पंचांग v/s कैलेंडर …अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे है हिंदू पंचांग, कर्ज माफ करने वाले राजा के नाम से शुरू होता था नव संवत
2 अप्रैल से विक्रम संवत 2079 शुरू हो गया है। अभी अंग्रेजी साल 2022 चल रहा है और संवत है 2079 यानी विक्रम संवत की शुरुआत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल पहले ही हो गई थी। इसकी शुरुआत की थी राजा विक्रमादित्य ने। विक्रमादित्य का जन्म करीब 2200 साल पहले हुआ था। उनका राज्य भारत ही नहीं, आसपास के कई देशों तक फैला हुआ था।
विक्रम संवत में कई ऐसी बातें हैं जो इसे अंग्रेजी कैलेंडर से ज्यादा बेहतर बनाती हैं। हिन्दुओं के सभी तीज-त्यौहार, मुहूर्त, शुभ-अशुभ योग, सूर्य-चंद्र ग्रहण, हिन्दी पंचांग की गणना के आधार पर ही तय होते हैं। इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक हर एक महत्वपूर्ण काम की शुरुआत हिन्दी पंचांग से मुहूर्त देखकर ही की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
जानिए विक्रम संवत और अंग्रेजी कैलेंडर में खास अंतर कौन-कौन से हैं…
कैसे हुई विक्रम संवत की शुरुआत?
विक्रम संवत के जनक विक्रमादित्य राजा भर्तृहरि के छोटे भाई थे। भर्तृहरि को उनकी पत्नी ने धोखा दिया तो उन्होंने राज्य छोड़कर संन्यास ले लिया और राज्य सौंप दिया विक्रमादित्य को। ऐसा माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा का पूरा ऋण माफ कर दिया था, ताकि लोगों की आर्थिक दिक्कतें खत्म हो जाएं। उस समय जो राजा अपनी प्रजा का पूरा कर्ज माफ कर देता था, उसके नाम से ही संवत प्रचलित हो जाता था। इस कारण उनके नाम से विक्रम संवत प्रचलित हो गया।
विक्रम संवत से पहले कौन सा पंचांग प्रचलित था?
करीब 5 हजार साल पहले यानी द्वापर युग से भी पहले सप्तऋषियों के नाम से संवत चला करते थे। द्वापर युग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और इसके बाद श्रीकृष्ण के नाम से संवत प्रचलित हुआ। द्वापर युग के बाद कलियुग शुरु हुआ था। श्रीकृष्ण संवत के करीब 3000 साल बाद विक्रम संवत की शुरुआत हुई, जो आज तक प्रचलित है।
कैसे हुई अंग्रेजी कैलेंडर की शुरुआत?
अग्रेंजी कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर कहा जाता है। इसकी शुरुआत रोम से मानी जाती है और इसका संबंध ईसा मसीह के जन्म से है। ईसा मसीह के जन्म से पहले के समय को ईसा पूर्व और बाद के समय को ईस्वी कहते हैं। जब अंग्रेज भारत आए तो वे अपने साथ अंग्रेजी कैलेंडर भी ले आए थे।
ये कैलेंडर समझने में बहुत आसान है और इसे कोई भी बना सकता है, इस कारण ये भारत में बहुत जल्दी प्रचलित हो गया। 2022 साल पहले अंग्रेजी कैलेंडर की शुरुआत हुई थी, उस समय विक्रम संवत का 57वां साल चल रहा था। ग्रेगोरियन कैलेंडर में समय-समय पर कई बदलाव हुए हैं। जब इस कैलेंडर की शुरुआत हुई थी, तब एक साल दस महीनों का होता था, लेकिन बाद में ये कैलेंडर 12 महीनों का हो गया।
ऐसा माना जाता है साल 1582 तक आते-आते ये अंग्रेजी कैलेंडर की लगभग सारी कमियां दूर कर ली गई थीं। तब 13वें पॉप ग्रेगोरी ने 1582 में इसे जारी किया। तब से ही ये कैलेंडर चल रहा है। पॉप ग्रगोरी के नाम पर ही इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर कहा जाता है।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही क्यों शुरु होता है नव संवत?
वैसे तो चैत्र माह होली के दूसरे दिन से ही शुरु हो जाता है, लेकिन हिन्दी नव वर्ष की शुरुआत 15 दिन बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी पहली तिथि से होती है। इस संबंध में मान्यता है कि इस तिथि पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस कारण नव वर्ष के लिए इस तिथि का चयन किया गया है। इसी तिथि से चैत्र नवरात्रि भी शुरू होती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्म में अंधकार से उजाले की ओर जाने को महत्वपूर्ण माना जाता है। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएं बढ़ने लगती हैं और पूर्णिमा पर अंधकार पूरी तरह से दूर हो जाता है। इस वजह से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष के लिए चुना गया। जब हिन्दी पंचांग का नव वर्ष शुरू होता है तो पूरी प्रकृति में भी बदलाव होते हैं, पेड़ों पर नए पत्ते आना शुरू हो जाते हैं।
कैसे बनते हैं हिन्दी पंचांग और अंग्रेजी कैलेंडर?
अंग्रेजी कैलेंडर को समझना और बनाना बहुत ही आसान है, ये कैलेंडर कोई भी बना सकता है, लेकिन हिन्दी पंचांग बनाना सिर्फ एक्सपर्ट्स का काम है। इसमें कई तरह की गणनाएं की जाती हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं है। पंचांग बनाते समय 5 बातों का ध्यान रखा जाता है। पंचांग शब्द का अर्थ है पांच अंग। ये पांच अंग हैं- वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण।
इन पांचों के आधार पर गणना की जाती है और पंचांग बनता है। किसी भी काम की शुरुआत के मुहूर्त जानने के लिए लोग ब्राह्मणों के पास जाते हैं, क्योंकि हिन्दी पंचांग को पढ़ना, समझना भी काफी मुश्किल है, इसी वजह से अधिकतर लोग इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं। इसी गणना में ये भी पता किया जा सकता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण कब-कब होने वाले हैं, कितनी देर रहेंगे और कहां-कहां दिखाई देंगे।
अंग्रेजी कैलेंडर में लीप ईयर क्यों है?
अंग्रेजी कैलेंडर में हर चार साल में एक बार लीप ईयर आता है। अंग्रेजी कैलेंडर की गणना सौर यानी सूर्य वर्ष के आधार पर की गई है। पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर 365 दिन और लगभग 6 घंटे में पूरा करती है। इसे ही एक सूर्य वर्ष कहा जाता है। लगातार चार साल तक इन अतिरिक्त 6 घंटों को जोड़ा जाता है तो एक दिन बन जाता है।
इस एक दिन को जोड़ने के लिए हर चौथे साल लीप ईयर रहता है, जिसमें 366 दिन होते हैं। लीप ईयर में फरवरी 29 दिन का होता है। अगर लीप ईयर की व्यवस्था न होती तो सभी महीने ऋतुओं के अनुसार नहीं रहते। जैसे करीब 400 साल बाद अप्रैल बारिश में आता, जुलाई ठंड में और जनवरी महीना गर्मी के दिनों आता। ऐसे ही सभी महीने अलग-अलग ऋतुओं में आने लगते। लीप ईयर से सभी महीने ऋतुओं के हिसाब से व्यवस्थित रहते हैं।
हिन्दी पंचांग में अधिक मास की व्यवस्था क्यों है?
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक हिन्दी पंचांग चंद्र वर्ष के आधार पर चलता है। एक चंद्र वर्ष में 354 से 360 दिन होते हैं। तिथियों की घट-बढ़कर की वजह से महीने में और फिर साल में दिन कम-ज्यादा होते हैं। सूर्य वर्ष (365 दिन) और चंद्र वर्ष (करीब 354 से 360 दिन) में हर साल करीब 5 से 11 दिनों का अंतर आ जाता है। हर तीन साल में ये अंतर करीब एक महीने के बराबर हो जाता है। इस अंतर को खत्म करने के लिए हिन्दी पंचांग में अधिक मास की व्यवस्था की गई है। जिस साल में अधिक मास रहता है, उस साल में 12 नहीं, 13 महीने होते हैं।
हिन्दी पंचांग में सभी त्योहार ऋतुओं के आधार पर मनाए जाते हैं। जैसे सावन महीना बारिश के दिनों में आता है, दीपावली ठंड के समय में आती है, नवरात्रि ऋतुओं के संधिकाल में आती है। अगर अधिक मास की व्यवस्था न होती तो सभी त्योहारों की ऋतुएं बदलती रहती, जैसे दीपावली कभी ठंड, कभी गर्मी में या बारिश में आने लगती। सावन का महीना कभी ठंड में तो कभी गर्मी में आता।
त्योहारों का धार्मिक, वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व बनाए रखने के लिए और मौसम के साथ पंचांग में संतुलन बनाए रखने के लिए अधिक मास की व्यवस्था हिन्दी पंचांग में की गई है।
चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष के अनुसार कैसे होती है राशियों की गणना?
विक्रम संवत में सूर्य और चंद्र दोनों की स्थितियों के आधार पर ही सारी गणनाएं की जाती हैं। सूर्य एक राशि में पूरे एक महीने तक रहता है यानी पूरे एक महीने में जन्म लेने वाले सभी बच्चों की वही एक राशि हो जाती है, जिसमें सूर्य रहता है। जैसे 21 मार्च से 19 अप्रैल के बीच पैदा होने वाले सभी लोगों की सूर्य राशि मेष होती है। जबकि चंद्र हर सवा दो दिन में राशि बदल लेता है, इस वजह से इन सवा दो दिनों तक जन्म लेने वाले लोगों की एक जैसी राशि होती है। चंद्र राशि के आधार पर गणना ज्यादा सटीक होती है, इस वजह से इस राशि को अधिक महत्व दिया जाता है।
हिन्दी पंचांग में हजारों साल पहले से है नौ ग्रहों का वर्णन
अंग्रेजी कैलेंडर को शुरू हुए 2022 साल ही हुए हैं, लेकिन इससे भी हजारों साल पहले से हिन्दी पंचांग प्रचलित है। हिन्दी पंचांग में हजारों साल पहले से ही नौ ग्रहों का वर्णन किया जा रहा है। पंचांग की गणना इतनी सटीक होती है कि इसकी मदद से सभी नौ ग्रहों की चाल, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी, चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण जैसी हर एक खगोलीय घटना की सही जानकारी मालूम की जा सकती है।
अंग्रेजी कैलेंडर में सप्ताह का पहला दिन सोमवार, हिंदू सप्ताह का पहला दिन रविवार
हिन्दी पंचांग में ग्रहों के नामों के आधार पर सप्ताह के वारों के नाम तय किए गए हैं। पंचांग की गणना में सप्ताह की शुरुआत सूर्य की होरा से ही होती है, होरा का अर्थ होता है लगभग एक घंटे का समय। इस होरा का एक स्वामी ग्रह होता है। सूर्य उदय के समय जिस ग्रह का होरा होता है। उसी के नाम से दिन का नाम रखा गया है।
जैसे सप्ताह के पहले दिन सूर्य उदय के समय सूर्य का ही होरा होता है, तो उस दिन को सूर्य के नाम से रविवार के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर यहां कुछ भिन्न है, उनके सप्ताह के सात दिनों के नाम भी ग्रहों के नाम से हैं, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर में पहला दिन सोमवार माना गया है।