सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी के हत्यारे को क्यों छोड़ा?

सस्पेंस थ्रिलर मूवी जैसी है पेरारिवलन की इनसाइड स्टोरी….

‘राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी पेरारिवलन की उम्रकैद सस्पेंड होनी चाहिए और उसे रिहा किया जाना चाहिए।’

18 मई को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की बेंच ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस आर्टिकल का इस्तेमाल कंप्लीट जस्टिस के लिए किया, क्योंकि उसकी दया याचिका सालों से अटकी पड़ी थी। रिहाई की खबर सुनते ही पेरारिवलन ने कहा, ‘मेरी मां के 31 सालों का संघर्ष आखिर सफल हुआ।’

ऊपर की लाइनों में कुछ की-वर्ड लिखे हुए हैं। मसलन- राजीव गांधी की हत्या, पेरारिवलन की रिहाई, कंप्लीट जस्टिस और मां के 31 सालों का संघर्ष।

भास्कर इंडेप्थ में आज हम इन्हीं की-वर्ड से एक कहानी बुन रहे हैं। पेरारिवलन की कहानी। जिसने राजीव गांधी की हत्या में इस्तेमाल बम के लिए 9 वोल्ट की दो बैटरियां सप्लाई की थीं। 19 साल की उम्र में गिरफ्तार हुआ, फांसी की सजा हुई, फिर उम्रकैद में बदली और अब 50 साल की उम्र में रिहा हो गया…

चैप्टर-1: पेरारिवलन और राजीव गांधी हत्याकांड

एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु तमिल कवि कुयिलदासन का बेटा है। स्कूली दिनों से ही वो लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से प्रभावित था। 21 मई 1991 को जब श्रीपेरंबदूर की एक रैली में राजीव गांधी की हत्या हुई, उस वक्त पेरारिवलन 19 साल का था।
एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु तमिल कवि कुयिलदासन का बेटा है। स्कूली दिनों से ही वो लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से प्रभावित था। 21 मई 1991 को जब श्रीपेरंबदूर की एक रैली में राजीव गांधी की हत्या हुई, उस वक्त पेरारिवलन 19 साल का था।

राजीव गांधी की हत्या से 20 दिन बाद पेरारिवलन को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर दो आरोप लगाए गए। पहला, उसने 9 वोल्ट की दो बैटरियां खरीदकर हत्याकांड के मास्टरमाइंड LTTE के सिवरासन को दी थी, जिनका इस्तेमाल बम बनाने में हुआ। दूसरा, राजीव गांधी की हत्या से कुछ दिन पहले सिवरासन को लेकर पेरारिवलन दुकान पर गया था और वहां गलत एड्रेस बताकर एक मोटसाइकिल खरीदी।

चैप्टर-2: जेल की काल कोठरी और पढ़ाई

28 जनवरी 1998 को टाडा कोर्ट ने पेरारिवलन समेत 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई। 11 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन, नलिनी, मुरुगन और संथान सहित चार की मौत की सजा को बरकरार रखा। वहीं तीन अन्य आरोपियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। साथ ही 19 अन्य दोषियों को रिहा कर दिया।

पेरारिवलन ने अपनी कैद के 31 साल पुजहल और वेल्लोर की सेंट्रल जेल में बिताए। इसमें से 24 साल तो उसने कालकोठरी में बिताए, जहां वो अकेला होता था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जेल में रहते हुए पेरारिवलन ने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके अलावा आठ से ज्यादा डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए।

चैप्टर-3: 31 साल की कानूनी जंग और मां का संघर्ष

1999 में सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पेरारिवलन के पास बहुत विकल्प नहीं बचे थे। उसने 2001 में अपनी दया याचिका राष्ट्रपति को सौंपी। 11 साल बाद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इसे खारिज कर दिया।

9 सितंबर 2011 को फांसी का दिन मुकर्रर हुआ। पेरारिवलन की मां को बॉडी ले जाने के लिए चिट्ठी भी लिख दी गई, लेकिन इसके बाद शुरू हुए कहानी में ट्विस्ट…

ट्विस्ट-1: फांसी से ठीक पहले तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें दोषियों की मौत की सजा कम करने की मांग की। इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने फांसी के आदेश पर रोक लगा दी।

ट्विस्ट-2: 2013 में सीबीआई के अधिकारी टी त्यागराजन ने खुलासा किया कि उन्होंने पेरारिवलन का कबूलनामा बदल दिया था। दरअसल, पेरारिवलन को नहीं पता था कि उसकी बैटरी का इस्तेमाल राजीव गांधी की हत्या के लिए बम बनाने में किया जाएगा। सीबीआई अधिकारी ने कोर्ट में हलफनामा भी दाखिल किया।

ट्विस्ट-3: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस टीएस थॉमस ने 2013 में कहा कि 23 साल जेल में रखने के बाद किसी को फांसी देना सही नहीं होगा। ये एक अपराध के लिए दो सजा देने जैसा होगा। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।

फरवरी 2014 में पेरारिवलन की मां अरपुतम ने तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता से चेन्नई में मुलाकात की थी। इसके बाद ही जयललिता ने फांसी की सजा पर रोक का प्रस्ताव पारित किया।
फरवरी 2014 में पेरारिवलन की मां अरपुतम ने तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता से चेन्नई में मुलाकात की थी। इसके बाद ही जयललिता ने फांसी की सजा पर रोक का प्रस्ताव पारित किया।

इसके बाद पेरारिवलन ने सजा माफ करने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल के पास दया याचिका दायर की। जो पिछले 7 सालों से पेंडिंग पड़ी थी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा कर दिया।

ओपेन मैगजीन को पेरारिवलन की मां अर्पुतम अम्मल बताती हैं, ‘शुरुआत में हमें नहीं पता था क्या करना है। पुलिस, कानून, कोर्ट सब नए थे, लेकिन धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ गई। अरिवु की दोनों बहनें कमाती थीं और उस पैसे से मैं केस लड़ती रही।’

अपनी दोनों बहनों के साथ पेरारिवलन। बाएं में अरुलसेवी और दाएं अंबुमनी। फिलहाल बड़ी बहन रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में काम करती है और छोटी बहन अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में लेक्चरर है।
अपनी दोनों बहनों के साथ पेरारिवलन। बाएं में अरुलसेवी और दाएं अंबुमनी। फिलहाल बड़ी बहन रूरल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में काम करती है और छोटी बहन अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में लेक्चरर है।

पार्ट-4: खुली हवा में सांस और खुशहाल जिंदगी की उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पेरारिवलन ने कहा, ‘इस केस की ईमानदारी ने उसे और उसकी मां को तीन दशकों तक लड़ने की ताकत दी। ये जीत उसके संघर्ष की जीत है। मैं अभी बाहर आया हूं… अब खुली हवा में सांस लेना है।’

रिहाई के बाद पेरारिवलन ने अपने परिवार और दोस्तों के सपोर्ट के लिए शुक्रिया कहा है।
रिहाई के बाद पेरारिवलन ने अपने परिवार और दोस्तों के सपोर्ट के लिए शुक्रिया कहा है।

पेरारिवलन को 1999 में मौत की सजा सुनाने वाली बेंच के प्रमुख जस्टिस केटी थॉमस भी चाहते हैं कि अब वो नॉर्मल और खुशहाल जिंदगी जिए। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘इतनी लंबी कानूनी लड़ाई और 50 साल की उम्र में रिहाई पर क्या कहूं। उसे जल्दी शादी करनी चाहिए। खुशहाल जिंदगी जीनी चाहिए। मैं पूरा क्रेडिट उसकी मां को देना चाहता हूं, क्योंकि वो डिजर्व करती है।’

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