पैकेज्ड फूड कंपनियों की धोखेबाजी से करोड़ो लोग हो रहे बीमार
Packaged Food Products : घर-परिवार के स्वास्थ्य (Health) को लेकर सतर्क होते भारतीय अब पैकेज्ड फूड आइटम Packaged Food Products) पर छपने वाले ई-कोडिंग (E- Code) पर सवाल उठा रहे हैं। लोगों की शिकायत है कि ई-कोडिंग/नंबर के नाम पर कंपनियां शाकाहारी उत्पादों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए मांसाहारी (non vegetarian food) और जहरीले इंग्रिडियंट (poisonous ingredients) मिलाती हैं, जो स्वास्थ्य (Health) के लिए बेहद हानिकारक (Harmful) हैं।
चेन्नई
Packaged Food Products : घर-परिवार के स्वास्थ्य को लेकर सतर्क होते भारतीय अब पैकेज्ड फूड आइटम (Packaged Food Products) पर छपने वाले ई-कोडिंग (E- Code) पर सवाल उठा रहे हैं। लोगों की शिकायत है कि ई-कोडिंग/नंबर के नाम पर कंपनियां शाकाहारी उत्पादों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए मांसाहारी (non vegetarian food) और जहरीले इंग्रिडियंट (poisonous ingredients) मिलाती हैं, जो स्वास्थ्य (Health) के लिए बेहद हानिकारक (Harmfull) हैं। ई-नंबर मूल रूप से यूरोपीय देशों की देन हैं। पैकेट पर यह इंग्रिडियंट एक कोड जैसे ई-100 से लेकर ई-1599 तक होते हैं। इनमें ई-322, ई-472, ई-631 जैसे कई तत्व अधिकतम मांसाहारी होते हैं जिन्हें कंपनियां साफ न लिखकर कोड में लिखती है ताकि ग्राहक इस कोड का मतलब न समझ पाएं। हालांकि विवाद के बाद कई कंपनियों ने कहा कि भारत में बिकने वाले उत्पादों में प्लांट फैट (Plant fat) जबकि यूरोपीय देशों में एनीमल फैट (Animal Fat) का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा एल्कोहल, घातक कैमिकल, कृत्रिम रंग, एंटीऑक्सीडेंट्स और एसिडिटी रेग्यूलेटर्स, प्रिजरवेटिव्स जैसे तमाम इंग्रिडियंट को भी साफ न लिखकर कोड में लिखा जाता है।
अमूमन विदेशी कंपनियों के पैकेज्ड नूडल्स (noodles), पाश्ता (Pasta), पिज्जा (Pizza), बिस्किट (Biscuits), चिप्स (Chips), चॉकलेट (chocolate), सूप, च्यूइंगम आदि में एनीमल फैट (Animal Fat) प्रयोग होता है, लेकिन पैकेट पर हरा गोला दिखाकर शाकाहारी बताया जाता है। तमाम कंपनियां अब ई- कोडिंग की जगह इंटरनेशनल नंबरिंग सिस्टम (आईएनएस) नंबर लिख रही हैं ताकि ग्राहक भ्रमित रहें। दिल्ली हाईकोर्ट ने जनवरी 2022 में अपने एक फैसले में फूड बिजनेस ऑपरेटर्स को निर्देश दिया था कि प्रोडक्ट्स में ई- कोड के अलावा इस्तेमाल हर चीज का स्रोत पौधों या जानवर जो भी हो लिखना जरूरी है। हालांकि इस मामले में कंपनियों का कहना है कि सरकारी अधिसूचना में बाल,पंख, सींग, नाखून, चर्बी, अंडे की जर्दी को मांसाहार से बाहर रखा गया है तो फिर उपयोग में क्या दिक्कत है।
जंक फूड, सॉफ्ट ड्रिंक्स या डायट सोडा से करीब 40 फीसदी बच्चो में शार्ट टर्म मेमोरी लॉस पाया गया है। रेडी टू कुक फूड, डिब्बाबंद फूड, कुकीज, डिब्बाबंद नूडल्स, फ्रोजन फूड, ब्रेड, चिप्स, पिज्जा, बर्गर बच्चों को हाइपर कर रहे हैं। स्कॉटलैंड में 4,000 बच्चों पर हुए अध्ययन में साफ हुआ कि ताजा खाना खाने वाले बच्चों का आईक्यू लेवल (बौद्धिक स्तर) अन्य बच्चों की अपेक्षा 19 गुना ज्यादा पाया गया।
भारत में क्या हैं कानूनी प्रावधान
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि ग्राहक अगर किसी उत्पाद को खरीदता है तो उसे यह जानने का अधिकार है कि उत्पाद में क्या इंग्रिडियंट हैं। शाकाहारी पैकेट में मांसाहारी चीजें मिलाना खाद्य संरक्षण अधिनियम के 2013 का उलंघन है। इसके तहत धार्मिक भवानाओं को ठेस पहुंचाने, क्षपिपूर्ति, दो साल तक सजा और पांच लाख तक जुर्माने का प्रावधान है। कंपनियां टम्र्स एंड कंडीशन को छोटे अक्षरों में और चेतावनी को न लिखकर भी ग्राहकों के साथ धोखा कर रही हंै।
पैकेटबंद फूड में ट्रांस फैट ब्रेन वॉल्यूम और याद्दाश्त को गंभीर रूप से कमजोर करता है। दिमाग में ब्रेड ड्राइवड न्यूरोटॉफिक फैक्टर (बीएनडीएफ) का उत्पादन कम होता है। इससे सीखने की क्षमता घटती है और नए न्यूरॉन कम बनते हैं। न्यूरोट्रांसमीटर क्षतिगस्त होने लगते हैं।
– डॉ. सोमशेखर, बाल रोग विशेषज्ञ, एम एस रामय्या अस्पताल, बेंगलूरु
जारी हों स्पष्ट दिशा-निर्देश
सरकार को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी कर प्रावधान करना चाहिए कि हर पैकेज्ड फूड में इस्तेमाल सामग्री की सही और स्पष्ट जानकारी ई-कोड की बजाय बड़े अक्षरों में लिखी जाए। नियम उल्लंघन पर संबंधित कंपनी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान भी होना चाहिए।
– दिवाकर द्विवेदी, क्रिमिनल एवं खाद्य मामलों के वरिष्ठ वकील