चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की तुलना दिवंगत अमर सिंह से करना कहां तक जायज़?

ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार दो साल के अंतराल के बाद प्रशांत किशोर के बारे में जो कुछ कहा था, उसे भूल गए हैं. कांग्रेस भी प्रशांत किशोर के ड्राफ्ट पर यकीन करते हुए अतीत को पीछे छोड़ने के लिए इच्छुक है

चुनावी रणनीतिकार (Political Strategist) प्रशांत किशोर पूरी तरह से पेशेवर हैं, यहां तक कि कुछ लोग निंदा करते हुए उन्हें भाड़े का आदमी कहते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के मुख्य रणनीतिकार के तौर पर सुर्खियों में आने के बाद, कई राजनीतिक दलों (Political Parties in India) के लिए काम करते हुए पीके (PK) ने विचारधारा-तटस्थ राजनीतिक विश्लेषक के रूप में अपनी बनी-बनाई प्रतिष्ठा को धूमिल कर लिया. प्रशांत किशोर  को कई लोग पीके के नाम से जानते हैं. हालांकि, उनके आलोचक उनकी कथित तटस्थता को अवसरवाद के तौर पर देखते हैं. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आलोचक उनका मूल्यांकन कैसे करते हैं, यह निर्विवाद तथ्य है कि राजनीतिक वर्ग प्रशांत किशोर को काफी गंभीरता से लेता है और चुनाव जीतने की उम्मीद में उनकी कंपनी की सेवाएं लेने के लिए उत्सुक रहता है.

क्षेत्रीय दिग्गज से पीके का रिश्ता

2014 के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद अमित शाह और प्रशांत किशोर के रिश्ते खराब हो गए. इसके बाद बीजेपी के साथ उनके सभी संपर्क समाप्त हो गए है. लेकिन क्षेत्रीय दलों के बीच उनकी हाई डिमांड बनी हुई है. यहां तक कि राजनीतिक दलों ने भी चुनावी रणनीतिकार की विशाल नेटवर्किंग और उनकी प्रतिभा को स्वीकार किया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुरानी बातों को भूलते हुए हाल ही में प्रशांत किशोर के साथ मुलाकात की. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) की जीत के बाद वे नीतीश कुमार के बेहद करीबी हो गए. केवल पार्टी के अंदर जारी गंभीर मतभेदों से बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने इस रणनीतिकार को अपनी पार्टी में नंबर दो का दर्जा दे दिया. जदयू से विदाई के बाद प्रशांत और नितीश कुमार के रिश्ते खटाई में नहीं पड़े, उनकी मुलाकात हुई और कथित तौर विपक्ष की तरफ से नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना पर चर्चा हुई.

नीतीश भूल गए पुरानी बातें

प्रशांत किशोर ने टीआरएस (TRS) प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर और राकांपा (NCP) सुप्रीमो शरद पवार के साथ विचार-विमर्श के बाद इस प्रस्ताव को नीतीश कुमार तक पहुंचाया था. पीके ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम स्टालिन और पश्चिम बंगाल की उनकी समकक्ष ममता बनर्जी के साथ भी बैठक की. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री से उनके रास्ते अलग होने की अफवाहों के बावजूद, जैसा कि पीके ने कहा, उनके रिश्ते ‘रॉक सॉलिड’ बने हुए हैं. इससे पता चलता है कि इन विपक्षी दिग्गजों ने चुनावी रणनीतिकार पर कितना भरोसा जताया है, भले ही वह उनमें से किसी के साथ वैचारिक तौर पर जुड़े नहीं हैं. ऐसे में वह विपक्षी दलों के बीच एक ईमानदार ब्रोकर की भूमिका निभा रहे हैं.

अमर सिंह के जैसे नहीं हैं पीके

राजनीतिक दलों के साथ प्रशांत किशोर के गहरे संबंधों को देखते हुए, दिवंगत अमर सिंह के साथ उनकी तुलना आकर्षक हो सकती है, लेकिन चुनावी रणनीतिकार को सबमें खपने वाला तेज तर्रार आदमी नहीं माना जाता है. उन्होंने अपने राजनेता ग्राहकों को राज्य के चुनाव जीतने में मदद की और लोगों का ध्यान आकर्षित किया. उनके राजनेता मित्रों ने उन्हें जो भी अन्य भूमिकाएं सौंपी जाती हैं, लेकिन पीके चुनावी नंबर हासिल करने वाले के तौर पर जाने गए. यह बताता है कि क्यों कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव अभियान की रणनीति बनाने के लिए पीके से जुड़ने के लिए इच्छुक है. यह, इस तथ्य के बावजूद कि केवल छह महीने पहले, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के रणनीतिकार के रूप में मसौदा तैयार करने के प्रयासों के बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेतृत्व की खुले तौर पर आलोचना की थी. प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को चेतावनी दी थी कि भाजपा लंबे समय से वहां है और राहुल गांधी इस तथ्य को केवल अपने जिम्मेदारी पर अनदेखा कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘वह (राहुल गांधी) शायद सोचते हैं कि यह बस समय की बात है जब लोग उन्हें (मोदी को) दूर फेंक देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.’

बीजेपी का ट्रोजन हॉर्स?

पीके ने न केवल कांग्रेस का सार्वजनिक तौर पर उपहास किया बल्कि उसे तोड़ने में भी सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने गोवा के पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो (Luizinho Falerio) को पार्टी छोड़ने में मदद की, जो तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गए. उन्होंने इसी तर्ज पर पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय और त्रिपुरा में भी टीएमसी की एंट्री को आसान बनाने की कोशिश की, हालांकि इसमें उन्हें बहुत कम सफलता मिली. कांग्रेस को कमजोर करने के उनके प्रयासों को लेकर पार्टी के कुछ नेताओं ने प्रशांत किशोर को भाजपा का ट्रोजन हॉर्स करार दिया. उन्होंने नीतीश कुमार का हवाला दिया जिन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि किशोर को अमित शाह के इशारे पर जद (यू) में शामिल किया गया था. हालांकि, जैसा कि वे कहते हैं, राजनीति में एक सप्ताह का लंबा समय होता है. ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार दो साल के अंतराल के बाद प्रशांत किशोर के बारे में जो कुछ कहा गया था, उसे भूल गए हैं. कांग्रेस भी प्रशांत किशोर का ड्राफ्ट पर यकीन करते हुए अतीत को पीछे छोड़ने के लिए इच्छुक है, जिनकी सेवाओं के परिणाम पार्टी के लिए मिलेजुले रहे हैं. कांग्रेस के लिए पीके की रणनीति उस पार्टी के लिए संकट को नहीं रोक सकी जो 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में उसका इंतजार कर रही थी. लेकिन पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में 2017 के विधानसभा चुनाव में आश्चर्यजनक जीत में उनकी भूमिका को स्वीकार किया गया था.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

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