bhind .. स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से कराएं पढ़ाई, अगर किसी पुस्तक की जरूरत तो पहले स्वीकृति लें

स्कूल संचालकों की बैठक …

जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) में बुलाई गई प्राइवेट स्कूल संचालकों की बैठक में डीईओ हरभवन सिंह तोमर ने सपाट लहजे में कहा कि देश भर के बड़े-बड़े स्कूलों में जब एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई कराई जा रही है तब जिले के स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता।

सभी स्कूल संचालकों को अपने यहां एनसीईआरटी पाठ्यक्रमानुसार पढ़ाई कराना चाहिए। इसके अलावा कंप्यूटर, पर्यावरण आदि को लेकर कोई किताब पाठ्यक्रम में शामिल करना है तो इसके लिए स्वीकृति ली जाए। इस प्रक्रिया से जहां बच्चों को बेहतर पढ़ने को मिलेगी वहीं अभिभावकों की जेब भी अधिक भार नहीं पडेगा।

यहां बता दें बैठक में यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि छात्रों से कितनी फीस वसूल रहे हैं इसकी जानकारी स्कूल के सूचना बोर्ड पर अंकित कराएंगे और 10 प्रतिशत से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकेंगे। किस स्कूल में कितनी फीस ली जा रही है इसके लिए जिला स्तरीय फीस नियामक समिति गठित की जाएगी। जिससे अगर कोई स्कूल में ज्यादा फीस ली जाती है तो कार्रवाई प्रस्तावित की जा सकेगी।

इसी प्रकार पुरानी किताबों को लेकर आपत्ति न की जाए कि नई किताबें होंगी तभी पढ़ाई कराई जाएगी। अगर इस प्रकार की शिकायत मिलती है तो भी संबंधित स्कूल संचालक के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। कोई भी स्कूल संचालक बुकसैलर के नाम की स्लिप नहीं दे सकेगा और न ही अभिभावकों को बाध्य कर सकेगा कि चिंहित दुकान से ही किताबों की खरीदारी की जाए।

इससे कमीशनखोरी पर अंकुल लगेगा। डीईओ का कहना था के पर्यावरण संतुलन के लिए भी यह जरूरी है कि किताबों की कम से कम से कम खरीद फरोख्त हो। बैठक में एपीसी एकेडमिक संदीप सिंह कुशवाह द्वारा राइट टू एज्युकेशन को लेकर विस्तार से चर्चा की और स्कूल संचालकों से इसके अनुसार पठन पाठन की व्यवस्थाएं करने की बात कही। इसी प्रकार एपीसी शैलेष त्रिपाठी ने स्कूल संचालक और अभिभावकों के सामंजस्य से बेहतर पढ़ाई लिखाई कराने की बात कही।

बैठक में नहीं आए संचालकों को कारण बताओ नोटिस

बैठक में 110 के लगभग स्कूल संचालक उपस्थित हुए जबकि अधिकांश बड़े स्कूलों के संचालक नदारद रहे। डीईओ ने बताया कि बैठक में अनुपस्थित रहने वाले संचालकों को कारण बताओ नोटिस जारी किए जा रहे हैं कि क्यों न उनके स्कूल की मान्यता समाप्ति की कार्रवाई की जाए।

सभी स्कूलों के लिए एक जैसी गणवेश
बैठक यह बात भी सामने आई कि गणवेश में भी कमीशनखोरी की शिकायतें मिलती हैं। इसके लिए बेहतर तरीका सभी स्कूलों के लिए एक जैसी गणवेश का निर्धारण किए जाने पर चर्चा हुई। इस बात पर अधिकांश स्कूल संचालक सहमत नजर आए। यह निर्णय भी तभी हो सकता है जब प्रशासनिक स्तर से इसके लिए प्रावधान किया जाए।

जिला स्तर पर अब तक नहीं बनी कोर कमेटी
यहां बता दें 2009 से लागू राइट टू एज्युकेशन लागू हुआ है। लेकिन अब तक जिला स्तर पर कोर कमेटी का गठन नहीं हो सका है। अगर कोर कमेटी बनती है तो न केवल किताबों और गणवेश में कमीशनखोरी बल्कि फीस प्रतिपूर्ति आदि को लेकर उपजने वाली समस्याओं का भी समाधान हो सकता है।

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