चौथी-पांचवीं क्लास से ही आ रहे बच्चियों को पीरियड्स….
थमी हुई है उम्र, लेकिन बढ़ने लगा शरीर, कहीं आपके बच्चे में भी तो नहीं है अडल्ट होने के लक्षण….
उम्र कम है लेकिन बच्चे में शारीरिक बदलाव तेजी से हो रहा है। चौथी-पांचवी क्लास में ही बच्चियों को पीरियड्स आ रहे हैं। लड़कों में 13-14 साल की उम्र में ही दाढ़ी-मूंछ विकसित होने लगे हैं। इससे पेरेंट्स की चिंता लगातार बढ़ रही है। उम्र के पहले शरीर का विकसित होना लड़कों से ज्यादा लड़कियों में देखा जाता है। क्या है इसकी वजह, बता रही हैं चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. रीतिका सिंघल और सायकोलॉजिस्ट डॉ. धर्मेंद्र सिंह।
क्या आपने उम्र से पहले बच्चे के बढ़ने को नोटिस किया?
बच्चे की चंचलता उम्र के साथ गंभीरता में बदलती है। प्री-टीन (13 साल से पहले की उम्र) से टीनएज (13 साल के बाद) का सफर बदलाव का एक बड़ा दौर होता है। एक दशक पहले तक उम्र के नए पड़ाव को छूने के लक्षण लड़कियों में 13-14 साल, जबकि लड़कों में 15-16 साल हुआ करती थी। जैसे-जैसे लाइफस्टाइल बदली है, उम्र की यह सीमा भी घटती गई है। अब लड़कियों को 11-12 साल में पीरियड्स जबकि लड़कों में 13-14 साल में दाढ़ी-मूंछ आने लगे हैं। इससे अलग जिन लड़कियों में 8 साल और लड़कों में 9 साल की उम्र से अडल्ट होने के लक्षण शुरू हो जाते हैं, उनपर पेरेंट्स को खास ध्यान देना चाहिए।
छोटी उम्र में बढ़ने लगा है बच्चा, कैसे करें इसकी पहचान?
डॉ. सिंघल के मुताबिक उम्र से पहले शरीर में होने वाले बदलाव को प्रीकोशियस प्यूबर्टी कहते हैं। यह इस बात का इशारा होती है कि बच्चे के हॉर्मोन में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। जब शरीर में गोनाडोट्रोपिन हॉर्मोन विकसित होने लगता है, तब सेक्स ग्लैंड्स यानी लड़कियों में ओवरी और लड़कों में टेस्टिस विकसित होते है। बच्चा बढ़ रहा है इसका आकलन उसकी बढ़ती हाइट और वजन से तो होता ही है। इसके अलावा आवाज में भारीपन आना, बॉडी मसल्स में अचानक हुई ग्रोथ, पीरियड्स शुरू होने जैसी चीजें बच्चे के बढ़ने का इशारा करती हैं।
क्या आप जानते हैं, कितने तरह की होती है प्रीकोशियस प्यूबर्टी?
सेंट्रल प्रीकोशियस प्यूबर्टी – बच्चे में सेंट्रल प्रीकोशियस प्यूबर्टी के लक्षण तब देखे जाते हैं, जब सेक्स हॉर्मोन उम्र से पहले रिलीज होने लगे। आमतौर पर सेंट्रल प्रीकोशियस प्यूबर्टी दिमागी सदमे, हाइपोथैलेमस के ट्यूमर, ब्रेन इंफेक्शन की वजह से देखा जाता है। ज्यादातर मामलों में सेंट्रल प्रीकोशियस प्यूबर्टी के कारणों का पता नहीं चल पाता।
पेरीफेरल प्रीकोशियस प्यूबर्टी – पेरीफेरल प्रीकोशियस प्यूबर्टी की वजह हॉर्मोनल चेंज (आसपास के माहौल की वजह से), ओवरी, टेस्टिकल्स या एड्रेनल ग्लैंड में किसी तरह प्रॉब्लम से हो सकता है। कुछ सप्लीमेंट की वजह से भी ऐसा होता है।
इनकंप्लीट प्रीकोशियस प्यूबर्टी – इस स्थिति में बच्चे में अडल्ट होने के लक्षण पूरी तरह विकसित नहीं होती। जैसे लड़कियों में ब्रेस्ट डेवलपमेंट शुरू हो जाते हैं, लेकिन पीरियड्स नहीं आते। वहीं लड़कों में दाढ़ी-मूंछ आने लगते हैं, लेकिन टेस्टिकल्स की ग्रोथ नहीं होती। ज्यादातर बच्चों में इनकंप्लीट प्रीकोशियस प्यूबर्टी देखे जाते हैं।
ऐसा क्यों होता है की थमी रहती है उम्र, लेकिन बढ़ जाता है शरीर?
डॉ. सिंह के मुताबिक बदलती लाइफस्टाइल इसकी सबसे बड़ी वजह है। बच्चों को मिलता ओवर एक्सपोजर उन्हें उम्र से पहले बड़ा कर रहा है। सोशल मीडिया पर मौजूद अडल्ट कंटेंट भी इसकी एक वजह है। इन सबके अलावा खानपान, एक्स्ट्रा स्क्रीन टाइम, और फिजिकल एक्टिविटी में आई कमी भी प्रीकोशियस प्यूबर्टी का कारण बनती है।
चिंता तो कर ली, अब ऐसा क्या करें कि उम्र से पहले न बढ़े बच्चा?
शरीर में आ रहे इन बदलावों से बच्चे का कॉन्फिडेंस कम होता है। उन्हें लगता है कि उनकी उम्र के सारे बच्चे नॉर्मल हैं, जबकि उन्हें किसी तरह की दिक्कत है। इससे बच्चा ज्यादा सोचने और सिमटने लगता है। पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चे को फिजिकल एक्टिविटी के लिए बढ़ावा दें। उनके खान पान का रूटीन सही करें। ध्यान दें कि वे ऑयली और जंक फूड कम से कम खाएं। बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करें। बच्चे का वजन न बढ़े इस बात का ध्यान रखें।
अगर 8 साल से पहले बच्चे में दिखें अडल्ट होने के लक्षण, तो क्या करें?
डॉक्टर से मिलें। उनकी सलाह पर फिजिकल एग्जामिनेशन कराएं। स्थिति को जानते समझते हुए हो सकता है कि डॉक्टर कलाइयों का एक्सरे, MRI या अल्ट्रासाउंड करे। इसके अलावा थाइराइड, लिपिड प्रोफाइल या लिवर फंक्शन टेस्ट भी कराया जा सकता है।
जानिए- क्या है प्रीकोशियस प्यूबर्टी का ट्रीटमेंट?
- हॉर्मोनल ट्रीटमेंट दिए जाते हैं, जिससे बच्चे की हाइट बढ़ती रहे।
- ट्रीटमेंट देने से अडल्ट होने के लक्षण साल-डेढ़ साल तक विकसित नहीं होते।
- बच्चे की रूटीन में फिजिकल एक्टिविटी और हेल्दी डाइट शामिल की जाती है।
- अगर बच्चे का वजन ज्यादा बढ़ा हुआ है, तो उसे कम करने की कोशिश की जाती है।
- इंजेक्शन के जरिए भी बच्चे के हॉर्मोनल चेंज को कंट्रोल किया जाता है।
डॉ. सिंघल के मुताबिक पेरेंट्स बच्चे की ग्रोथ पर नजर बनाए रखें, किसी तरह के संशय में बिना देर किए एक्सपर्ट से मिलें, ताकि बच्चे की प्रॉब्लम को समय रहते सुलझाया जा सके।