जब लगाव नींद से ज्यादा सेहत के प्रति बढ़ता है तो हम कम जुड़ाव वाली चीज छोड़ देते हैं

कुछ त्यागना या छोड़ना वह नहीं है, जो हम सब सोचते हैं। और ऐसा भी नहीं, जैसा ज्यादातर दुनिया सोचती है। यह निश्चित तौर पर हथियार डालना नहीं है। असल में आप कुछ भी गिव-अप नहीं कर रहे। यह अपरिपक्व दिमाग है, जो कहता है, ‘उन्होंने कसरत के लिए नींद त्याग दी।’ असल में जब लगाव नींद से ज्यादा सेहत के प्रति बढ़ता है तो ज्यादा जुड़ाव वाली चीज के लिए कम जुड़ाव वाली चीज छोड़ देते हैं। ऐसा या तो मजबूत इच्छाशक्ति से हो सकता है या परिस्थितिवश।

राजकोट के 60 वर्षीय महेंद्र सिंह झाला का उदाहरण लें, आंखों की 90% रोशनी चले जाने के बाद उन्हें समय से पहले सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ी थी। पर उन्होंने अपना ‘विज़न’ नहीं खोया। पूरे साल रहने वाली पानी की कमी पर काम किया। अपनी अक्षमता पर बुत बनकर बैठे रहने के बजाय उन्होंने राजकोट की कोठारिया कॉलोनी में बने अपने घर पर वॉटर हार्वेस्टिंग की।

इसके लिए उन्हें जलशक्ति विभाग का प्रतिष्ठित पुरस्कार- ‘वॉटर हीरो’ भी मिला। आज वह हर मॉनसून में एक लाख लीटर पानी जमीन में पहुंचाते हैं। वह कहते हैं कि वो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए कर रहे हैं। जब हम जैसे लोग अपने बच्चों के लिए पैसा बचा रहे हैं, वह बच्चों के लिए पानी बचा रहे हैं! लोगों को लग सकता है कि झाला ने मजबूरी में ऐसा किया होगा, पर मुझे बताएं कि गुजरात टाइटंस कैसे सारे गणितीय समीकरणों को धता बताते हुए आईपीएल प्लेऑफ में पहुंचने वाली पहली टीम बन गई।

उनकी टीम में एक या दो समस्याएं नहीं थी। उनके बल्लेबाज शुभमन गिल रन बनाने में धीमे थे (गिल की पहले की टीम केकेआर के अनुसार), मैथ्यू वेड ने लगभग एक दशक से आईपीएल नहीं खेला था। डेविड मिलर को किंग्स इलेवन पंजाब और राजस्थान रॉयल्स में थोड़े ही मौके मिले थे। मैच शुरू होने से पहले रिद्धिमान साहा और विजय शंकर का कुछ खासा नाम नहीं था। बल्लेबाजी में अच्छे जेसन रॉय बायो बबल की थकान का हवाला देकर आईपीएल से हट गए थे।

मध्यक्रम में विश्वास भरने के लिए हार्दिक पंड्या ने पहली बार चार नंबर पर बल्लेबाजी का फैसला लिया था। मनोहर, बी. साई सुदर्शन के प्रदर्शन में अस्थिरता थी। कुलमिलाकर कहें तो क्रिकेट गुरुओं के मुताबिक पूरी टीम का बल्लेबाजी क्रम गणितीय रूप से सही नहीं था। पर ऊपर जिक्र किए गए हर किसी ने इन मैचों में किसी भी टीम से उम्दा प्रदर्शन किया, सिर्फ सीएसके को छोड़कर।

टीम में 75 रन से ज्यादा की पांच साझेदारियां हुईं- साहा-गिल (106), गिल-सुदर्शन (101), हार्दिक-मनोहर (86), मिलर-राहुल तेवतिया (79) और साहा-पंड्या (75 रन) इस मंगलवार को जब वे प्लेऑफ में पहुंचे तो उन्होंने कुछ ऐसा किया, जिसे बाकियों को सीखना चाहिए। उन्होंने 144 रन का कम स्कोर बनाया, फिर भी मजबूत प्रतिद्वंद्वी एलएसजी को रोकने के लिए मानसिक रूप से तैयार थे और महज 13.5 ओवर में उन्हें 82 पर रोक दिया।

उन्होंने जो किया वो ये कि व्यक्तिगत पहचान यानी मैं को त्यागकर एक बॉन्डिंग बनाई और मजबूत टीम की तरह खड़े रहे। इस एक कदम से सब बदल गया और विशेषज्ञों की गणित फेल हो गई। हर क्रिकेटर अपने लिए कुछ न कुछ रिकॉर्ड बनाना चाहता है, पर यहां ऐसी कोशिश नहीं हुई। उन्होंने कैच भी छोड़े, पर गेंदबाजों की प्रतिक्रिया अलग थी, विकेट से चूक जाने पर निजी खुन्नस नहीं निकाली। जीत नया साझा लक्ष्य था और निजी क्रिकेट रिकॉर्ड बनाने पर किसी का ध्यान नहीं गया।

फंडा यह है कि जब धूम्रपान छोड़ते हैं, तो आप उस उत्पाद को नहीं छोड़ रहे हैं, जिससे आप अब तक जुड़े थे, आप अपने जुड़ाव को बेहतर करते हुए स्वस्थ जीवनशैली-नए लक्ष्यों की ओर ले जा रहे हैं।

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