं कर पाई है। कभी इन राज्यों में अकेले 80% से ज्यादा सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी अब इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मदद के बिना अपने भविष्य के बारे में सोच तक नहीं पा रही है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि तमिलनाडु में बीते 50 सालों से कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। यहां सरकार बनाने में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से भी छोटी भूमिका में रहती है।

हैरानी की बात तो ये है कि 1990 में कांग्रेस को बिहार में लालू यादव की जिस जनता दल पार्टी ने हराया, बाद में कांग्रेस को अपनी जमीन बचाने के लिए उसी जनता दल से हाथ मिलाना पड़ा। इसके बाद बिहार में कांग्रेस की ताकत सिर्फ इतनी रह गई है कि RJD गठबंधन बात-बात में कांग्रेस को 2020 के चुनाव में क्षमता से ज्यादा 70 सीट देने की बात कह कर ताना मारता है।

पिछले 10 राज्यों के चुनाव में सिर्फ BJP ही नहीं, क्षेत्रीय दल भी बने कांग्रेस की मुसीबत
2021 में 5 राज्यों बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम में विधानसभा चुनाव हुआ था। इसी तरह 2022 में 5 राज्यों UP, पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा में चुनाव हुए हैं। इन 10 राज्यों में देखा जाए तो सिर्फ एक राज्य उत्तराखंड ऐसा है, जहां BJP से कांग्रेस की सीधी लड़ाई है और बीच में कोई क्षेत्रीय दल मजबूत नहीं है। इसके अलावा 9 राज्यों में कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ BJP के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों के खिलाफ भी है। ऐसे में साफ है कि क्षेत्रीय पार्टियां अब कांग्रेस के लिए BJP से बड़ी मुसीबत बन गई हैं।

हाल में हुए चुनावों की बात करें तो UP में क्षेत्रीय पार्टी सपा और रालोद की जोड़ी को 125 और कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिलीं। वहीं, पंजाब में AAP को 92 और कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिलीं। इसी तरह मणिपुर में NPF को 5, NPP को 7 और कांग्रेस को 5 सीटें मिलीं। गोवा में भी AAP और TMC दो-दो सीट चुराने में कामयाब रहीं और कांग्रेस-गोवा फॉरवर्ड पार्टी की जोड़ी को 12 सीटें मिलीं।

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