नीति आयोग की हेल्थ रैंकिंग में यूपी-बिहार फिसड्डी, जानिए कौन है नंबर 1

स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के मोर्चे पर पिछड़े बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और ओडिशा एक नयी तुलनात्मक रिपोर्ट में पहले से अधिक फिसड्डी साबित हुए हैं। इसके विपरीत हरियाणा, राजस्थान और झारखंड में हालात उल्लेखनीय रूप से सुधरे हैं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विश्वबैंक के तकनीकी सहयोग से तैयार नीति आयोग की ‘स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आयी है। इस रपट में इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान पर सबसे नीचे रहा है जबकि उत्तर प्रदेश 20वें, उत्तराखंड 19वें और ओड़िशा 18वें स्थान पर रहा है।

संपूर्ण रैंकिंग की यदि बात की जाये तो 21 बड़े राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे 21वें स्थान पर है। उसके बाद क्रमश: बिहार, ओड़िशा, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड का स्थान है। वहीं इसमें शीर्ष पर केरल है। उसके बाद क्रमश: आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान हैं।

रिपोर्ट के अनुसार संदर्भ वर्ष 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य क्षेत्र में बिहार का संपूर्ण प्रदर्शन सूचकांक 6.35 अंक गिरा है। इसी दौरान उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन सूचकांक में 5.08 अंक, उत्तराखंड 5.02 अंक तथा ओड़िशा के सूचकांक में 3.46 अंक की गिरावट आयी है।

यह रैंकिंग 23 संकेतकों के आधार पर तैयार की गयी है। इन संकेतकों को स्वास्थ्य योजना परिणाम (नवजात मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय स्त्री-पुरूष अनुपात आदि), संचालन व्यवस्था और सूचना (अधिकारियों की नियुक्ति अवधि आदि) तथा प्रमुख इनपुट / प्रक्रियाओं (नर्सों के खाली पड़े पद, जन्म पंजीकरण का स्तर आदि) में बांटा गया है।

यह दूसरा मौका है जब आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक के आधार पर राज्यों की रैंकिंग की है। इस तरह की पिछली रैंकिंग फरवरी 2018 में जारी की गयी थी।

इस रिपोर्ट में पिछली बार के मुकाबले सुधार और कुल मिलाकर बेहतर प्रदर्शन के आधार पर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की रैंकिंग तीन श्रेणी में की गयी है। पहली श्रेणी में 21 बड़े राज्यों, दूसरी श्रेणी में आठ छोटे राज्यों एवं तीसरी श्रेणी में केंद्र शासित प्रदेशों को रखा गया है।

सूचकांक में सुधार के पैमाने पर हरियाणा का प्रर्शन सबसे अच्छा रहा है। उसके 2017-18 के संपूर्ण सूचकांक में 6.55 अंक का सुधार आया है। उसके बाद क्रमश: राजस्थान (दूसरा), झारखंड (तीसरा) और आंध्र प्रदेश (चौथे) का स्थान रहा।

वहीं छोटे राज्यों में त्रिपुरा पहले पायदान पर रहा। उसके बाद क्रमश: मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड का स्थान रहा। इसमें सबसे फिसड्डी अरूणाचल प्रदेश (आठवें), सिक्किम (सातवें) तथा गोवा (छठे) का स्थान रहा।

रिपोर्ट के अनुसार केंद्रशासित प्रदेशों में दादर एंड नागर हवेली (पहला स्थान) तथा चंडीगढ़ (दूसरा स्थान) में स्थिति पहले से बेहतर हुई है। सूची में लक्षद्वीप सबसे नीचे तथा दिल्ली पांचवें स्थान पर है।

संपूर्ण रैंकिंग में आठ छोटे राज्यों में मिजोरम पहले स्थान पर जबकि मणिपुर अैर मेघालय क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर है। वहीं नगालैंड आठवें, अरूणाचल प्रदेश सातवें और त्रिपुरा छठे स्थान पर है।

इसी आधार पर सात केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ पहले स्थान पर जबकि दादर नागर हवेली दूसरे, लक्षद्वीप तीसरे स्थान पर हैं। वहीं दमन एंड दीव सबसे निचले पायदान पर है। अंडमान निकोबार छठे और दिल्ली पाचवें स्थान पर है।

रिपोर्ट जारी किये जाने के मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ”यह एक बड़ा प्रयास है… जिसका मकसद राज्यों को महत्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा के लिये प्रेरित करना है।

उन्होंने कहा, ”हम ऐसे राज्यों के साथ काम कर रहे हैं और जो सूचकांक में पीछे हैं, उनमें सुधार के लिये वहां ज्यादा काम करेंगे। जो आकांक्षावादी (पिछड़े जिले) हैं, उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी।

आयोग के सदस्य डा. वी के पॉल ने कहा, ”स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी काफी काम करने की जरूरत है… इसमें सुधार के लिये स्थिर प्रशासन, महत्वपूर्ण पदों को भरा जाना तथा स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ”केंद्र सरकार को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए। जबकि राज्यों को स्वास्थ्य पर राज्य जीडीपी का औसतन 4.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत खर्च करना चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार कई संकेतकों पर खराब प्रदर्शन के कारण आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष के बीच बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और ओड़िशा का स्वस्थ्य सूचकांक अंक घटा है।

इसमें कहा गया है, ”उदाहरण के लिये बिहार के सूचकांक अंक में गिरावट का मुख्य कारण प्रजनन दर, जन्म के समय कम वजन, जन्म के समय स्त्री-पुरूष अनुपात, टीबी (तपेदिक) उपचार की सफलता दर आदि से जुड़े प्रदर्शन मुख्य वजह हैं।

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